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एक बड़ी सी नदी के पार एक गाँव था। गाँव से बाहर कहीं भी जाने के लिए गाँववालों को अपनी-अपनी नाव का सहारा लेना पड़ता था, जिन्हें वे गाँव में ही मिलनेवाले बाँस से बनाते थे। सुबह सब गाँववाले अपनी-अपनी नाव लेकर जल्दी-जल्दी काम पर जाते और शाम होने तक लौट आते। एक बार गाँव में कोई मेहमान आया, जो इंजीनियर था। उसने नोटिस किया कि लोगों को रोज़ नदी पार करने में कितनी समस्या का सामना करना पड़ता है। जिनकी नाव पुरानी है, उनकी नाव टूटने का डर रहता है; जो लोग बूढ़े हैं वे ज़्यादा देर चप्पू नहीं चला पाते और बीच में ही थक जाते हैं; कमज़ोर, बीमार लोग ज़रूरी काम के लिए भी नदी पार नहीं जा पाते…। गाँववालों के पास इतने संसाधन भी नहीं थे कि बड़ी नाव या कोई स्ट्रीमर (नाव बनाने के काम आनेवाला झंडा) वगैरह खरीदें।
उस आदमी ने अपना इंजीनियरिंग कौशल लगाकर एक छोटा सा इंजन बनाया और उसमें एक नाव लगा दी। उस नाव के पीछे ऐसी व्यवस्था की जिससे बहुत सी नावें उसके साथ बाँधी जा सकें। ये इंजनवाली नाव आगे चलती थी और उससे बँधी बाकी नावें पीछे चलती थीं। हालाँकि लोगों को अभी भी चप्पू चलाने पड़ते थे लेकिन उतनी शक्ति नहीं लगानी पड़ती थी, जितनी पहले। साथ ही दो-चार नावें भी दूसरे किनारे पहुँच जाती थीं, जिनके नाविक नाव चलाने में असमर्थ थे। इस तरह से उस इंजन की मदद से सभी को, खासकर जो असमर्थ थे, उन्हें नदी पार करने में बड़ी सुविधा हो गई।
इस कहानी में कुछ इशारे छिपे हैं। यहाँ छोटी-छोटी नावें हैं आपके जीवन के अनेक छोटे-छोटे लक्ष्य, जो समय के साथ बनते, बिगड़ते रहते हैं। जिनके सामने कभी आप मज़बूती से खड़े रहते हैं तो कभी ढीले पड़ जाते हैं। इनमें से कुछ लक्ष्य दमदार, आपके रुचि अनुसार होते हैं, जिन्हें आप आसानी से पूरा कर लेते हैं। लेकिन जो लक्ष्य आपके स्वभाव से मेल नहीं खाते, उन्हें आप कोई न कोई बहाना देकर बीच में ही छोड़ देते हैं।
इन लक्ष्यों के साथ यदि आपके जीवन का बड़ा दृष्टिलक्ष्य जुड़ जाए तो ऊर्जा के साथ-साथ आपका उत्साह भी दुगुना हो जाता है, आपके सभी लक्ष्यों को बल मिलता है और वे पूरे हो पाते हैं। जी हाँ! दृष्टिलक्ष्य (लक्ष्य के पीछे का लक्ष्य) ही आपके जीवन का वह इंजन है, जो आपकी गाड़ी को किसी भी तरह खींचकर मंज़िल तक पहुँचा ही देता है। इसे एक और उदाहरण से समझते हैं।
कितने लोग होते हैं, जिन्हें अपने बढ़ते वज़न के कारण और ज़रूरत से ज़्यादा खाने के कारण स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं। वे बहुत बार खाने पर कंट्रोल करने का लक्ष्य बनाते हैं मगर नहीं कर पाते…। ऐसे ही लोगों की सहायता के लिए हर धर्म में अनेकों व्रतों-उपवासों, रोजे, नवरात्रों आदि का चलन है, जिसमें उन्हें समय-समय पर उपवास के लिए ईश्वर भक्ति का दमदार दृष्टिलक्ष्य दिया गया। दृष्टिलक्ष्य को दमदार बनाने के लिए उनके पीछे कहानियाँ गढ़ी गईं कि ‘फलाँ व्रत करने से ऐसा महान फल मिलता है… सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं… धन-वैभव की प्राप्ति होती है… जो ये व्रत नहीं करते, उनका नुकसान हो जाता है, जीवन में समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं…’ आदि।
