डियर ऑफ गॉड – ईश्वर के हंस
जिसे भक्ति का पुरस्कार मिला है, वह डियर ऑफ गॉड बन चुका। क्या आप ईश्वर के प्रिय (डियर) बने हैं या बनना चाहते हैं? कोई कलाकार अपनी कला के उच्चतम शिखर पर पहुँच जाए तो उसके लिए क्या बचता है? कला के प्रति प्रेम ही उसे उस क्षेत्र में टिकाकर रख सकता है क्योंकि अब उसे किसी और पुरस्कार की आकांक्षा नहीं है। बेशर्त प्रेम या भक्ति वह पुरस्कार है, जिसके मिलने पर अन्य किसी पुरस्कार की अभिलाषा नहीं रहती। यह पुरस्कारों का पुरस्कार है।
इस पुरस्कार को प्राप्त कर मनुष्य ईश्वर के हंस बनकर यथार्थ जीवन जी पाते हैं। शरीर और सेल्फ में भेद समझ पाते हैं। शरीर को साधन जानकर उसके ज़रिए भक्तियुक्त कर्म कर पाते हैं। तुम्हें जो लगे अच्छा, वही मेरी इच्छा कह पाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक भक्ति के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए, यथार्थ जीवन जीने की युक्ति सिखाती है। जैसे-
* सगुण साकार और निर्गुण निराकार भक्ति में क्या अंतर है?
* क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के ज्ञान में क्या अंतर है?
* भक्ति की मंज़िल क्या है?
* भक्ति का मूल उद्देश्य क्या है?
* भक्त के छत्तीस गुण कौन से हैं?
* क्षेत्रज्ञ के लक्षण क्या हैं?
आइए, पुस्तक में दिए गए भक्त के छत्तीस गुणों को आत्मसात करके ईश्वर का प्रिय बनने की युक्ति प्राप्त कर, ईश्वर के हंस बनें।
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