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एक राज्य का राजा काफी दिनों से बड़ा दुःखी था। कईं इलाज करवाने के बावजूद राजा का दुःख कम न हुआ। फिर राज्य के एक सज्जन ने राजा को ‘खुश इंसान का कुर्ता’ पहनने की सलाह दी। राजा के सिपाही तुरंत ही ऐसे इंसान की तलाश में निकल पड़े जो पूर्णतः खुश है। लेकिन देखा कि सभी को कुछ न कुछ दुःख था ही। ‘अब क्या करे?’ इस सोच में सिपाही राज्य की सीमा से काफी दूर तक जा पहुँचे तब उन्हें बाँसुरी की मधुर आवाज़ सुनाई दी। देखा तो कंबल लपेटकर, आँखें मूँदकर एक ग्वाला पेड़ के नीचे बैठा बाँसुरी बजा रहा था। उसके आजू-बाजू में गायें चारा खा रही थीं और पूरा माहौल बाँसुरी की सूरों से गूँज रहा था।
उस ग्वाले को देखकर सिपाहियों को लगा कि हो न हो यही वह मस्तमौला इंसान है, जो खुश है। पूछताछ करने पर पता चला कि वाकई ग्वाला हर चिंता, व्याकुलता, दुःख से परे था। अब तो राजा की समस्या सुलझ जाएगी, ऐसा सोचकर सिपाहियों ने उसे सारी हकीकत बताई और उसका कुर्ता माँगा। बदले में इनाम के रूप में उसे सुवर्ण मुद्राएँ देने का आश्वासन भी दिया। इस पर ग्वाले ने कहा, ‘इनाम के लिए नहीं बल्कि महाराज की समस्या दूर करने के लिए इतना तो मैं अवश्य करता। लेकिन मेरे पास तो कोई कुर्ता है ही नहीं। मैं तो अपने गुरुजी के कारण खुश हूँ।’ ऐसा कहकर राजा के लाइलाज दुःख की दवा पाने हेतु उसने उन्हें अपने गुरुजी के पास जाने की सलाह दी।
अब राजा उस ग्वाले के गुरुजी के पास गया। गुरुजी ने राजा को दुःख के सारे पहलुओं का दर्शन करवाया तथा दुःख को सही ढंग से देखने का तरीका भी बताया, जिससे राजा पूरी तरह से दुःख मुक्त हो गया। आइए, इस लेख के ज़रिए हम भी उन बातों को जानते हैं, जिससे राजा आनंद से भरपूर जीवन का लाभ ले पाया।
* दुःख का कारण समझें: दुःख जब आता है तब सबसे पहले उसका कारण जानना ज़रूरी होता है। जैसे, ‘अपना देश क्रिकेट मैच हार गया’ इस बात पर यदि कोई दुःखी हुआ तो उसे देखना होगा कि ‘क्या वाकई मेरे देश के हारने का मुझे दुःख हुआ? या ‘हम ही जीतेंगे’ यह मेरा अनुमान गलत निकला इस वजह से दुःख हुआ?’ इस प्रकार अपनी छवी या इमेज के टूटने से, ‘मेरे’ की आसक्ति या इच्छा के टूटने से दुःख होता है।
कई बार तो लोगों को औरों की खुशी से दुःख होता है। इसलिए दुःख आते ही उसका कारण ढॅूंढ़ेंगे तो आगे बढ़ने का रास्ता भी सहजता से मिलेगा।
दुःख आता है तो ‘मैं दुःखी क्यों हूँ’ इस विचार से इंसान और दुःखी होता है। मतलब वह दुःख का दुःख करता है। लेकिन जब कोई इस वहम को दूर कर, मान्यता के चश्मे को उतारकर देखेगा तो दुःख का कारण जानकर आगे बढ़ेगा।
* दुःख के प्रति अपनी संवेदनशीलता बढ़ाएँ: दुःख का कारण जानने के लिए उसके प्रति अपनी संवेदनशीलता बढ़ानी होगी। इसका अर्थ है, दुःख को पूरी तरह से देखना होगा, जानना होगा। यदि ऐसा नहीं किया तो दुःख में ही अटकने की, उसमें ही रहने की संभावना बढ़ेगी। आप संवेदनशील होकर दुःख को देखेंगे तो दुःख का कारण भी जान जाएँगे, साथ ही उसके और पहलुओं को जानने के लिए तैयार हो जाएँगे।
* आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता: दुःख के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए आपको आत्मनिरीक्षण करना होगा। ‘ऐसा मेरा कौन सा शब्द है या प्रतिसाद जा चुका है या कौन सा कर्म है अथवा कौन सी आदत है, जिसकी वजह से मैं यह दुःख भोग रहा हूँ?’ यह सवाल अपने आपसे पूछकर, जब आप खुद का निरीक्षण करेंगे तब किस बात से आपको दुःख मिला है, यह सच्चाई सामने आएगी। इसके बाद आप खुद (अपनी इंद्रियों) को अनुशासित कर पाएँगे ताकि बार-बार होनेवाली दुःख की पीड़ा समाप्त हो जाए और आपके जीवन में खुशी बरकरार रहे।
खुद को अनुशासित करने के लिए आपको निम्न बातों का खयाल रखना होगा।