कुछ लोग भगवान के डर से, कुछ कामनाओं की पूर्ति हेतु तो कुछ सच्चे भक्ति भाव से व्रतों, उपवासों का पालन करते हैं। अर्थात उन्हें भोजन पर कंट्रोल कर, पाचनतंत्र दुरुस्त करने के सामान्य लक्ष्य को, भक्ति का दमदार दृष्टिलक्ष्य मिलता है। जब तक वे अपने लिए खाना कम करने की कोशिश कर रहे थे, नहीं कर पा रहे थे लेकिन भगवान की बात आने पर बड़े से बड़ा व्रत भी कर जाते हैं और बार-बार करते हैं।
यही है दमदार दृष्टिलक्ष्य का प्रभाव, जो आपकी ऊर्जा और उत्साह बढ़ाकर, ऊँची उड़ान भरता है, कमज़ोर इच्छा शक्ति को बल देता है, लक्ष्य को प्रभावी बनाता है, आपको दूरदृष्टि देता है, जिस कारण आपके एक नहीं, सभी लक्ष्य सफल होते हैं।
दृष्टिलक्ष्य को और अधिक दमदार और फलदायी बनाने की तरकीब है, उसे अव्यक्तिगत (निःस्वार्थ) बनाना। अव्यक्तिगत् दृष्टिलक्ष्य न सिर्फ आपका भला करेगा अपितु लोक कल्याण भी करेगा। इससे आप ही नहीं बल्कि अन्य बहुत से लोग भी लाभांन्वित होंगे और ऐसा करना कोई कठिन बात नहीं है। इसके लिए आपको अपना दृष्टिलक्ष्य बदलने की ज़रूरत नहीं है, बस उसके पीछे की भावना बदलकर, उसे निःस्वार्थ बनाने की आवश्यकता है।
उदाहरण के लिए एक लड़का शेफ बनना चाहता है क्योंकि उसे खाना बनाने का शौक है। उसका लक्ष्य है कि वह देश का सेलिब्रिटी बने, उसे खूब पहचान और पैसे मिलें, जो उसका व्यक्तिगत लक्ष्य है। अब इस व्यक्तिगत लक्ष्य को अव्यक्तिगत् बनाया जा सकता है, यदि वह यह सोच रखे कि ‘मेरा बनाया हुआ खाना खाने से खानेवाले की चेतना बढ़े, उसे खुशी और संतुष्टि मिले। साथ ही मैं इस क्षेत्र में आगे आनेवाले युवाओं के लिए नई राह खोलूँ, उनका मार्गदर्शन करूँ’ तो यह अव्यक्तिगत् दृष्टिलक्ष्य होगा। क्योंकि इस दृष्टिलक्ष्य में सिर्फ वही नहीं बल्कि और बहुत से लोग लाभांन्वित हो रहे हैं। इस तरह से आप हर लक्ष्य के पीछे बड़ा अव्यक्तिगत् दृष्टिलक्ष्य जोड़ सकते हैं।
आइए, एक कंपनी का उदाहरण देखते हैं कि कैसे अपने काम को अव्यक्तिगत दृष्टिलक्ष्य देने पर न सिर्फ आपका बल्कि देश और समाज का भी लाभ होता है।
एक ऑटोमोबाइल कंपनी है। जिसका सी.ई.ओ. दृष्टिलक्ष्य रखता है कि हमारी अगली कार देश की बेस्ट कार होनी चाहिए। कंपनी में अलग-अलग डिपार्टमेंटस् हैं। जैसे डिजाइनिंग, प्रोडक्शन, टेस्टिंग, मार्केटिंग, एडवर्टाइटजमेंट, अकाउंट आदि। हर यूनिट अगर अपने-अपने लक्ष्य रखे तो उनका फोकस सिर्फ अपने काम को बेस्ट करने में ही होगा। जैसे डिजाइनर कहेंगे कि हम कार का ऐसा डिजाइन बनाएँगे, जो पहले कभी न बना हो… पूरी दुनिया में उसकी चर्चा हो। प्रोडक्शन यूनिट भी अपना बेस्ट देती है, इम्पोर्टेड पार्टस् का प्रयोग कर समय से पूर्व बेहतरीन कार बनाती है। कार आगे टेस्टिंग यूनिट को चली जाती है और फाइनल प्रोडक्ट बाज़ार में लाँच होता है। उसके बढ़िया विज्ञापन आते हैं। वह कुछ दिन बाज़ार में चर्चा का विषय बनती है और फिर पहले से बाज़ार में उपलब्ध अनेक कारों में से एक हो जाती है।
