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‘डर’ खाली यह शब्द सुनकर ही क्या होता है? धड़कन तेज चलने लगती है, हाथ-पैर काँपने लगते हैं, पसीना छूटता है और निर्णय लेने की क्षमता भी उस समय के लिए समाप्त हो जाती है। ‘डर का डर’ सामान्यतः सबको होता है। आज तक हम डर से ही डरते आए हैं। लेकिन यहाँ पर डर को नए नज़रिए से देखनेवाले हैं ताकि आज के बाद आप कह सकें कि ‘डर तू अपना काम कर…’ और उस वक्त आपको क्या करना है? आइए, देखते हैं।
* डर क्या है
डर मात्र एक ‘विचार’ है। ‘ऐसा हो गया तो… कहीं ऐसा न हो जाए… कहीं मैं मर न जाऊँ… मैं इंटरव्यू में फेल हो गया तो… पेपर लिखते वक्त मुझे जवाब याद नहीं आए तो…’ डर के एक विचार से इंसान ऐसा चित्र बना डालता है, जहाँ वह इस एक विचार को फलते-फुलते देखता है और उसके अनुसार जीवन में घटनाएँ आकर्षित करता है। जैसे एक इंसान ने पेपर में दर्दनाक एक्सीडेंट की खबर पढ़ ली और उसके मन में डर आया कि कहीं इस तरह का हादसा मेरे साथ न हो जाए। कोई अपने बीमार रिश्तेदार से मिलने अस्पताल में चला गया। रिश्तेदार की बीमारी के लक्षण जान लिए और वह सोचने लगा कि ‘ये लक्षण तो मुझमें भी हैं। इसका अर्थ मुझे भी यह बीमारी है क्या?’ यह विचार आते ही वह डर गया। ऐसे में विचारों के प्रति अपनी सजगता बढ़ाते रहना और डर के विचारों का अच्छे तरीके से इस्तेमाल करना, यही डर पर शिकस्त पाने का उत्तम तरीका है।
* डर भाड़े पर लाया है
डर आने के बाद आप जब भी ऐसा सोचेंगे कि इसे भाड़े पर लाया गया है तब डर से डरना बंद हो जाएगा। जो भी आपसे कह रहा है कि ‘तुम्हें कामयाबी नहीं मिलेगी… तुम्हें ऐसे ही जीना होगा… यह तुम्हारे बस की बात नहीं है…’ और यह सुनते ही आप डर जाते हैं तब उस वक्त ऐसा सोचें कि जो इंसान आपको डर के विचार दे रहा है, उससे आप डर भाड़े पर लाए हैं। कोई भी चीज़ आप भाड़े पर लाते हैं तब उस वक्त के लिए आप उसके मालिक और वह आपकी नौकर बनती है। डर के बारे में भी यही सोचना है कि आप डर के मालिक हैं और अब इसे लाया ही है तो इसका सही इस्तेमाल भी करना है।
आपके विचारों में जैसे-जैसे सकारात्मकता बढ़ने लगेगी, डर को पूरी तरह से देखना, समझना आप पसंद करेंगे। अब यदि डर को आपके या औरों के विचारों द्वारा भाड़े पर लाया ही है तब क्यों लाया है, इस पर भी जब मनन होगा तब डर को आप पूरी तरह देख पाएँगे।
* आपके साहस को सिद्ध करने के लिए डर की आवश्यकता
जब डर आता है तब आपमें कितना साहस है यह बात अपने आप ही पता चलती है। इसलिए डर आने के बाद सबसे पहले उसका स्वीकार कर लें, उससे लड़ाई-झगड़ा न करेें कि यह क्यों आया, नहीं आना चाहिए था। लड़ेंगे तो उसे और बढ़ते हुए देखेंगे इसलिए उसका स्वीकार करें और यह जान लेने की कोशिश करें कि डर आपसे क्या करवाने के लिए आया है?
