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एक बार बचपन में मीरा अपने दादाजी के साथ बाहर गई थी। रास्ते में उनकी मुलाकात एक साधु से हुई, जिनके पास श्रीकृष्ण की बहुत ही सुंदर मूरत थी। मूरत देखते ही मीरा ज़िद करने लगी कि ‘यह मुझे चाहिए’ पर साधु महाराज ने मूरत देने से इनकार कर दिया। दादाजी ने बालिका मीरा को समझाते हुए कहा, ‘आपके लिए हम ऐसी ही दूसरी मूरत ला देंगे’ लेकिन मीरा अपनी ही ज़िद पर अड़ी रही कि ‘नहीं, मुझे यही मूरत चाहिए।’ उस दिन उसने खाना भी नहीं खाया।
रात में साधु महाराज के सपने में भगवान श्रीकृष्ण आए और उस साधु से कहा, ‘लोगों को भक्ति प्रदान करना तुम्हारा परम धर्म है। तुम मेरी मूरत भी किसी को नहीं दे सकते तो मेरी भक्ति कैसे दे पाओगे?’ स्वप्न में मिला संकेत साधु महाराज समझ गए और सुबह होते ही वे तुरंत मीरा को मूरत देने निकल पड़े। श्रीकृष्ण की मूरत पाकर मीरा बहुत खुश हो गई।
प्रस्तुत कथा से यह गहरा बोध प्राप्त होता है कि अगर किसी चीज़ के प्रति आपके मन में भक्ति युक्त कृतज्ञता का भाव जागृत होता है तो वह चीज़ आपको अवश्य प्राप्त होती है।
कृतज्ञता यानी जो भी मिला है, उसके प्रति एहसानमंद होना… किसी चीज़ के प्रति धन्यवाद की भावना महसूस करना… मन में होनेवाली कृतार्थ भावनाओं का दिल से इज़हार करना। ‘कृतज्ञता’… ये केवल शब्द नहीं, ‘प्रेम भाव’ है। इसी से आपकी जीवनयात्रा को सही एवं नई दिशा मिलती है और आप अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधेरे से रोशनी की ओर, अंधश्रद्धा से आत्मश्रद्धा की ओर, आंतरिक संघर्ष से परमशांति की ओर, असफलता से सफलता की ओर और अस्वास्थ्य से स्वास्थ्य की ओर बढ़ते हैं।
जब आप अपने दोनों हाथ खोलकर, खुलकर कुदरत (ईश्वर) से कहते हैं, ‘मुझे जीवन में आज तक जो भी मिला है, उसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ, एहसानमंद हूँ… आपका बहुत-बहुत धन्यवाद’ तो कुदरत आपको सब कुछ भरपूर मात्रा में देती है। अर्थात जिस चीज़ के प्रति आपके मन में कृतज्ञता का भाव उठता है, वह चीज़ बढ़ती है।
कुदरत का नियम है कि वह आपको हर बीज का फल कई गुना बढ़ाकर वापस देती है, फिर चाहे वह बुराई का बीज हो या अच्छाई का। यदि आप कुुदरत को धन्यवाद के रूप में कृतज्ञता का बीज देंगे तो वह उसे आपको लौटाएगी, वह भी कई गुना बढ़ाकर।
हर चीज़ को धन्यवाद दें
यदि आप कृतज्ञता की शक्ति का अदृश्य मगर सर्वोत्तम लाभ लेना चाहते हैं तो आज से, अभी से सभी चीज़ों को धन्यवाद देना शुरू करें। सुबह उठें तो सूरज को धन्यवाद दें… नया दिन दिखाने के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें… भोजन के लिए किसान को, कुदरत को और जिसने खाना पकाया, परोसा उसे भी धन्यवाद दें… जिस धरती का सहारा लेकर आप चलते हैं, उसे धन्यवाद दें… !