अब इस ऑटोमोबाइल कंपनी में एक नया सी.इ.ओ. आता है, जो अव्यक्तिगत दृष्टिलक्ष्य रखने में विश्वास रखता है। वह कंपनी के पूरे स्टाफ को इकट्ठा कर कहता है, ‘हमारी अगली कार ऐसी होगी जो पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगी, जिससे हमारा देश ऑटोमोबाइल सेक्शन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा। स्वदेशी तकनीक इस्तेमाल करने से कार की कीमत भी कम होगी, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा लोग उसे खरीद पाएँगे और उसका लाभ लेंगे। हम दुनिया को दिखाएँगे कि कम खर्च में बढ़िया कार कैसे बन सकती है। आगे चलकर पूरी दुनिया इस मॉडल को फॉलो करेगी, जिससे हमारे देश का नाम ऊँचा होगा। इस तरह से हमारी कार न सिर्फ देश में बल्कि विदेश में भी रोलमॉडल बनेगी। अब आप सब स्वयं को कर्मचारी न समझें बल्कि देश का सिपाही समझकर, अपने काम में जुट जाएँ और देश को ये कार सौगात के रूप में दें।’
नए सी.इ.ओ. की बात का सभी कर्मचारियों पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा। सभी पूरी ऊर्जा और जोश के साथ अपने-अपने काम में जुट गए। डिजाइनर सोचने लगे, ‘कार का डिजाइन ऐसा हो, जो दिखने में आकर्षक हो, साथ ही उसकी लुक से भारतीयता झलके और उसे बनाने में स्वदेशी पार्टस् का इस्तेमाल हो सके।’
प्रोडक्शन यूनिट ने भी अव्यक्तिगत् दृष्टिलक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही कार का निर्माण किया। उसके पार्टस् देश में ही बनाए गए, जिससे देश में नई तकनीकें विकसित हुईं और बहुत से लोगों को रोज़गार मिला। हर डिपार्टमेंट ने इस अव्यक्तिगत् दृष्टिलक्ष्य को पूरा करने में भरपूर सहयोग दिया; सिर्फ खुद को बेहतर रखने के बजाय दूसरे डिपार्टमेंट से सहयोग और समन्वय पर भी ध्यान दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह कार न सिर्फ देश में बल्कि दुनिया में मिसाल बनी और बहुत से लोगों का ऐसी कार लेने का सपना पूरा हुआ।
यह उदाहरण हमें सिखाता है कि किसी भी व्यापार के सफलता में आपके पास एक ऐसा महान अव्यक्तिगत दृष्टिलक्ष्य होना चाहिए, जिससे उस व्यापार का छोटे से छोटा कर्मचारी भी संघ से जुड़ा हुआ महसूस करे; दृष्टिकोण चाहे अलग रखे लेकिन दृष्टिलक्ष्य की सफलता में उसे अपनी सफलता नज़र आए। वह उसका हिस्सा बनकर सम्मानित और गौरान्वित महसूस करे, जिसके पूरा होने पर उसे पर्सनल सेंस ऑफ अचीवमेंट मिले।
जो कंपनियाँ ऐसा अव्यक्तिगत दृष्टिलक्ष्य रखती हैं, उन्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता और जो लोग अपने जीवन को किसी महान अव्यक्तिगत दृष्टिलक्ष्य से जोड़ लेते हैं, उन्हें भी सफल और महान बनने से कोई नहीं रोक सकता।
One comment
Suresh
Nice