गुस्सा करने के लिए नहीं, पढ़ने के लिए आता है।
उसे पढ़कर पता करो कि वह आपके अंदर की
किस भावना को छिपा रहा है।
क्रोध यानी दूसरों के द्वारा की गई गलती की सजा स्वयं को देना।’ जब भी कोई किसी और की गलती देखता है, तो वह क्रोध करता है। मगर उस वक्त वह यह भूल जाता है कि क्रोध करते वक्त वह अपने आपको सजा दे रहा है, तकलीफ दे रहा है। वह अपना ही नुकसान करता है। क्रोध अगर अंगार है तो प्रार्थना है शीतल जल। प्रार्थना के शब्द सारे शरीर के तपन को ठंडा करते हैं। प्रार्थना करते ही इंसान की ग्रहणशीलता शांति के प्रति बढ़ जाती है यानी वह शांति को अपने अंदर प्रवेश करने देता है।
इस तरह की शांति पूरे शरीर व जीवन में फैलकर ‘वरदान’ सिद्ध होती है। क्रोध की अग्नि से मुक्ति पाने के लिए आपको शांति वरदान पाना है, जो आपको इस पुस्तक के द्वारा मिलेगा।
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