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आत्मबल पाने के बाद लें नई सौगंध:
2016 नए साल का सरश्री द्वारा संदेश…
हममें से अधिकतर लोग नए साल के नए संकल्प लेते हैं। हम अपने स्वास्थ्य व आर्थिक उन्नति पर ध्यान देने की कई नई प्रतिज्ञाएँ करते हैं। ज़्यादातर ये संकल्प अधिक समय तक नहीं टिकते। बेहतर यह होगा कि हम ऐसी प्रतिज्ञाएँ लें जो हमें आत्मबल (आध्यात्मिक शक्ति) प्रदान करें। जब हम आत्मबल से संबंधित मौलिक संकल्प लेते हैं तब हम लिए गए संकल्पों पर आसानी से दृढ़ रह पाते हैं। जिससे हम संतुलित जीवन जी पाते हैं। नए साल के लिए निम्नलिखित चार प्रतिज्ञाएँ लें। ये ऐसी प्रतिज्ञाएँ हैं जिनका असर न केवल आध्यात्मिक बल्कि जीवन के हर क्षेत्र पर आपको दिखाई देगा।
पहला वचन – मन को हील (स्वस्थ) करें: संपूर्ण स्वास्थ्य वही है जहॉं मन और शरीर दोनों स्वस्थ हों। शारीरिक स्वास्थ्य पर कार्य किया जाता है परंतु लोग मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व को भूल जाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है कि मन से सभी ज़ख्मों को, अनचाही यादों को और नकारात्मक छाप को साफ करना। यह किया जा सकता है ‘क्षमा’ द्वारा। इस साल यह प्रण लें कि जब भी आप चिढ़चिढ़ापन, भय जैसी नकारात्मक भावनाओं को महसूस करें तो उन भावनाओं को ध्यान क्षेत्र (awareness) में लेकर, क्षमा मॉंगकर उन्हें मुक्त करेंगे। प्रण लें कि आप हर रोज़ स्वयं से क्षमा मॉंगकर, स्वयं को कर्म के बंधनों से मुक्त करेंगे। रोज़ रात को सोने से पहले दिनभर में आई नकारात्मक भावनाओं को सामने लाएँ जैसे गुस्सा, असहायता, डर, ग्लानि इत्यादि और उन्हें मुक्त करें। क्षमा के साथ-साथ आप उन्हें कह सकते हैं ‘जाने दो… जाने दो… कुछ भी पकड़कर मत रखो… मैं स्वयं को हर बंधन से मुक्त करता हूँ… मेरे अंर्तमन ने जिन भी नकारात्मक बातों को पकड़कर रखा है, मैं उन्हें ईश्वर को समर्पित करके और क्षमा मॉंगकर मुक्त कर रहा हूँ… जो भी हुआ उस वक्त की मेरी समझ और परिस्थितियों के अनुसार हुआ, वह अब भूतकाल है। जाने दो। मैं स्वयं को क्षमा करता हूँ। मैं स्वयं को प्रेम करता हूँ।’
नए साल में अपने मन को वचन दें कि आप उसे हील (स्वस्थ) करेंगे।
दूसरा वचन – भविष्य को वर्तमान से जोड़ें : हमारा भविष्य वर्तमान की क्रियाओं पर आधारित होता है। यदि हम मशीनी जीवन जीकर, वर्तमान में वही करते रहेंगे जो आज तक करते आए हैं तो हमारा भविष्य पकने लगेगा। इस तरह वह लचीला न रहकर, सक्त हो जाएगा। इस साल निरंतरता से कुछ समय यह सोचने पर व्यतीत करें कि आप कैसा भविष्य चाहते हैं? साथ ही यह भी सोचें कि आप ‘आज’ ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे आपके भविष्य को सही आकार मिले, वह आकार जो ईश्वर ने आपके लिए बनाया है। सबसे पहली चीज़ जो एक लीडर अपने लोगों के लिए या एक सी.ई.ओ. अपनी कंपनी के लिए कर सकता है, वह यही है कि भविष्य के बारे में सोचकर, आज कर्म किए जाएँ। इसी तरह वर्तमान, सुंदर भविष्य से जुड़ेगा। हम यही अपने जीवन के साथ भी कर सकते हैं। इंसान यदि ध्यान करते हुए भविष्य के बारे में सोचे तो उसे इंट्यूशन मिलेगा कि उसे वर्तमान में क्या बदलाव लाने चाहिए। इसे आप अपने हृदय से महसूस कर पाएँगे। जिन लोगों को यह असंभव लगता है, वे पहले भविष्य के बारे में शांति से सोचना शुरू करें। सोचें कि आप अपने भविष्य में क्या निर्माण करना चाहते हैं, परंतु यह मौन ध्यान में सोचें। जितना अधिक आप इसका अभ्यास मौन में करेंगे, भले ही कुछ मिनटों के लिए, उतना अधिक आप इसका आभास कर पाएँगे। फिर भविष्य में गोता लगाना आपको कोई कठिन या गूढ़ बात नहीं लगेगी बल्कि आप इसे बहुत ज़रूरी और प्रभावी अभ्यास के रूप में देखेंगे।
नए साल में अपने भविष्य को वचन दें कि आप उसे सुनेंगे।
