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हकीकत में कर्म क्या है? क्या इंसान के कर्मों के अनुसार ही उसका फल आता है? ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’ इस कहावत से आप वाकिफ होंगे लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? या इसके पीछे कुछ और रहस्य छिपा है?
कर्म से संबंधित लोगों के मन में ऐसे अनगिनत सवाल उठते हैं, जिनके जवाब कभी मिलते हैं, कभी नहीं मिलते या संतुष्टिभरे नहीं होते हैं।
कर्म के बारे में यदि सरल भाषा में ज्ञान मिले तो हर एक अपने कर्मों को योग्य दिशा देकर, उससे उत्तम फल प्राप्त कर सकता है। आइए, अब इस विषय की गहराई में प्रवेश करते हैं।
इंसान के जीवन में जो अनेकों कृपाएँ होती हैं, उनमें से अहम कृपा है- मनुष्य का जन्म मिलना। मनुष्य जीवन ऐसा करिश्मा है, जहाँ पर ईश्वरीय कृपाओं की, ईश्वरीय खेल की, ईश्वर के लीलाओं की, यहाँ तक कि खुद ईश्वर ही होने की अनुभूति उसे मिल सकती है। अनंत संभावनाओं से भरे-पूरे इस जीवन में ईश्वर की राह पर चलने की बजाय इंसान भाग्य-नसीब-कर्मरेखा जैसी बातों में अटक जाता है। जिससे वह असली कर्म क्या है और उसका फल किस तरह से आता है, इन महत्वपूर्ण बातों को समझ भी नहीं पाता। एक बार आप कर्म और उसके फल के बारे में सच्चाई जान जाएँगे तो उसके बाद आपका हर कर्म होश से ही होगा। परिणामतः उसका फल बेस्ट ही मिलेगा।
कर्म और उसका फल
कई लोगों की धारणा होती है कि प्रत्यक्ष में कुछ किया तब ही कर्म हुआ। कर्म के बारे में क्रिया करने के तौर पर ही सोचा जाता है लेकिन ऐसा नहीं है। कर्म तो लगातार होते ही रहते हैं। बिना कर्म के कोई रह नहीं सकता। चाहे आप कर्म (प्रत्यक्ष रूप से) कर रहे हो अथवा (अप्रत्यक्ष रूप से) न कर रहे हो; आप कर्म न करके, कर्म न करने का कर्म कर रहे होते हैं, जिससे फल तो आनेवाला ही है।
मानो, किसी ने ऐसा सोच लिया, ‘मैंने पूरी ज़िंदगी कुछ भी कर्म नहीं किया, न अच्छा किया, न बुरा किया इसलिए मुझे न नर्क मिलेगा, न ही स्वर्ग’ तो ऐसा नहीं होता। इंसान से कर्म करने अथवा न करने का कर्म होता ही है। इसे यू समझें आपने सही समय पर सही निर्णय लिया अथवा नहीं लिया, उसका भी फल आता ही है।
कर्म करते ही उसका फल शुरू होता है। जैसे आग में हाथ डाला, हाथ जल गया, बात खत्म हो गई। लेकिन कुछ कर्मों का फल देख पाने में समय लगता है। इसलिए ऐसी धारणा भी बन गई कि कर्म का फल लंबे समय के बाद मिलता है। इस संबंध में ऐसी कहानियाँ भी रची गईं, जिनमें किसी इंसान ने चौदह जन्म पहले कुछ ऐसा कर्म किया जो चौदह जन्मों के बाद पक गया। कर्म और उसके फल के बारे में ऐसी बहुत सारी कहानियाँ ग़ढ़ी गई, जिनमें इंसान के जीवन में होनेवाली बुरी घटनाओं को उसके पिछले जन्मों का असर… भाग्य का फेरा या बदनसिबी जैसे