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हम नयी सदी के 18वें साल में प्रवेश कर चुके हैं इसलिए 18 ये अंक वर्तमान में विशेष महत्त्व रखता है। अलग-अलग धर्मों और परंपराओं में भी 18 को विशेष स्थान दिया गया है। जैसे कि यहुदियों में दिया जानेवाला दान 18 के गुणज में होता है। चीन में भी 18 अंक को शुभ माना गया है और इसे सफलता तथा समृद्धि से जोड़ा गया है।
भारत में, भगवद्गीता के 18 अध्याय हैं। महाभारत 18 सेनाओं में, 18 दिनों तक चले युद्ध की कहानी है। गीता इसका ही एक भाग है। वैसे तो गीता अध्यात्म और आत्मअनुभव के पथ का प्रवेशद्वार है लेकिन इसमें रोज़मर्रा के जीवन के लिए, विशेषकर समस्या सुलझाने और निर्णय लेने के बारे में, अनेक महत्त्वपूर्ण पाठ दिए गए हैं।
गीता क्या है? अर्जुन का अपनी और अपने भाइयों की समस्याओं को सुलझाना और ‘युद्ध करें या न करें’ इस बारे में निर्णय लेना। तो आइए, हम अपने जीवन में आयी समस्या सुलझाने और निर्णय लेने के लिए, गीता में बताए गए पाँच महत्त्वपूर्ण पाठ समझकर 2018 साल को सफल बनाएँः
1. ‘खेलने के लिए जीतें’ न कि ‘जीतने के लिए खेलें’: जीतने के लिए खेलना, यह बात हम सभी ने सुनी है। ये उस जीवन से बेहतर है, जो हारने के लिए खेला जाता है। मगर सबसे अच्छा खेल सबसे ऊपर है। गीता में कर्म के इस राज़ को बताया गया है। इसे गहराई से समझने पर खेलना ही जीतना है, यह समझ मिलती है। हमने आज तक गीता में सुना है कि ‘‘कर्म करो, फल की इच्छा (चिंता) मत करो।’’ लेकिन इसका गहरा अर्थ है कि ‘‘जीवन का खेल इस प्रकार खेलो कि इस खेल (लीला) का मज़ा लिया जा सके। इसके परिणामों और कर्म के फल की चिंता न करते हुए केवल इस खेल का आनंद लो।’’
इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं। एक माँ अपने बच्चे से कहती है कि ‘बाहर जाकर खेलकर आओ तो तुम्हें चॉकलेट मिलेगी।’ लेकिन ‘खेलना’ अपने आप में बच्चे के लिए फल है, उसे किसी और फल की आवश्यकता ही नहीं है। यह ऐसा ही है जैसे हम जीतने की रेखा से ही दौड़ की शुरुआत करें! यानी आपकी शुरुआत ही जीत से होती है तो आगे आपको किसी स्पर्धा या जीत की कोई चिंता ही नहीं रहती। खेल में दौड़ना अपने आप में आनंद है, सफल फल है।
इसी तरह, जब आप कोई समस्या सुलझाते हैं या निर्णय लेते हैं, तब यह समझ रखें कि इसमें किसी और फल की अपेक्षा रखने की आवश्यकता ही नहीं है। समस्या सुलझाने और निर्णय लेने का गुण सीखकर, आपको अपने गुणों को अभिव्यक्त करने का मौका मिला है, वही अपने आपमें योग्य फल है।
एक लेखक जो लिखने की प्रक्रिया का आनंद उठाता है, उसके लिए प्रकाशन और प्रसारण बोनस जितना महत्व रखता है। क्योंकि उस लेखक के लिए लिखने का कर्म ही फल है।
2018 में, समस्या को रचनात्मक तरीके से सुलझाने और निर्णय लेने को ही फल समझें। साथ ही यह भी समझें कि आपके कर्म का परिणाम भी कर्म हो सकता है।
