‘न बोलना’ नहीं, ‘न सुनना’ भी बड़ी समस्या है
ईश्वर ने हमें दो कान, एक जुबान और उनके बीच दिया है एक मस्तिष्क। इसका अर्थ पहले पूरा सुनें, सही तरह से अंदर समझें, फिर बाहर बोलें। लेकिन क्या हम इनका इसी तरह इस्तेमाल करते हैं? हाँ, शायद नहीं या कभी-कभी!
अगर हम अपने बॉस, पड़ोसी, पति-पत्नी, कर्मचारी या सहकर्मियों को ध्यान से सुनते होते तो सभी के साथ हमारा रिश्ता प्रेमभरा, भाईचारे का होता। रिश्तों को लेकर, हमारे जीवन की आधी समस्याएँ सही सुनने के साथ ही हल हो गई होतीं।
अपनी बात को सही तरीके से लोगों के सामने पेश करना कम्युनिकेशन है लेकिन यह आधा सच है। पूर्ण कम्युनिकेशन का मतलब है, ‘सही और सही तरीके से बोलना और पूर्ण सुनना।’
कहने का अर्थ यह है कि अपनी बात सही ढंग से प्रस्तुत करने के साथ-साथ, सामनेवाले को पूरे ध्यान और दिल से सुनना भी कम्युनिकेशन का अनजान लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा है। आइए, इस पुस्तक से इस अनजान रहस्य को जान लें और इससे सीखें-
* सुनने से रिश्तों में सुधार लाकर, जीवन में विकास कैसे करें?
* आधा या बुरा नहीं बल्कि पूरा कैसे सुनें?
* सोलह सवालों से अपना निरीक्षण कैसे करें?
* एक राजा की तरह कैसे और क्यों सुनें?
* शब्दों के पीछे छिपे भावों को कैसे सुनें?
* कान दान करने के तरीके और यह दान कैसे करें?
* आपका मन और शरीर भी कुछ कह रहे होते हैं। उनकी भाषा कैसे सुनें?
* सुनने का छाता, कैसे सही दिशा में खुला रखें?
इस पुस्तक का उचित लाभ लेते हुए, अपने अंदर सही व संपूर्ण सुनने की कला विकसित करें।
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