इंद्रियों से परे, सच्चे स्वामी की पहचान
‘जीभ जली तो क्या हुआ, स्व का स्वाद तो मिला’, यह अलौकिक मुहावरा उन महात्माओं के लिए है, जिन्होंने स्वयं को जाना, जिनके पास आध्यात्मिक समझ थी।
जब लोग झूठ बोलकर बदनाम होते हैं और लाभ न मिलने पर दुःखी होते हैं तब वे कहते हैं, ‘जीभ भी जली और स्वाद भी न मिला’ मगर यहाँ जीभ जलने से तात्पर्य है, शरीर समाप्त हुआ लेकिन स्वअनुभव का स्वाद पाकर सच्चा जीवन जीया।
अब आपको क्या करना है? मोमबत्ती जल गई तो क्या हुआ… मोमबत्ती जलकर समाप्त होने से पहले जब तक प्रकाश है तब तक आपको खोज करनी है। अर्थात जितने साल आप पृथ्वी पर जीएँगे, उतने साल सत्य की खोज करें तब आपको स्व का स्वाद (स्वामित्व) मिलेगा।
आज तक पृथ्वी पर ऐसे कई स्व के स्वामी हुए हैं, जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर जीत प्राप्त की। उन्होंने स्व का स्वाद पाकर, स्व के प्रकाश में जीवन जीया और सत्य प्राप्त किया। हर समय में, हर युग में उन्होंने लोगों को जीवन रहते ही सत्य का साक्षात्कार करवाया।
इस पुस्तक में ऐसे ही एक सच्चे स्वामी के बारे में जानेंगे, जिन्होंने अपने जीवन में स्व का स्वाद पाया। उनका नाम है, स्वामी रामतीर्थ, जिहोंने अपने जीवन से लोगों को सत्य की खोज करने हेतु प्रेरित किया।
आशा है इसे पढ़कर आपके जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन होगा और सत्य की राह पर आपके जीवन का सफर शुरू होगा।
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