छोड़ो डर, चिंता – बनो निडर लीडर बच्चा
जब इंसान, ‘कुछ बुरा न हो जाए’ की बातों को बार-बार सोचकर, अपनी कल्पनाओं में उन बातों को होते हुए देखने लगता है तब उसे चिंता होने लगती है। यही चिंता जब बढ़ जाती है तो डर का रूप ले लेती है। चिंता और डर एक चक्र की तरह चलते हैं। चिंता से डर और डर से ज्यादा चिंता शुरू हो जाती है। ये दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। जो लोग डर पर काबू नहीं कर पाते, वे जीवन में कभी सफल नहीं होते। जीतना है तो डर को हराना होगा। जो होगा खुद में होश (अवैरनेस), जोश (हिम्मत) और विश्वास जगाकर।
जो बच्चे डर या चिंता को संभाल नहीं पाते, उनका आत्मविश्वास कम होता चला जाता है और वे घटनाओं को सही ढंग से नहीं देख पाते। इसलिए मनन करें-
1. आपने कब-कब डर की वजह से बहाना बनाकर किसी काम को करने से मना किया?
2. डर के दुश्मन कौन-कौन हैं?
3. क्या आपको लगता है कि डर आप सबका रक्षक और दोस्त भी हो सकता है?
4. क्या आपको परवाह और चिंता करने में अंतर पता है?
5. क्या डर और चिंता होने पर आपने कभी ईश्वर को याद किया है? उससे प्रार्थना की है? यदि ‘हाँ’ तो क्या प्रार्थना से आपको समाधान मिला है?
इस किताब को पढ़ने के बाद आप डर को एक दोस्त के रूप में देख पाएँगे। डर की भावना आने पर उसे समझकर, उसका सही उपयोग कर पाएँगे। चिंता और डर के दुष्चक्र को तोड़ पाएँगे। चिंता पर चिंतन करके तथा डर को हराकर, आप अपने कार्य को सफल बना पाएँगे।
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