यह पुस्तक दु:ख में भी खुश रहने का उपाय बताती है। क्योंकि प्रसन्नचित्त व्यक्ति ही पृथ्वी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। प्राय: प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सुख के साथ-2 दु:ख की घड़ी भी आती रहती है। यदि वह इस घड़ी में भी खुश रहने की कला जान सके तो निश्चित ही वह सहज जीवन जीने का अधिकारी हो सकता है।
दु:ख में भी खुश क्यों और कैसे रहा जाए? इसी विषय पर आइना दिखाने के लिए सरश्री ने इस पुस्तक की रचना की है। पुस्तक में काल्पनिक पात्रों के आधार पर कहानी का निर्माण किया गया है। विषयवस्तु का प्रारंभ और अंत भी गुरु द्रोणाचार्य और शिष्य एकलव्य को आधार बनाकर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है। दो खण्डों में विभाजित इस पुस्तक द्वारा दु:ख में भी खुश रहने के दस उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई है। लेखक सरश्री ने खुशी से खुशी पाने का राज पाठकों के सामने अत्यंत कुशलतापूर्वक सार्वजनिक किया है।
लेखक का यह उद्देश्य है कि पाठक खुश रहकर अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें। इसलिए इस पुस्तक का अध्ययन पाठकों के जीवन में अप्रत्याशित बदलाव लाने में कारगर है। पुस्तक कलात्मक भाषा में रोचकता के साथ पाठकों को प्रभावित करनेवाली है।
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