शिष्य उपनिषद् – कथाएँ गुरु और शिष्य साक्षात्कार कीं
संग का रंग जीवन में निखार लाता है। इसलिए आप कौन से रंग में रंगना चाहते हैं, उस रंग से रंगे रंगारी से ज़रूर मिलें। सभी बंधनों से मुक्त होना चाहते हैं तो जो बंधनों से मुक्त है, उसकी शरण (संग-सत्संग) में जाएँ। यही है बंधनों से मुक्ति का सबसे आसान तरीका। यह तरीका गुरु ही शिष्य के लिए ईजाद कर सकते हैं।
इंसान चाहे तो गुरु के संग में रहकर अपने जीवन में आनंद के बीज भी बो सकता है या उनसे दूर रहकर काँटे भी उगा सकता है। चाहे तो इसी जीवन में नरक की यात्रा भी कर सकता है, चाहे तो स्व अर्क का आनंद भी भोग सकता है, दोनों दिशाएँ खुली हैं। मनुष्य अपना मित्र भी हो सकता है, तो अपना शत्रु भी हो सकता है। आपका शरीर हरि का द्वार भी बन सकता है और हरि से दूर भी कर सकता है। बहुत कम लोग हैं, जो इस कला को जानते हैं कि कैसे शरीर, हरि (ईश्वर तक पहुँचने) का साधन बने। इसके लिए आवश्यकता है बस उस द्वार से अंदर ले जानेवाले सच्चे गुरु के मार्गदर्शन की और उसे ग्रहण करनेवाले सच्चे शिष्य की।
गुरु, ईश्वर व आपके बीच पुल का काम करते हैं। गुरु का शरीर सत्य की याद दिलाने के लिए निमित्त है इसलिए उनके द्वारा सत्य में प्रवेश पाकर, सत्य में स्थापित होना चाहिए। इसके अलावा आप इस पुस्तक में पढ़ेंगे –
* बिना नाराज़ हुए राज़ जानने का मार्ग
* गुरुत्त्व और गुरु तत्त्व आकर्षण का रहस्य
* वृत्तियों से मुक्ति का ज्ञान
* जीवन के पाँच महत्वपूर्ण सबक
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