सामान्यतः लोगों को स्टेज पर जाते ही बहुत डर लगता है। हाथ-पाँव काँपने लगते हैं, पेट में खलबली मचती है, बहुत प्यास लगती है। तब याद रखें कि डर के ये लक्षण, ये स्थितियाँ आपका साहस बढ़ाने के लिए आती हैं। कुदरत यही चाहती है कि कुछ डरावनी बातों से न डगमगाते हुए इंसान अपने धैर्य पर काम करे।
* डर का लाभ देखना सीखें
किसी भी इंसान को डर आता है तब वह उसकी ज़रूरत होती है। जैसे एग्ज़ाम का डर आता है तब ही पढ़ाई होती है। मानो, कोई अपने स्वास्थ्य के प्रति डर लेकर बैठता है कि ‘मुझे यह बीमारी न हो… मुझे आनुवंशिक बीमारी से गुज़रना न पड़े…’ तब बार-बार आनेवाला ऐसा विचार ही इंसान को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग करता है। फिर सेहत अच्छी रखने के लिए इंसान प्राणायाम, विचारायाम, मौनायाम का पालन करने लगता है। स्वास्थ्य के लिए हितकारक खान-पान करता है। अपनी शंकाओं के लिए डॉक्टर का मार्गदर्शन लेता है। ऐसा करते-करते उसकी सेहत अपने आप सुधरती है, उसके विचारों में भी परिवर्तन आता है और धीरे-धीरे बीमारी के बारे में उसका डर भी समाप्त होने लगता है।
किसी को मृत्यु का डर सताता है कि ‘कहीं मैं मर तो नहीं जाऊँगा? यदि ऐसा हो जाए तो क्या होगा?’ यह डर ही इंसान से खोज द्वारा, मनन द्वारा सत्य सामने ला सकता है। मृत्यु का डर रखनेवाला इंसान मृत्यु पर मनन करे, ‘मैं कौन हूँ’, इसकी समझ अनुभव से प्राप्त करे तब वह जान लेगा कि असल में मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु तो केवल धोखा है क्योंकि पृथ्वी जीवन के बाद भी जीवन है लेकिन पृथ्वी पर इंसान का शरीर ही उसकी पहचान होती है इसलिए शरीर के साथ आसक्ति रहती है। ‘यह शरीर, यह व्यक्ति रहे तो मैं ज़िंदा वरना मैं नहीं रहा’, यह बात इंसान के अंदर कहीं तो बैठ गई है। उसके आजू-बाजू में भी मृत्यु का नाम सुनकर डरे हुए लोग ही होते हैं। वास्तव में बाकी घटनाओं की तरह मृत्यु को भी एक घटना की तरह देखने की आवश्यकता है। मृत्यु की सही पहचान होगी तब ही उसके बारे में होनेवाला डर हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा और हम कह सकेंगे कि मृत्यु कभी भी आए, हम उसके लिए तैयार हैं।
इस तरह डर हमें अपनी खामियों पर मात करना सिखाता है इसलिए उसका स्वीकार करें। उसका लाभ लेते रहें, जिससे डर की ताकत धीरे-धीरे समाप्त होती जाएगी। साथ में यही समझ रखें कि आपकी ज़रूरत के अनुसार यह डर आया है। ज़रूरत जब खत्म होगी तब डर भी अपने आप समाप्त हो जाएगा।
* डर से बाहर आने के लिए कल्पना चित्र का उपयोग करें
जिस बात का आपको डर है, उस पर आपने मात की है और कामयाबी के साथ आप उससे बाहर आ गए हैं, यह आपको इस कल्पना चित्र में देखना है। जैसे किसी को लोगों के सामने बोलने का डर होता है तब वह कल्पना चित्र का इस्तेमाल कैसे करेगा, यह जान लेते हैं।
इसके लिए उसे सबसे पहले रिलैक्स होकर बैठना है। बंद आँखों के सामने उसे यह चित्र देखना है कि ‘मैं लोगों के सामने निडर होकर बात करता हूँ, अपनी भावनाओं को व्यक्त करता हूँ।’ बेहोशी में जो नकारात्मक विचारों को दोहराया गया है, जिससे यह डर निर्माण होकर बढ़ता ही जा रहा है, उसे समाप्त करना है और नए विचारों के साथ प्रैक्टिस शुरू करनी है। इसके लिए बंद आँखों के सामने चित्र देखना है कि ‘मैं लोगों के सामाने अपने विचार अच्छे से रख पा रहा हूँ।’ इस तरह अपना विश्वास बढ़ते हुए देखना है। इस सीन को बार-बार देखना है और उसके बाहर आकर खुद को देखना है। अर्थात उस सीन को दृष्टा भाव से देखना है।
यह कल्पना चित्र आपको लगातार कुछ दिनों तक देखना होगा। इसका अर्थ ही, सकारात्मक चित्र की प्रैक्टिस पहले आपको दिमाग में करनी होगी और बाद में उन बातों को अपने आप होते हुए देखना होगा। इस तरह एक-एक समस्या को लेकर इस तरह कल्पना चित्र के साथ उसे सुलझते हुए देखें।
* भक्कम (स्ट्राँग) बॅक अप हो तब डर से बिलकुल भी न डरें
डर के बारे में इतना जान लेने के बाद एक और महत्वपूर्ण बात को समझना भी ज़रूरी है। जिन लोगों का बॅक अप भक्कम होता है उन्हें डर से डर ने की आवश्यकता ही नहीं होती मात्र सजगता ज़रूरी होती है।
बॅक अप का अर्थ है, आप पृथ्वी पर क्या निर्माण करना चाहते हैं, पृथ्वी पर आपका जीवन किस तरह अभिव्यक्त हो उसका चित्र। वह जितना स्पष्ट होगा वह आपका बॅक अप। फिर आपके जीवन में जो भी घटनाएँ होंगी, उस बॅक अप के निर्माण के अनुसार ही होंगी और आपका चुनाव भी अपने आप उन्हीं बातों की तरफ होगा जो बॅक अप कह रहा है।
लोग चुनाव के बारे में दुविधा में उलझते हैं, सही चुनाव नहीं ले सकते लेकिन जब बॅक अप स्पष्ट है तब आपका चुनाव उस तरफ ही ले जानेवाला है। क्योंकि आपको इतना विश्वास आया है कि मेरा बॅक अप क्लिअर है इसलिए जो भी चुनाव होगा वह आपको उस दिशा में ही ले जाएगा। इस बीच जो भी दिखावटी सत्य आएगा आपको उससे डर नहीं लगेगा क्योंकि आप जानते हैं कि यह ऐसा दिख तो रहा है लेकिन इसका जो भी परिणाम आएगा वह बेस्ट ही होगा। जिससे आप आगे ही बढ़ेंगे।
डर से संबंधित इन सारी बातों को जान लेने के बाद, डर के पहलुओं को देखने के बाद अब आप भी साहस के साथ कह सकते हैं, ‘डर, तुम अपना काम करो… मैं, मेरा काम करते रहूँगा।’
~ सरश्री की शिक्षाओं पर आधारित
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