ईश्वर का अस्तित्व कहें या इंसान का स्वभाव?
इस किताब का शीर्षक पढ़कर आपके मन में अनेक सवाल आ सकते हैं। निश्चिंत रहें, इस पुस्तक में इन सारे सवालों के जवाब आप सहजता से पा सकते हैं। इनके अतिरिक्त यह पुस्तक आपको नीचे दी गई निम्नलिखित जानकारी जानने में मददगार होगी :
* दुःख को स्वीकृति देकर हम ‘हाँ’ कहना कैसे सीखें?
* ‘नहीं’ या नास्तिकता को जीवन से कैसे दूर करें?
* आस्तिक एवं नास्तिक में क्या अंतर है?
* उलटा विश्वास या नास्तिकता से मुक्ति के सरल उपाय कौन से हैं?
* सीधा विश्वास या आस्तिकता के नए दृष्टिकोण से जीवन की ओर कैसे देखें?
* नहीं और हाँ से परे कौन सी अवस्था है और उसे कैसे पाया जा सकता है?
कई लोग अपनी गलतियों को नज़रअंदाज़ करके अपनी असफलता का इल्जाम ईश्वर पर लगाकर नास्तिक बन जाते हैं। लेकिन यह पुस्तक नास्तिकता और आस्तिकता की आपकी परिभाषा बदल देगी। नास्तिकता या आस्तिकता का संबंध ईश्वर के अस्तित्व से नहीं बल्कि इंसान के स्वभाव से जुड़ा है। इस किताब में आप जानेंगे कि किस तरह नास्तिकता इंसान के दुःखों का कारण बनती है और आस्तिक बनकर (हाँ कहकर) इंसान कैसे खुद अपनी खुशी का कारण बन सकता है।
Prashant Puranik (zweryfikowany) –
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