शब्दों में ढाला गया। जैसे, कोई मेहनत करके भी परीक्षा में फेल हो जाता है तब उसका भाग्य खराब था, ऐसा कोई कहता है। वहीं दूसरी ओर किसी ने बिलकुल मेहनत नहीं की लेकिन पास हो गया तब कहा जाएगा कि उसका लक तेजी में था। लेकिन इस तरह की बातें सिर्फ मन को अच्छी लगे, सुकून मिले इसलिए कही जाती हैं। वास्तव में क्या है? कर्म करने का फल नहीं मिलता तो फिर किस बात का फल आता है? यदि कर्म बंधन में नहीं डालता तो बंधन का कारण क्या होता है? इन सवालों के जवाब जब गहराई से जाने जाएँगे तो कर्म इस विषय के बारे में लोगों की सारी उलझनें सुलझ जाएँगी।
कर्म का इंटेन्शन ही फल लाता है
आज तक आपने हर कर्म के पीछे जो भी इंटेन्शन रखा, उसका ही फल आपको मिला। मगर वाकई इंटेन्शन क्या है? यह जानना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि इंसान जब कपट से भरा होता है तब वह बहुत ही उलझा होता है। जाग्रति में वह एक इंटेन्शन रखता है मगर बेहोशी में उसका इंटेन्शन दूसरा होता है। बोलने के लिए वह बोलता है कि ‘ऐसा हो जाए’ मगर बेहोशी में सोचता है कि ‘ऐसा न हो जाए।’ इस तरह इंसान के पास किसी भी काम के पीछे कम से कम दो इंटेन्शन होते हैं।
जैसे, एक इंसान कहता है, ‘प्रमोशन हो जाए’ मगर अनजाने में उसका विचार होता है कि ‘प्रमोशन हो जाने के बाद जो ज़िम्मेदारियाँ आएँगी, क्या मैं उन्हें संभाल पाऊँगा? शायद मैं नहीं संभाल पाऊँगा ऐसा लगता है।’ हालाँकि वह इंसान प्रमोशन के लिए लगातार कोशिश भी करता रहता है। मगर उसके बदले किसी और को प्रमोशन मिलता है तब वह कहता है कि ‘मेरा प्रमोशन होना चाहिए था, क्यों नहीं हो रहा?’ क्योंकि अनजाने में कहीं पर उसका इंटेन्शन हैं कि ऐसा न हो।
इस तरह दो इंटेन्शन- भिन्न-भिन्न उद्देश्य रखनेवालों का जीवन खंडित है, बँटा हुआ है। उसका मन, बुद्धि शरीर अलग-अलग कह रहे हैं और वह सुन कुछ और रहा है। परिणामतः उसके इंटेन्शन्स टुकड़ों में हैं, उनमें जोड़ नहीं है। जिससे उस इंसान में ईमानदारी का अभाव होता है। उसका खुद के उद्देश्यों से तालमेल नहीं होता। हालाँकि बाहरी कर्मों से इंटेन्शन समझ में नहीं आता। बाहर से लोगों की क्रिया कुछ अलग दिखाई देती हैं मगर उनका भाव वैसा नहीं होता।
ऐसे समय पर कौन सी इच्छा पूरी होती हैै? जिस इंटेन्शन में तीव्रता ज़्यादा होती है, वही इच्छा पूरी होती है। इसलिए इंटेन्शन साफ, स्मूथ, एक ही होने की आवश्यकता है। वाकई हम यही चाहते हैं या अंदर कुछ और चल रहा है, यह जानना बहुत ज़रूरी है।
हमेशा एक ही इंटेन्शन रहे
