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हैपी सेंट वैलेंटाइन डे!
इस वेलैंटाइन डे पर असली और नकली प्रेम के बीच फर्क समझें, एक कहानी द्वारा।
एक इंसान अपने दिनभर के काम निपटाने के लिए घर से निकल रहा था। उसका अपना एक बेटा था। घर से निकलते समय उसने अपने बेटे को, मंदमति पड़ोसी के पास सँभालने के लिए सौंप दिया और बेटे का फोटो साथ में लेकर वह निकल पड़ा।
सबसे पहले वह बैंक पहुँचा। काउंटर पर उसने अपने बेटे का फोटो दिखाया, तब हमेशा सख्ती से पेश आनेवाले क्लर्क ने उसका हँसकर स्वागत किया। फिर वह अपने ऑफिस पहुँचा। जहाँ उसने बेटे का फोटो अपने बॉस को दिखाया तब हमेशा गुस्से में रहनेवाला बॉस उससे हँसकर बातचीत करने लगा। उसे सदा विवाद में उलझानेवाले उसके सहकर्मचारी भी उसकी सहायता के लिए सज्ज हुए। ऑफिस से घर जाते समय जब वह सब्ज़ी लेने पहुँचा तो सब्ज़ीवाले को भी अपने बेटे का फोटो दिखाया तब सब्ज़ीवाले ने उसे हमेशा से बेहतर सब्ज़ी दी। दिनभर अलग-अलग लोगों ने उस इंसान की जिस तरह मदद की थी, उसे लेकर वह बहुत खुश था।
इस तरह दिनभर में उसने जिन-जिन लोगों को अपने बेटे का फोटो दिखाया, वे सब उससे बड़े अच्छे से पेश आए। कई लोगों ने उसकी सलाह ली, कई लोगों ने उसकी मदद की। घर लौटकर जब वह अपने बेटे को लेने मंदमति पड़ोसी के यहाँ पहुँचा तो उसने देखा कि पड़ोसी की अवस्था में काफी सुधार था। अब वह मंदमति नहीं रहा था लेकिन बेटा बीमार हो गया था! खुशी में मग्न वह अपने बेटे को लेकर घर पहुँचा और ठान लिया कि अब वह बेटे का फोटो हमेशा अपने साथ ही रखेगा।
आप सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर कौन था वह बेटा? क्या नाम था उसका? बेटे का काम और नाम एक ही था, ‘प्रेम’।
दरअसल वह इंसान हम ही हैं। हम प्रेम नहीं बल्कि ‘प्रेम का फोटो’ साथ लेकर घूम रहे हैं यानी नकली प्रेम को साथ लेकर घूम रहे हैं।
असली प्रेम को वह इंसान किसी मंदमति के पास छोड़ आया था यानी असली प्रेम में ऐसी शक्ति होती है कि वह मंदमति में भी सुधार ला सका। वह इंसान जो नकली प्रेम (फोटो) साथ लेकर घूम रहा था, उससे भी उसे काफी लाभ हुए। लेकिन क्या वे लाभ सही थे? क्योंकि उसने स्वार्थ के लिए, अपने काम निपटाने के लिए प्रेम का उपयोग किया। तो क्या हम उसे प्रेम कह सकते हैं? कतई नहीं! वह तो स्वार्थ, लोभ, मोह और कपट का संमिश्रण हुआ। ऐसा प्रेम जताना न केवल औरों को बल्कि अपने आपको भी ठगना है।
जब लोग यह सोचकर शादी करते हैं कि हमें एक-दूसरे से प्रेम मिलेगा तो दरअसल वे प्रेम के फोटो को ही देख रहे हैं। सच्चा प्रेम, प्रेम देना होता है, न कि दूसरे से प्रेम माँगना। ऐसे में स्वयं से सही सवाल पूछना ज़रूरी है कि ‘क्या मैं वाकई सामनेवाले से प्रेम करता हूँ या केवल प्रेम पाने के लिए इस रिश्ते में हूँ?’
सच्चे प्रेम को जाने बिना जो रिश्ते बनते हैं, वे एक समय के बाद उलझ जाते हैं। उन्हें लगता है,शुरुआत में जो प्रेम था वो अब नहीं रहा। ऐसे में सच्चा प्रेम खोता चला जाता है, ठीक उसी तरह जिस तरह वह लड़का मंदमती पड़ोसी के साथ रहकर बीमार हो गया।
यह बहुत ज़रूरी है कि लड़का, लड़की आपस में यह कहें, ‘हम प्रेम करते हैं मगर हम सच्चा प्रेम करना चाहते हैं इसलिए साथ-साथ चलेंगे और आज नहीं तो कल हम सच्चे प्रेम को जान जाएँगे।’ अगर इस समझ के साथ रिश्ते जुड़ेंगे तो असली प्रेम को जानने के लिए ये ही रिश्ते बेहतर निमित्त बन पाएँगे। सच्चे प्रेम को जानने के लिए प्रेम का गुण स्वयं में लाना होगा। ईश्वर ने जीवन दे दिया मगर अब हमें अपने जीवन में प्रेम के गुण को लाना है।
प्रेम को बुद्धि से समझने के चक्कर में, हम हृदय से आ रहे प्रेम के प्रवाह को रोक देते हैं। इसलिए हमें अपनी बुद्धि से प्रेम की धारणाओं को हटाना होगा कि प्रेम में ऐसा होना सही और वैसा होना गलत।
प्रेम को स्वाभाविक रूप से बहने दें। फिर यही सच्चा प्रेम, गुणों के साथ-साथ दोषों को भी अपने अंदर समा लेगा। अतः सच्चे प्रेम का अनुभव करने के लिए हम अपने अंदर लचीलापन व क्षमा का गुण लाएँ। फिर हम प्रेम के फ्रेम में नहीं अटकेंगे जिसे हमने अपनी बुद्धि में बिठाया है। इसके बजाय, हम प्रेम को बिना किसी फ्रेम यानी बिना शर्तों के समझेंगे।
आइए, इस अवसर का सदुपयोग करें, जो सेंट वैलेंटाइन डे के रूप में हमारे सामने आया है। इस अवसर पर हम अपने रिश्तों को आइने की तरह देखें, जो आपका ही प्रतिबिंब हैं। अपने आपसे पूछें, ‘क्या मैं प्रेम के प्रति अपनी गलत धारणाओं को छोड़ने के लिए तैयार हूँ? क्या मैं प्रेम के फोटो को छोड़कर, सच्चे प्रेम को अपनाने के लिए तैयार हूँ? क्या मैं बेशर्त प्रेम को अनुभव करने के लिए तैयार हूँ?’
खुद से वादा करें कि हम ऐसे प्रेम को छोड़ देंगे जो कहता है, ‘नियम व शर्तें लागू’ और सच्चे प्रेम के एहसास को अपने अंदर खुलने व खिलने देंगे!
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Hemlata Vanjani
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