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अर्नेस्ट हेमिंग्वे नामक बालक पूरे स्कूल में सबसे बुद्धिमान छात्र था। एक बार स्कूल में कहानी प्रतियोगिता हुई, जिसमें सभी विद्यार्थियों को कहानी लिखने के लिए पंद्रह दिन का समय दिया गया। सबसे अच्छी कहानी लिखनेवाले को पुरस्कार दिया जानेवाला था। सभी का मानना था कि पुरस्कार हेमिंग्वे को ही मिलेगा क्योंकि वह सबसे बुद्धिमान तो था ही, इसके अलावा उसके पास कहानी लिखने का कौशल भी था।
हेमिंग्वे को भी पूरा भरोसा था कि पुरस्कार उसी को मिलेगा। उसने सोचा एक छोटी सी कहानी लिखने के लिए पंद्रह दिन का समय काफी है और वह इतना बुद्धिमान है कि एक दिन में ही कहानी लिख सकता है। वह अति आत्मविश्वास का शिकार हो गया और लापरवाही की वजह से उसने तेरह दिन तक कहानी का एक शब्द भी नहीं लिखा। जब केवल दो दिन का समय शेष रह गया तब उसने हड़बड़ी में कहानी लिखी और स्कूल में जमा कर दी। ज़ाहिर है, जल्दबाज़ी में लिखने के कारण कहानी अच्छी नहीं बन पाई।
जब प्रतियोगिता के विजेता की घोषणा हुई तब हेमिंग्वे को उम्मीद थी कि पुरस्कार तो उसी को ही मिलनेवाला है। मगर पुरस्कार किसी दूसरे लड़के को मिला तो हेमिंग्वे बहुत दु:खी हो गया। वह निराश होकर घर लौटा और अपने बिस्तर पर लेटकर आँसू बहाने लगा।
उसकी बड़ी बहन ने जब यह देखा तो वह कोमल स्वर में बोली- ‘देखा, मुझे पहले से ही पता था कि ऐसा ही होनेवाला है। तुम्हारी यह आदत है कि तुम हर काम आखिरी समय पर करते हो। अगर तुम पहले से ही कहानी की योजना बनाते और लिखने की मेहनत करते तो यह पुरस्कार अवश्य तुम्हें ही मिलता। इस घटना से सबक सीखो और दोबारा यह गलती कभी मत करना तभी तुम जीवन में सफल होकर सफलता की कहानी लिख सकते हो।’
इस नसीहत ने उस बालक की आँखें खोल दीं और उसने अपनी यह आदत सुधार ली। आगे चलकर अर्नेेस्ट हेमिंग्वे अमरीका के प्रख्यात उपन्यासकार बने और एक लघु उपन्यास के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार भी मिला।
इस कहानी से आज की युवा पीढ़ी को एक बहुत बड़ी सीख लेनी चाहिए क्योंकि उनमें सफलता प्राप्त करने की पूरी क्षमता तो होती है मगर कभी-कभी अति आत्मविश्वास (लापरवाही) या समय नियोजन की कला न होने की वजह से अधिकांश युवा अपने मुकाम तक पहुँच नहीं पाते। हालाँकि आज सभी के पास ‘टेक्नॉलॉजी’ का बड़ा हथियार है, जिससे पूरे विश्व के साथ संपर्क किया जा सकता है, बशर्ते इसका सही इस्तेमाल हो।
मगर क्या सिर्फ गैजेट्स की दुनिया में खोना ही जीवन का लक्ष्य है? क्या सिर्फ पैसों से अमीर बनना ही सच्ची सफलता है या सफलता का अर्थ इससे भी विशाल है?
