मन चंगा तो हर जल गंगा
‘बाहर गंगा देखनी है तो पहले अपने मन को साफ करो, उसे स्वस्थ बनाओ। यदि तन में मन चंगा है तो घर के नल में ही गंगा है। आपकी जाति, कुल, खानदान, पद जो भी हो, अगर आपका मन निर्मल, करुणावान और भक्तिमय है तो मुक्ति के लिए किसी बाहरी गंगास्नान की ज़रूरत नहीं।’ यह सिखावनी है ज्ञान गंगा के भागीरथ संत रविदास की। इसके अतिरिक्त उनकी महत्वपूर्ण सिखावनियाँ थीं-
– जन्म से कोई श्रेष्ठ नहीं बनता, न ही नीच साबित होता है। कर्म से ही इंसान नीच बनता है और कर्म से ही इंसान हर जंग जीत सकता है।
– कर्म ही मुक्ति दिलाते हैं और बंधन भी बाँधते हैं इसलिए अच्छे कर्म करो, सदा कर्मरत रहो।
– भक्ति के लिए बुढ़ापे का इंतजार न करें, जिस भी उम्र में हैं, भक्ति शुरू करें।
– हाथ में काम, दिल और ज़ुबान पर राम का नाम रखकर सच्चे कर्म योगी बनें।
– सामाजिक और धार्मिक बुराइयों के सामने न झुकें । सत्य की ताकत के साथ दृढ़ता से खड़े रहें।
संतों की हर लीला इंसान को कुछ न कुछ सिखाने के लिए होती है। प्रस्तुत ग्रंथ में संत रविदास के जीवन की प्रचलित घटनाओं को, उनमें छिपी सीख के साथ संकलित किया गया है। साथ ही उनकी प्रसिद्ध रचनाओं को उनके मर्म सहित समझाया गया है ताकि पाठक वे सभी इशारे समझ पाएँ, जो संत रविदास उनके लिए धरोहर के रूप में छोड़कर गए हैं।
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