परमात्मा तक पहुँचने का द्वार कहाँ है
तीन महा संतों के जीवन से स्थाई प्रसन्नता के रहस्य जानकर, मनुष्य जीवन और नाम को सार्थक कर, परमात्मा के द्वार तक पहुँचने में सफलता कैसे प्राप्त करें?
इस सवाल का जवाब बाहर नहीं, हर एक के अंदर ही है और बिलकुल सरल है- प्रसन्न रहकर।
“प्रसन्नता” का वास्तविक अर्थ है, सुखी और खुश होना; सकारात्मक भावना का अनुभव करना; अपने अंदर के आत्मविश्वास, ज्ञान, ध्यान पर लक्ष केंद्रित करना; इसी से इंसान अपने जीवन में उच्चतम अभिव्यक्ति करता है। जैसे संत नामदेव, संत एकनाथ और संत तुकाराम ने इस “प्रसन्नता” को प्राप्त कर, भक्ति की ऊँचाई पाई और इसे दूसरों में बाँटने का महान कार्य किया।
अध्यात्म में प्रसन्न रहने का बहुत महत्त्व है क्योंकि “प्रसन्नता” परमात्मा तक पहुँचने का द्वार है। संत परंपरा में सभी संतों द्वारा इसी बात को उजागर किया गया है इसलिए हर इंसान को प्रसन्न रहने के लिए, कुछ प्रश्नों द्वारा स्वयं की खोज करनी चाहिए। जैसे-
* संसार में रहते हुए ईश्वर भक्ति कैसे करें?
* सांसारिक विफलताओं, दुःखद घटनाओं को ‘ईश्वर का प्रसाद’ कैसे समझें?
* हकीकत में हम जो हैं, वही बनकर कैसे जीएँ?
* नि:स्वार्थ और परोपकारी जीवन का महत्त्व क्या है?
* संतों के कार्य, उनके उपदेश आज भी हमारे जीवन को कैसे परिवर्तित करते हैं?
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