सबकी सोच से बड़ा होता है सत्य
सदियों से इंसान सृष्टि के रहस्य को खोजने में लगा हुआ है। वह नहीं जानता कि सत्य हमेशा इंसान की सोच से बड़ा होता है। जैसे, हम सोचते हैं कि हमारे भीतर सत्वगुण, रजोगुण व तमोगुण पलते हैं। लेकिन सत्य यह है कि इन गुणों के कारण हम पलते हैं। प्रकृति के इन गुणों से सारी सृष्टि की रचना हुई है, जिसमें मनुष्य भी शामिल है। ये गुण ही मनुष्य को चलायमान करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में आप जानेंगे कि कैसे आप गुणातीत होकर सारे सूत्र अपने हाथ में लेकर, गुणों का आवश्यकतानुसार उपयोग करके उत्तम गीता (पुरुषोत्तम) प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात जहाँ से इस सृष्टि की रचना हुई उस अवस्था का अनुभव कर सकते हैं। इस पुस्तक में कदम दर कदम आप जानेंगे-
* रज, तम और सत किस तरह इंसान को बंधन में बाँधते हैं?
* इन तीन गुणों के गुण-दोष क्या हैं? इनका लाभ कैसे उठाएँ?
* ज़रूरत पड़ने पर इन तीनों को कैसे घटाना या बढ़ाना चाहिए?
* तीनों गुणों का अतिक्रमण करके गुणातीत अवस्था तक कैसे पहुँचे?
* पुरुषोत्तम, सबसे उत्तम कौन है?
* गुणातीत अवस्था से पुरुषोत्तम को तत्त्व से कैसे जानें?
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