आइए, युवावस्था में परिपूर्ण जीवन की ओर बढ़ने के पाँच मुख्य कदमों को समझते हैं।
पहला कदम – विश्वसनीयता
जब आप जो कहते हैं, वही करते हैं; जो करते हैं, वही सोचते हैं और जो सोचते हैं, वही आपकी बातचीत में आता है तब कुदरत की तमाम शक्तियाँ आपकी मदद करने के लिए सक्रिय हो जाती हैं क्योंकि तब आप विश्वसनीय बन जाते हैं।
जब कोई हमेशा ‘समय नहीं है’ का बहाना देते रहता है तब वह यह भूल ही जाता है कि इस तरह के बहाने बनाकर वह लोगों की नज़रों में अविश्वसनीय बनता जा रहा है। जिस वजह से कार्य को टालने या बहाने बनाने में उसे कोई हिचक नहीं होती। इस तरह बहानेबाज़ी और अविश्वास का दुश्चक्र उसके जीवन में चलते ही रहता है।
युवावस्था में ही संत ज्ञानेश्वर ने ‘ज्ञानेश्वरी’ जैसे अद्भुत ग्रंथ का निर्माण किया। उनका भी जीवन आलोचना से भरा हुआ था मगर उन्होंने कोई बहाना देकर अपना कार्य अधूरा नहीं छोड़ा। विश्व के कई आविष्कार युवा साइंटिस्ट ने किए हैं। हालाँकि उनके सामने भी कई सारी कठिनाइयाँ थीं, जिन्हें देखकर कोई भी सामान्य इंसान डगमगा सकता था। इसके अलावा ऐसे कई टीनेजर्स और युवकों ने विश्व को बड़ा योगदान दिया है। जिसमें अधिकांश लोगों का मुख्य गुण था- ‘विश्वसनीयता और समय नियोजन की कला’।
दूसरा कदम – समय नियोजन की कला
जितना बड़ा आपका लक्ष्य होगा, समय नियोजन की कला में भी आपको उतना ही कुशल बनना पड़ेगा क्योंकि समय नियोजन(ढळाश ारपरसशाशपीं) के बाद ही हमारे समय का सचमुच सही उपयोग होता है। इसलिए समय का मूल्य परखें। बीता हुआ समय दोबारा लौटकर नहीं आता। समय बरबाद करने का अर्थ है जीवन व्यर्थ गँवाना।
किसी भी कार्य को समय पर पूर्ण करने के लिए उसे लिखकर रखना ज़रूरी कदम है। इससे आप छोटे से छोटा काम करना भी नहीं भूलते। इस आदत की वजह से लोग आपको विश्वसनीय समझकर पूर्ण सहयोग करने लगते हैं।
तीसरा कदम – सही निर्णय लेने की कला
आपके पास हर दिन छोटे-छोटे निर्णय लेने के कई अवसर मौजूद होते हैं। ऐसे में कार्य शुरू करने से पहले एक पल रुकें और स्वयं से पूछें, ‘क्या मैं इस क्षण सफलता की दिशा में (सही) निर्णय ले रहा हूँ?’ यकीनन इस सवाल से आप सजग हो जाएँगे।
अगर आपने पढ़ाई करने का समय तय किया है लेकिन आप वह समय दोस्तों के साथ गपशप में बिता रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आपने सही निर्णय नहीं लिया है। इसका असर आपकी परीक्षा के परिणाम पर अवश्य होगा।
लोग अपने निर्णयों के बारे में सजग नहीं होते। क्षणिक लाभ के लिए वे गलत निर्णय ले बैठते हैं। ऐसे निर्णयों से तात्कालिक खुशी तो मिल जाती है लेकिन आगे चलकर उन्हें अनचाहे परिणाम भुगतने पड़ते हैं। कुछ नौजवान इंद्रिय सुख की लालसा में ऐसे निर्णय लेते हैं, जिससे उनके जीवन का बहुत सारा समय और ऊर्जा नष्ट होती है। इस वृत्ति से बचने के लिए अपने शरीर, मन एवं बुद्धि को प्रशिक्षित करने का निर्णय लें।
यदि कोई हर दिन व्यायाम के समय टी.वी. पर क्रिकेट मैच या कोई कार्यक्रम देखने लगे… व्यायाम को कल पर टाल दे… व्यायाम से बचने के नित नए बहाने खोजने लगे तो वह छोटे कष्ट से बचकर तात्कालिक सुख तो प्राप्त कर लेगा लेकिन इसके परिणामस्वरूप उसे भविष्य में अनचाहा परिणाम ही मिलेगा। इससे या तो वह मोटा हो जाएगा या फिर उसे कोई शारीरिक व्याधि जकड़ लेगी। कहने का अर्थ यदि आप हर दिन व्यायाम करने का निर्णय लेंगे तो रोग के दूरगामी कष्ट से बच जाएँगे, साथ ही आपको संपूर्ण स्वास्थ्य भी प्राप्त होगा।
