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विश्व में दो प्रकार के लोग हैं। पहले वे जो सिर्फ सपना देखते हैं और दूसरे वे जो अपना हर सपना पूर्ण करने की ठान लेते हैं। किसी ने विश्व को चंद्रमा तक पहुँचाने का निर्णय लिया। लोगों ने उसकी आलोचना की मगर फिर भी वह पूर्ण हो गया। किसी ने जाति-धर्म संबंधित भेदभाव मिटाने और अन्याय रहित देश का सपना देखा मगर बहुत कम लोगों ने उसमें अपना योगदान दिया। फिर भी वह सपना वास्तविकता में बदल गया। किसी ने ऐसी दुनिया साकार करने का निर्णय लिया, जहाँ हर घर में कंप्यूटर हो, जो इंटरनेट से जुड़ा हो। अधिकांश लोगों ने इस सपने की निंदा की मगर देखा जाए तो आज हर घर इंटरनेट से जुड़ गया है।
एडिसन ने अंधेरे में खोई दुनिया को बल्ब के माध्यम से उजागर करने का निर्णय लिया। हालाँकि उन्हेें हज़ारों प्रयोग करने के बाद भी असफलता मिली, फिर भी वे अपने निर्णय पर अटल रहे और विश्व रोशनी से जगमगाने लगा। किसी ने टेक्नॉलॉजी को घर-घर तक पहुँचाने का निर्णय लिया, इसी कारण आज हर इंसान के हाथ में स्मार्ट फोन है। स्वामी विवेकानंद ने युवा अवस्था में ही मोह का त्याग करके, सत्य की राह पर चलने का निर्णय लिया, जिससे कई युवाओं को अध्यात्मकी राह पर चलने की प्रेरणा मिली।
आपकी ज़िंदगी में भी यही हो रहा है। आप भी कुछ सपने देख रहे हैं मगर यदि आपका सपना वचनबद्ध निर्णय में बदल नहीं पा रहा है तो आपको अपने निर्णयों पर अटल रहने की कला सीखने की ज़रूरत है।
आज की युवा पीढ़ी को यह विषय बहुत गहराई से समझना चाहिए क्योंकि उनके जीवन में ऐसे कई मा़ेड आते हैं, जहाँ उन्हें खुद निर्णय लेना पड़ता है। फिर चाहे वह उनका करियर हो… पढ़ाई हो… जॉब हो… सही मित्र चुनने हों या जीवनसाथी का चुनाव हो… गॅजेट्स की दुनिया में खोने का हो या स्वयं पर अनुशासन लाने का हो…!
आज की युवा पीढ़ी हर क्षण निर्णय ले ही रही है मगर कई बार सिर्फ ‘लोग क्या कहेंगे’ इस एक बात की वजह से वह अपने निर्णय पर अटल नहीं रह पाती। ऐसे में आगे दिए गए चार कदम आपके लिए मददगार साबित होंगे।
पहला कदम- ‘लोग क्या कहेंगे’ के डर से मुक्ति
अच्छा हुआ कि भारत की खोज में निकले कोलंबस ने लोगों की बातों को अनसुना कर दिया वरना अमरीका की खोज कभी पूर्ण नहीं होती…। वह अमरीका जो आज दुनिया में सबसे आगे और शक्तिशाली दिखाई देता है (जो कभी लुप्त था)।
राइट ब्रदर्स, जिन्होंने हवाई जहाज़ का आविष्कार किया, उनसे कहा गया, ‘उड़ने की बातें मत करो… अपने काम से काम रखो… केवल पक्षी ही उड़ते हैं।’ उन्होंने किसी की एक न सुनी बल्कि वे अपनी खोज में मशगूल रहे और एक दिन हवाई जहाज़ के आविष्कारक बने।
आज तक विश्व में सिर्फ उन्हीं के द्वारा आविष्कार हुए हैं, जो अपने निर्णयों पर अटल रहे। उन्होंने लोगों की टिप्पणी को नज़रअंदाज किया। अगर आप भी अपने निर्णय पर अटल रहना चाहते हैं तो स्वयं से पूछें-
‘लोग क्या कहेंगे’ यह डर मुझे कब सताता है?
‘लोग क्या कहेंगे’ यह सोचकर आज तक मैंने कौन से नए कदम उठाने
में टालमटोल की है?