- दुःख का सामना करें: आम तौर पर लोग दुःख से भागना पसंद करते हैं क्योंकि उसका सामना करने का तरीका, दुःख के सामने डटे रहने का रास्ता लोगों को मालूम नहीं होता। आप दुःख का सामना करना सीखेंगे तो जीवन में, स्वास्थ्य में, रिश्तों में जो कुछ ऊपर-नीचे हो रहा है, उसे आप समझ पाएँगे।
- अपना चस्का ढूँढ़ें: दुःख से भागने के लिए इंसान कुछ न कुछ चस्का लगा लेता है। जैसे, कोई बार-बार खाना पसंद करता है तो कोई शॉपिंग के लिए जाता है। कोई लगातार टी.वी. या इंटरनेट पर सिनेमा देखते रहता है। अब आपको अपना चस्का ढूँढ़ना है ताकि दुःख आने के बाद आप उससे भागने के लिए क्या-क्या करते हैं, यह आपको पता चले।
- सही चुनाव हो: दुःख आने पर आपमें शारीरिक, मानसिक तौर पर क्या-क्या बदलाहट होती है, यह देखने से आपकी सहनशक्ति बढ़ेगी और आप दुःख को धीरज के साथ सहन करना सीखेंगे। दुःख सह लेने के बाद ही आप सही चुनाव (योग्य कर्म) कर सकते हैं।
* दुःख के आसुओं की समझ: सही चुनाव करने के लिए आपको अपने दुःख के आसुओं को समझना होगा। आम तौर पर इंसान दुःख में खुशी की ही माँग करता है। उस वक्त आपको यह समझ (आस्था) रखनी होगी कि मेरी खुशी की इच्छा पूरी होने जा रही है। इस समझ को आप बल देंगे तो देखेंगे कि कुछ अच्छा सामने आ रहा है। क्योंकि हर समस्या का, दुःख का समाधान आपके आजू-बाजू में ही होता है। लेकिन आँखों में आसूूँ आने के कारण अर्थात नकारात्मकता की वजह से सुलझन की स्थिति दिखनी बंद हो जाती है। इसलिए दुःख में खुद को तुरंत याद दिलाए कि ‘मुझे दुःख के आँसू पोंछकर खुशी से देखना है।’ आप दुःख में भी सकारात्मकता को अपनाएँगे तो आपकी आँखों में खुशी ही झलकेगी, साथ ही आपको दुःख से बाहर निकलने का रास्ता भी मिलेगा।
* दुःख में उपहार छिपा होता है: ‘जीवन में दुःख का आना सामान्य बात है इसमें कुछ अनोखा नहीं है’, यह एक बार पक्का करने के बाद दुःख को देखने का आपका नज़रिया बदल जाएगा। दुःख को चारों ओर से देखने पर आपको उसमें छिपे कईं राज़ नज़र आएँगे। जैसे- दुःख विकास की सीढ़ी है, सीख है, जोकर (आनंद का कारण) भी है। दुःख खुशी का रास्ता है, अपनी क्षमताओं को बढ़ाने का तरीका है, चुनौती है। इस तरह यदि आपने दुःख में छिपा तोहफा देख लिया तो उसे पीठ नहीं दिखाएँगे।
सामान्य तौर पर इंसान जब दुःख से घिरा रहता है तब उससे मुक्त होने के लिए अंदर से पूरी लगन के साथ प्रार्थना करता है कि ‘चाहे कुछ भी हो मुझे इस व्याकुलता (दुःख) से बाहर आना ही है। मेरे दुःख समाप्त करके नई शुरुआत करनी ही है।’ तब उस प्रार्थना को बल मिलता है। जिससे इंसान आगे बढ़ता है। दुःख को देखने का मात्र तरीका (दृष्टिकोण) बदल देने से उसकी ताकत समाप्त हो जाती है और उसमें छिपी हुई सच्चाई सामने आती है। यह सच्चाई कि वह दुःख कौन सा उपहार लेकर आया है। जिसे पाने के बाद दुःख, आनंद में परिवर्तित हो जाता है।
* आनंद पास है: छोटी सी बात से लेकर, गहरे सदमे तक का दुःख क्यों न हो, आपको हमेशा एक पंक्ति याद रखनी है। वह है, ‘आनंद पास है, दुःख फेल है।’ दुःख में इस पंक्ति को मन ही मन विश्वासपूर्वक दोहराने से आप अपनी भावनाओं के प्रति सजग हो जाएँगे। दुःखद भावनाओं का बोझ धीरे-धीरे हट जाएगा और आपकी मनःस्थिति बदलती जाएगी। दुःख होने के बावजूद भी आप आनंद के पक्ष में अर्थात खुशी की भावनाओं में रहना सीखेंगे और दुःख मुक्ति का मार्ग भी आपके लिए आसान हो जाएगा।
इन सारी बातों को जानने के बाद, महसूस करने पर राजा को अपने आप ही खुशी का कुर्ता (राज़) मिल गया।
गुरुजी ने राजा को सिखाया हुआ दुःख मुक्ति का यह रास्ता आपने भी जान लिया होगा। इस राह पर चलते हुए आप भी दुःख आते ही उससे तुरंत मुक्त होने की कला सीखें और जीवन को आनंद से भर दें।
इस विषय पर विस्तार से जानने के लिए पढ़ें – सरश्री द्वारा रचित पुस्तक ‘दुःख में खुश क्यों और कैसे रहें’
~ सरश्री की शिक्षाओं पर आधारित
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