इस तरह जब आपके छोटे-छोटे निर्णय सही होंगे तब आपके बड़े निर्णय भी सही साबित होने लगेंगे।
आज स्वामी विवेकानंद को पूरा विश्व सलाम करता है क्योंकि उन्होंने जीवन में सिद्धांतों के आधार पर सही वक्त पर सही निर्णय लिए। उनके जीवन में भी कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया बल्कि सही निर्णय लिया। स्वयं से सही सवाल पूछा, ‘मुझे सुख-सुविधाओं से भरा संसार चाहिए या ईश्वर?’ जिसका जवाब पाकर वे सच्ची सफलता के शिखर पर पहुँच पाए। उनके द्वारा लिए गए निर्णयों और उनके कार्याें के कारण ही आज वे युवाओं के आदर्श कहलाए जाते हैं।
चौथा कदम- वृत्तियों से मुक्ति
स्वामी रामकृष्ण परमहंस से एक दिन उनके शिष्य ने पूछा, ‘आप हर दिन लोटा क्यों माँजते हैं?’ परमहंस का जवाब था, ‘यह लोटा नित्य माँजने पर भी मलिन हो जाता है। अंतर्मन की दशा भी ऐसी ही है। जब नित्य ही कुसंस्कार की मलिनता इस पर पड़ती है तो यह भी लोटे की तरह मैला हो जाता है। हमें अच्छे संस्कारों व विचारों से अपने अंतर्मन को माँजना चाहिए ताकि हमारा अंतर्मन मलिन न हो पाए और सदा चमकता रहे।’
इस उदाहरण में वृत्तियों से मुक्त होने का महत्त्व बताया गया है। हरेक के अंदर कुछ न कुछ गलत आदतें या वृत्तियाँ होती हैं। जैसे किसी व्यसन का आदी होना, वासना में उलझना, फेसबुक जैसी सोशल मिडिया पर समय बरबाद करना, पैसों का नियोजन न कर पाना, चाहतों के पीछे भागना, सुबह जल्दी न उठना, निरंतरता से व्यायाम न करना, महत्वपूर्ण काम निर्धारित समय पर पूर्ण न करना, खुद की असफलता का दोष दूसरों के गले मढ़ना आदि।
इंसान बाहरी दुनिया में चाहे कितनी भी बड़ी सफलता हासिल करे मगर जब तक उसकी आंतरिक दुनिया वृत्तियों से मुक्त नहीं होती तब तक उसे पूर्णता का एहसास नहीं हो सकता। क्योंकि किसी भी प्रकार की वृत्ति इंसान को मानसिक तौर पर दुर्बल बना देती है। इसलिए समय रहते अपनी वृत्तियों के प्रति सजग हो जाएँ।
पाँचवाँ कदम- ईमानदारी
सर सी.वी. रमण ने 1949 में ‘रमण रिसर्च इन्स्टिट्यूट’ की स्थापना की थी। उनकी इस संस्था में विज्ञान सहायक पद के लिए कई दावेदार इंटरव्यू के लिए आए थे। इंटरव्यू खत्म होने पर एक युवक, जिसे नहीं चुना गया था, रमण के पास आकर कहने लगा, ‘सर, गलती से आपके ऑफिसवालों ने मुझे अधिक यात्रा व्यय दे दिया था, जिसे मैं लौटाना चाहता हूँ।’ यह सुनकर रमण ने कहा, ‘तुम्हारी ईमानदारी देखकर मैं प्रभावित हुआ और अब यह पद तुम्हें ही मिलेगा। इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारी भौतिकी (हिूीळली) कमज़ोर है। वह तो मैं तुम्हें सिखा सकता हूँ। महत्त्वपूर्ण यह है कि तुम एक चरित्रवान इंसान हो।’
किसी भी सफलता का पाँचवाँ कदम है- ‘ईमानदारी’। ईमानदार रहने से आपकी 70% से ज़्यादा समस्याएँ सहजता से सुलझ जाती हैं। इसलिए स्वयं के साथ ईमानदार रहें। छोटे-छोटे कार्याें में भी जब आप ईमानदार बनेंगे, तब आगे चलकर सफल चरित्र का निर्माण होगा।
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