तीसरा वचन – स्वयं को बेनकाब करें : कल्पना करें कि किसी ने स्वयं पर नकाब लगाया है और उस पर सोलह श्रृंगार किए हैं। आप उस इंसान पर हॅंसेंगे और कहेंगे कि ‘काजल आँखों में लगाना चाहिए न कि नकाब पर।’ यही हम अपनी भावनाओं के साथ करते हैं। जब आप गुस्से में होते हैं तो आप अपने गुस्से का दोष किसी और पर लगाते हैं। इस तरह आप अपने गुस्से से छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं। यह तरीका है अपने गुस्से के नकाब पर काजल लगाने का। गुस्से का सही कारण खोजने की कोशिश करें। हो सकता है कि आपके गुस्से के नकाब के पीछे आपका डर या कमज़ोरी छिपी हो। इस उदाहरण में ‘डर’ आपका असली चेहरा है, ‘गुस्सा’ उस पर चढ़ाया गया नकाब है और ‘काजल’ वह है जो आप गुस्से से निपटने के लिए करते हैं। गुस्सा और डर केवल उदाहरण के लिए बताए गए हैं। आप अपनी हर भावना के साथ यह होते हुए देख सकते हैं। अपनी भावनाओं को दबाने से अच्छा है कि आप असली भावना को सामने लाएँ और उसके साथ जीएँ। इस तरह बजाय असलियत पर नकाब चढ़ाने के, आप स्वयं के साथ सच्चे रह पाएँगे। जैसे-जैसे आप इसका अभ्यास करते जाएँगे, आपको समझ में आता जाएगा कि आपकी आक्रमकता का कारण शायद यह विचार है कि ‘लोग क्या कहेंगे?’ अपनी प्रतिक्रिया के पीछे छिपे विचारों पर मनन करके आप स्वयं को बेनकाब कर पाएँगे। इस तरह आप अपने गुस्से की मालकियत स्वयं ले पाएँगे। फिर आप दूसरों पर यह दोष लागना बंद करेंगे कि वे आपके अंदर जगनेवाली भावनाओं का कारण हैं। भावनाओं के मूल कारण पर मनन करना- यह आध्यात्मिक तकनीक बहुत व्यावहारिक और कारगर है। जैसे ही असली भावना आपके सामने आए, उसे क्षमा द्वारा मुक्त कर दें।
नए साल में स्वयं को वचन दें कि आप अपने असली चेहरे को नकाब के पीछे नहीं छिपाएँगे।
चौथा वचन – अपने महा सबक सीख लें : जीवन अपने सबक तब तक दोहराता है, जब तक आप उन्हें सीख नहीं जाते। इसका क्या अर्थ है? कुछ वृत्तियॉं बार-बार सिर उठाती हैं, कुछ घटनाएँ आपके जीवन में बार-बार होती हैं, जब तक आप उसमें छिपे सबक को सीख नहीं लेते। मान लें कि आपका सबक है ‘अनुशासित शरीर’ पाने का। जब तक आप यह सीख नहीं जाते जैसे अपने व्यवहार को सुधारना, तब तक आप ऐसी घटनाओं से झूझते रहेंगे, जो आपको बताएँगी कि आप अनुशासित नहीं हैं। कुछ सबक आपको सीखने हैं और कुछ महा सबक भी आपको सीखने हैं। वह एक घटना जो आपके जीवन में बार-बार हो रही है या वह एक वृत्ति जो बार-बार अपना सिर उठा रही है। उससे जो सबक आपको सीखना है, वही है आपका ‘महा सबक’। अपने महा सबक को जानना और उसे सीखकर स्वयं में परिवर्तन लाना, यही आपका पृथ्वी पर आने का उद्देश्य है। यदि आपका महा सबक है ‘सामना करना’ तो आपके सामने बार-बार ऐसी घटनाएँ आएँगी, जिससे आप पलायन करेंगे। यदि आपको सबक है ‘अहंकार को विलीन करना’ तो हर छोटी-छोटी बात से आपके अहंकार को ठेंस पहुँचेगी। कुछ लोगों का महा सबक हो सकता है साहस या सही वार्तालाप की कला सीखना। कुछ का महा सबक होगा धीरजवान बनना तो कुछ का होगा आत्मनिर्भरता। हर रोज़ कुछ समय इस बात पर मनन करें कि आपका महा सबक कौन सा है और उसे कैसे सीखना है। अपना महा सबक सीख लेने के बाद, आपको सच्ची संतुष्टि महसूस होगी।
नए साल में धरती माता को वचन दें कि आप अपना महा सबक ज़रूर सीखेंगे।
इन चार वचनों द्वारा आत्मबल बढ़ाएँ। फिर इस आत्मबल से आपके द्वारा ली गई हर प्रतिज्ञा पूरी होगी। 2016 इस साल में आप इन चार प्रतिज्ञाओं द्वारा अध्यात्म की ऊँचाइयों को छूएँ, यही शुभेच्छा है।
…सरश्री
Sishree is the founder of Tejgyan Global Foundation. For more information about the foundation and its retreats, visit tejgyan.org
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