अल्बर्ट आइनस्टाइन एक प्रतिभाशाली, रचनात्मक वैज्ञानिक थे। उनसे जब उनकी सफलता का राज़ पूछा गया तब उन्होंने कहा, ‘मैं हर चीज़ के लिए दिल से धन्यवाद देता हूँ, बस!’ जब भी उनकी कोई सहायता करता था तब उस इंसान के प्रति आइनस्टाइन के मन में दिनभर में सौ से अधिक बार धन्यवाद उठते थे।
विश्व के हर धर्म, मजहब ने ‘पॉवर ऑफ ग्रॅटिट्यूड’ को महत्त्व दिया है। पुराने जमाने में तो हर वैज्ञानिक, हर खोजी (सत्य की खोज करनेवाला), हर आविष्कारक और दार्शनिक ‘कृतज्ञता’ के भाव में ही रहते थे। मगर वक्त के साथ अधिकांश लोग इस शक्ति को जैसे भूल ही गए। इसी कारण उनके जीवन में हर चीज़ की कमी यानी ‘अभाव की भावना’ तैयार होती गई।
अच्छा करियर, सच्चे मित्र, सच्चा जीवनसाथी, सुखी परिवार, प्रेम, शांति, आनंद, समृद्धि, समय, स्वास्थ्य, खुशी, पैसे, रिश्तों में मिठास, तन और मन में भरपूर ऊर्जा, सफलता के शिखर पर ले जानेवाले गुण, जीवन की सुंदरता बढ़ानेवाला ज्ञान, आध्यात्मिक समझ… ऐसी कई सारी चीज़ें कुदरत में भरपूर हैं और सभी के लिए हैं। जो इनके प्रति सदैव कृतज्ञ रहते हैं, उन्हीं के जीवन में सब कुछ भरपूर आता है। अगर कृतज्ञता की शक्ति आप आज ही पहचान गए तो आपका भविष्य सफल और शक्तिशाली होगा। जिसमें न केवल धन बल्कि ध्यान भी होगा… न सिर्फ जानकारी बल्कि समझ भी होगी… न केवल सफलता अपितु सजगता भी होगी…!
ऐसी अद्भुत शक्ति का उच्चतम लाभ लेने के लिए अपनी डायरी में सारी नियामतों को गिनकर लिख लें। यदि आप छोटी से छोटी चीज़ के प्रति भी कृतज्ञ रहते हैं तो कुदरत आपकी ओर सर्वोत्तम चीज़ें भेजना शुरू करती है। जीवन की यात्रा में कई लोग आपकी सहायता कर रहे हैं, कई चीज़ें आपके लिए मददगार साबित हो चुकी हैं, कई रिश्तेदार आपकी खुशी के लिए प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सभी प्लैनेट्स, सूरज, चंद्रमा आपका जीवन सुंदर बना रहे हैं। फिर भी इंसान का मन अकसर ‘यह कम है’ या फिर ‘यह और ़ज़्यादा होना चाहिए था’, जैसे विचारों में अटककर समृद्धि के बहाव में पत्थर डाल देता है। उसे लगता है, ‘मैंने यदि किसी को कुछ दिया तो मेरे पास जो है, वह चला जाएगा या कम हो जाएगा।’ इस वजह से वह नए प्रयोग, नए विचार, नई प्रार्थना करना ही नहीं चाहता और धन्यवाद देने में भी सदा कंजूसी करता है।
सोचें, किसान अगर अपने खेत में समय पर बीज डालने में कंजूसी करे तो आप उसे क्या कहेंगे? यही कि बीजों की बचत करके उसने कुदरत को काम करने का मौका ही नहीं दिया। कुदरत यानी ‘नियती’, ‘ईश्वर’, ‘गुणक (मल्टिप्लायर)’, जो हर एक चीज़ को कई गुना बढ़ाकर आपको वापस देती है। इसलिए सर्व प्रथम योग्य रूप से बीज बोएँ यानी अपनी नियामतें लिखकर उन्हें धन्यवाद दें। जैसे-
1) आपका स्वास्थ्य, शरीर का हर अंग
2) आपके पास होनेवाला धन
3) जीवन के सभी रिश्ते, आपके मित्र, शुभचिंतक
4) कुदरत में स्थित सूरज, पृथ्वी, चंद्रमा, समुंदर, नदियाँ, झरने, पशु-पक्षी, फूल-फल, पेड़-पौधे, पहाड़, प्राणवायु…!
5) आपका घर, घर की सभी चीज़ें जैसे- आपका फर्निचर, मोबाईल, कंप्यूटर, टी.वी., आपका पलंग… हर वह चीज़ जिसके इस्तेमाल से आपको सुखद अनुभव होता है।
6) आपकी गाड़ी, साइकिल जिसके सहारे आप कहीं पर भी आसानी से पहुँच जाते हैं।
7) आपको मिलनेवाली पुस्तकें, मैगज़ीन जो आप तक ज्ञान पहुँचाने में निमित्त बनती हैं।
आप इस सूची को जितना बढ़ाएँगे, उतना कम ही हैं क्योंकि ऐसी अनगिनत चीज़ें आपकी नियामतें हैं। नियामतोें को गिनें और धन्यवाद देने में कभी भी कंजूसी न करें ताकि देनेवाला (कुदरत, ईश्वर, सेल्फ) आपको हर चीज़ भरपूर और सहजता से दे सके।
इसी के साथ अपने सभी रिश्तेदारों, कुदरती सुंदरता, नीले आसमान, पूरी पृथ्वी और ब्रह्मांड को कहें,
‘मेरे जीवन में होने के लिए आपका धन्यवाद…
Thank you for being in my life!’
यही है ज़िंदगी के सफर को ‘सुहाना’ बनाने का राज़।
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