आपका इंटेन्शन सचमुच क्या है, यह जानने के लिए आपको सजग होकर देखना होगा कि जो वाणी कह रही है, वही आपकी क्रिया है क्या? जो आपकी क्रिया है, वही विचार है क्या? जो आपके विचार हैं, वही भाव है क्या? और जो आपके भाव है, वही वाणी से निकल रहा है क्या? इस तरह भाव-विचार-वाणी-क्रिया, इन चारों सतहों पर आपका इंटेन्शन एक ही होगा तब उसके फल से आपको आनंद ही मिलेगा। इसलिए बार-बार सजग होकर अपने इंटेन्शन पर काम करते रहें ताकि आप एक ही दिशा में (एक ही इंटेन्शन पर कायम) हो जाएँ।
बंधनों का कारण – वृत्ति
आप घर में अपना कीमती समय देकर घरवालों की चेतना बढ़ाना चाहते हैं। आपका उद्देश्य (इंटेन्शन) अच्छा है और वह आपके विचारों में भी है। इस उद्देश्य पूर्ति के लिए आप घरवालों से बातचीत शुरू करते हैं तब कुछ ऐसा होता है कि आप गुस्सा होते हैं, आपकी ही चेतना गिर जाती है। आप होश गवाँकर कुछ ऐसा बोलते हैं कि आपके नेक इरादों पर पानी फीर जाता है। देखा आपने! भाव और विचारों में इंटेन्शन एक ही होने के बावजूद वाणी और क्रिया में वह भिन्न होने के कारण उसका परिणाम दुःख ही लाता है।
इस तरह बेहोशी में बार-बार एक ही कर्म करने के कारण उसकी वृत्ति तैयार होती है। जैसे, गुस्से में किसी को उलटा-सीधा बोलना, काम को, ज़िम्मेदारी को टालना, दूसरों में दोष देखना आदि बातें करते-करते उस तरह का बरताव करने की आदत पड़ती है और यह आदत (वृत्ति) ही बंधन का कारण बनती है। इसलिए टेन्डेसीज् (वृत्तियों) को कैसे तोड़ा जाए, इसका अभ्यास करना अति आवश्यक है। क्योंकि टेन्डेसीज् टूटने के बाद ही आपका इंटेन्शन एक होगा और उसके बाद जो फल मिलेगा, वह मधुर ही होगा।
अब आपको पूरी तरह से समझ में आया होगा कि एक ही इंटेन्शन रखने से आपकी अपेक्षा अनुसार कर्मों के परिणाम मिल सकते हैं। साथ ही, एक ही गलती बार-बार करने की वृत्ति ही आपके लिए कर्मबंधन तैयार करती है। ये दो मूल बातें समझने के बाद एक और अहम बात आपको ध्यान में रखनी है।
कर्म का कानून
अब तक आपने समझा होगा कि कोई कर्म किया या करवाया गया, जिसका फल हम आज भुगत रहे हैं, ऐसा नहीं है। इन जवाबों से केवल राहत मिलती है। प्रत्यक्ष में पृथ्वी बनने के बाद जो नियम बनाए गए, वे हैं कर्म का कानून लेकिन यह कानून प्रेम में, खेल-खेल में बनाए गए। प्रेम की वजह से ही ये संसार चल रहा है। इसलिए आज हमें आवश्यकता है- गलत वृत्तियों को तोड़कर, उन्हें अच्छा बनाने की। जैसे, स्कूल-कॉलेज में एग्ज़ाम को कोई बुरा कर्म कहकर नहीं लेता लेकिन समस्या आई तो उसे बुरा कर्म कहते हैं। क्यों? देखा जाए तो वह भी एक तरह से परीक्षा ही है, आपकी परख है। इस परीक्षा में आप अण्डरस्टैण्डिंग (समझ) का कर्म करते जाएँगे तो निखरते हुए आगे बढ़ते जाएँगे। फिर कर्म और उसके भाग्य से मुक्त होकर पूरी समझ के साथ ही अपना हर कर्म करते रहेंगे।
इस विषय पर विस्तार से जानने के लिए पढ़ें- सरश्री द्वारा रचित पुस्तकें ‘कर्मात्मा और कर्म सिद्धांत’ और ‘गीता ज्ञान-कर्मात्मा से परमात्मा की ओर।’
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