तीन दास
संत रवि, सूर, तुलसी दास
एकम की आस, प्यास और प्रिय प्रयास
ईश्वर का दास क्यों और कैसे बनें
1. ईश्वर पर भरोसा किस हद तक रखना चाहिए?
2. माया में सत्य को पहचानने की कला कैसे सीखी जाए?
3. मानसिक रूप से ईश्वर का दर्शन कैसे करें?
4. संसार में रहते हुए माया और राम दोनों को कैसे साधें?
5. भक्ति के लिए उपयुक्त उम्र क्या होनी चाहिए?
6. आसक्ति और प्रेम में क्या अंतर है?
7. ऐसी भक्ति कैसे प्राप्त करें, जो ईश्वर का दास बनाए?
7 जन्मों से या कहें 7 पीढ़ियों से मुख्यतः ये 7 सवाल लोगों को कहीं न कहीं कचोटते रहते हैं? क्या आपको भी ऐसे ही कुछ सवाल सताते हैं? क्या आपमें भी इनके जवाब जानने की जिज्ञासा जगी है तो यह ग्रंथ आपके लिए है, जो आपमें ईश्वर का दास बनने की प्रेरणा जगाएगा।
ईश्वर का दास यानी ईश्वर का ऐसा सेवक, जो अपने जीवन को ईश्वरीय आदेशों के अनुसार जीता है; जो अपनी इच्छाओं और अहंकार को त्यागकर, ईश्वर की सेवा करता है। यह समर्पित जीवन की वह भावना है, जहाँ इंसान खुद को भगवान के सामने एक साधारण दास मानकर, पूरी निष्ठा से उसकी भक्ति में रमता है। इसके उदाहरणस्वरूप तीन महान दासों की जीवनी को इस ग्रंथ में दर्शाया गया है। जिन्होंने निःस्वार्थ प्रेम, निष्ठा और समर्पण भाव से जनमानस में ईश्वरीय भक्ति की लौ जलाकर, वे ईश्वर के सबसे प्यारे दास बन गए। ये महान दास हैं- संत रविदास, संत सूरदास और संत तुलसीदास। इन्होंने अपनी सिखावनियों से सिद्ध किया कि जाति, कुल, खानदान या पद से ऊपर यदि आपका मन निर्मल, करुणामय और समर्पित है तो ईश्वर का दास बनने के लिए किसी बाहरी गंगा स्नान या विशेष कर्मकाण्ड की आवश्यकता नहीं है।
इनकी जीवनियाँ न केवल आध्यात्मिक उन्नति की राह दिखाती हैं बल्कि निःस्वार्थ जीवन जीने की कला भी सिखाती हैं।
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