हम अपना जीवन यूँ ही गुजार देने के लिए नहीं आए हैं बल्कि कुल-मूल लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें जीवन मिला है। कुल-मूल लक्ष्य यानी पृथ्वी लक्ष्य। इसे प्राप्त करने के लिए सत्य की प्यारी खोज अनिवार्य शर्त है। जिस प्रकार समुद्री सीप को मोती पाने के लिए, हंस को उस मोती को चुगने के लिए और चातक को प्यास बुझाने के लिए सिर्फ बारिश की बूँदों का इंतजार रहता है। उसी प्रकार ज्ञान से परे तेजज्ञान को प्राप्त करने के लिए ऐसे ही त्याग की अपेक्षा की जाती है। यह तेजज्ञान निराकार की अनुभूति से प्राप्त होता है। प्रेम, आनंद और मौन की अभिव्यक्ति ही निराकार के गुण हैं।
इस पुस्तक में इसी विषय को केंद्रित कर अज्ञानता के पथ पर भटके लोगों को कुल-मूल लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग दिखाया गया है। मुख्य रूप से पॉंच खण्डों में विभक्त इस पुस्तक द्वारा निराकार के आकार से लेकर महाशून्य, स्वज्ञान की विधि तथा ब्रह्माण्ड के खेल तक पाठकों को विचरण कराया गया है।
इस पुस्तक के नियमित अध्ययन से निराकार की संतुलित समझ और समर्पण तथा संकल्प की भावना मजबूत होती है। सरश्री के प्रवचनों का यह संकलन समझ (प्रज्ञा) की शक्ति जाग्रत करने की एक सफल कुंजी है।
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