इन दो सवालों पर मनन करते ही आप समझ पाएँगे की अधिकांश समय लोगों का डर आपको नए कदम उठाने से रोकता है। इसलिए इंसान अपने जीवन में अखंडता महसूस नहीं कर सकता। क्योंकि वह करना तो बहुत कुछ चाहता है मगर ‘लोग क्या कहेंगे’ इस डर की वजह से वह सही कदम उठा ही नहीं पाता। इसलिए आज ही इस डर से मुक्त होने का संकल्प लें।
कई विद्यार्थी सिर्फ ‘दोस्त क्या कहेंगे, पैरेंट्स क्या सोचेंगे, मेरे बारे में टीचर्स क्या राय बनाएँगे’, इस डर की वजह से अपना करियर चुन नहीं पाते। हालाँकि उन्हें अपने हुनर की जानकारी तो होती है मगर सिर्फ लोगों का डर उन्हें सही निर्णय लेने से रोकता है। अतः जब भी डर सताए, उपरोक्त हस्तियों पर गौर कर, उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत बनाएँ।
दूसरा कदम- अपने जीवन के सिद्धांत बनाएँ
जब कोई अपना जीवन सिद्धांतों की नींव पर बनाता है तब 99 प्रतिशत निर्णय अपने आप हो जाते हैं। फिर भी कई लोगों के जीवन में कोई सिद्धांत ही नहीं होते इसलिए उनके मन में दुविधा निर्माण होती है। जैसे- ‘मैं यह काम करूँ या नहीं, मेरे डिपार्टमेंट में सभी रिश्वत लेते हैं तो फिर मैं क्यों न लूँ? मुझे इस निर्णय से सुख-सुविधाएँ मिलेंगी तो मैं सत्य का रास्ता क्यों अपनाऊँ?’ आदि। अगर आपके मन में भी निर्णय लेते वक्त ऐसी दुविधा होती है तो इसका मतलब आपने अब तक अपने जीवन के सिद्धांत नहीं बनाए हैं।
जीवन के सिद्धांत यानी ऐसे नियम जिनके आधार पर आप अपनी ज़िंदगी बिताना चाहते हैं। जैसे- कपट न करना, सदा सत्य बोलना, स्वयं के साथ, अपने परिवार और गुरु के साथ ईमानदार रहना, दूसरों से स्वयं की तुलना न करना, सभी के प्रति मंगल भाव रखना आदि।
अधिकांश लोग अपना कार्यक्षेत्र चुनते वक्त पद-प्रतिष्ठा, पैसा और पॉवर के बारे में सोचते हैं। इस आधार पर लिया हुआ निर्णय उनके जीवन में केवल दुःख को ही आमंत्रित करता है। अगर आप निर्णय लेते वक्त खुशी, रचनात्मकता, संतुष्टि, निःस्वार्थ भाव जैसी बातों को प्राथमिकता देंगे तो ही आप सही कार्यक्षेत्र चुन पाएँगे।
अगर आप वही करते रहेंगे, जो आज तक करते आए हैं तो आपको वही मिलेगा, जो आज तक मिलते आया है। इसलिए नया सोचें, नया निर्णय लें मगर सिद्धांतों के आधार पर।
तीसरा कदम- सिर्फ बुद्धि की नहीं, हृदय की भी सुनें
कुदरत इंसान को हमेशा उच्चतम मार्गदर्शन देना चाहती है ताकि इंसान सही निर्णय ले पाए। इस प्रक्रिया में आनेवाली मुख्य समस्या है ‘इंसान की बुद्धि’। इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि निर्णय लेते वक्त बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बल्कि निर्णय लेते वक्त बुद्धि और हृदय दोनों का इस्तेमाल करें। कई बार लोग बुद्धि (तर्क) को अधिक महत्त्व देकर फँस जाते हैं। हालाँकि हृदय से लिया गया निर्णय आपके जीवन में आनंद, समृद्धि और दृढ़ता की बहार ला सकता है क्योंकि हृदय से संबंधित है आपकी भावना। अगर आपके सहज मन में आनेवाले भाव आपको सही रास्ता दिखा रहे हैं तो ऐसे रास्तों पर चलने का साहस करें। स्मरण रहे, इतिहास उन्हीं हस्तियों को याद रखता है, जो नए रास्ते अपनाते हैं। अगर आपका हृदय कह रहा है कि फलाँ निर्णय लेते वक्त बुद्धि का भी इस्तेमाल होना चाहिए तो ज़रूर तर्कशुद्ध सोच अपनाएँ। मगर ‘दिल’ और ‘दिमाग’ का सही संतुलन अति आवश्यक है।
चौथा कदम- अपने निर्णय की ज़िम्मेदारी लें
स्वयं की असफलता का दोष दूसरों पर मढ़ना, इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी है। इसी कारण कई नौजवान निर्णय लेने से डरते हैं क्योंकि वे अपने निर्णय के साथ ‘सफलता की गारंटी’ चाहते हैं। कई लोग अपने गलत निर्णय के लिए अपने परिवार के सदस्य, दोस्त और परिस्थिति को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। ऐसे वक्त यह याद रखे, आपने कल कुछ निर्णय लिए थे, जिसकी वजह से आपका वर्तमान बना है और वर्तमान में लिए गए निर्णयों से आपका भविष्य बननेवाला है। सफलता कभी गारंटी के साथ नहीं आती बल्कि आत्मविश्वास, दृढ़ता और ज़िम्मेदारी की भावना से प्राप्त होती है।
कई बार इंसान को कठिन निर्णय लेते वक्त असफल होने का, अकेले पड़ जाने का, लोगों के हँसी-मज़ाक का निशाना बनने या फिर दूसरों के द्वारा कम आँके जाने के ज़ोखिम का सामना करना पड़ता है। इसलिए वह असुविधाजनक भावनाओं और कठिन अनुभवों का जोखिम उठाने से कतराता है। जबकि सफलता हासिल करने के लिए आपको निर्णय तोे लेना होगा और उसकी ज़िम्मेदारी भी उठानी होगी।
इन चार कदमों पर चलकर आप सही निर्णय लेने और अपने निर्णय पर दृढ़ रहने में माहिर बन जाएँगे। यह कला न सिर्फ आपकी सांसारिक सफलता के लिए ज़रूरी है बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का रहस्य भी है। अगर आप स्वयं को जानने, सत्य के मार्ग पर चलने का निर्णय लेंगे तो आपके बाकी सभी निर्णय अचूक होंगे। क्योंकि आध्यात्मिक समझ प्राप्त करके लिया गया हर निर्णय प्रेम, आनंद, शांति, समृद्धि, संतुष्टि और पूर्णता का कारण बनता है।
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