2. बाहरी परिस्थितियों से नहीं अंदरूनी शत्रुओं से युद्ध करें: ‘अपने रिश्तेदारों से युद्ध कैसे करें?’, अर्जुन इस असमंजस में था इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता का आवाहन हुआ। इसी परिस्थिति को सुलझाने के लिए अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से ज्ञान की माँग की। असल में, यहाँ रिश्तेदार यानी हमारी वृत्तियाँ, विकार, अहंकार।
श्रीकृष्ण, अर्जुन को बताते हैं कि ‘योद्धा के लिए धर्मयुद्ध से बढ़कर कुछ भी नहीं है।’ इसका अर्थ है कि एक आध्यात्मिक योद्धा अपनी वृत्तियों के खिलाफ ही युद्ध करता है। ये वृत्तियाँ ऐसी हैं, जो उसे अपने असली स्वभाव से दूर ले जाती हैं। वह कामना, गलत सोच जो इंसान को मोह में फँसाने बार-बार लौटती रहती है, इन्हीं के खिलाफ युद्ध करें। हमारी इंद्रियाँ निरंतर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। एक आध्यात्मिक योद्धा पूरी तरह अनासक्त होकर अपने इंद्रिय सुख में बिना अटके पृथ्वी लक्ष्य प्राप्त करे।
इसी तरह, समस्या सुलझाने और निर्णय लेने को बाहरी परिस्थितियों जैसे स्पर्धा, बदलते वातावरण आदि से लढ़ना; यही मान लिया गया है। लेकिन 2018 में, गीता के 18 अध्यायों का असली अर्थ समझकर आंतरिक शत्रूओं को नष्ट करें। आपकी बाहरी समस्याएँ अपने आप सुलझ जाएँगी।
3. निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले गहराई से सुनें: गीता के पहले अध्याय में अर्जुन अपना शोक व्यक्त करता है। इस अध्याय को ‘अर्जुनविषाद योग’ कहा गया है। यह पहला अध्याय अर्जुन के नैराश्य से भरे मन को विचलित करनेवाले विचारों को सामने लाता है। श्रीकृष्ण अर्जुन के इन सभी विचारों को धीरज से सुनते हैं। गीता प्रज्ञा दरअसल दूसरे अध्याय से शुरू होती है, जब श्रीकृष्ण बोलना आरंभ करते हैं।
यहाँ महत्त्वपूर्ण सीख यह है कि जब भी आप ऐसी समस्याएँ सुलझा रहे हैं या ऐसे निर्णय ले रहे हैं, जिसमें दूसरे लोगों का समावेश हो तो सबसे पहले उन लोगों की बात को धीरज और गहराई से सुन लें। विशेषकर जब आप किसी और की समस्याएँ सुलझा रहे हैं या किसी और के लिए निर्णय ले रहे हैं तब बहुत आवश्यक है कि आप उन लोगों की बात को ठीक से समझें और उसके बाद ही सलाह दें।
यहाँ एक और बात समझने जैसी है कि जब भी आप अपनी समस्या सुलझाना चाहें तब अर्जुन के गुणों को याद रखें जैसे ईमानदारी और सच्चाई से खुद को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित कर देना। आप यदि अपनी भावनाओं को सुनकर स्वयं को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित करते हैं तो देखते हैं कि निराशा की स्थिति भी योग का रूप धारण कर लेती है – अर्जुनविषादयोग।
2018 में निष्कर्ष पर पहुँचने या सलाह देने या लेने से पहले यह आदत डाल लें कि हम अपनी समस्या को समझें और भावनाओं को गहराई से सुनें। साथ ही सब कुछ ईश्वर को समर्पित कर दें।
4. स्पष्ट दृष्टि रखें, दृष्टिहीन बनकर न जीएँ: गीता में अनेक पाठ हैं, जिनमें इस बात को महत्त्व दिया गया है कि विवशता में विवेकशून्य होकर काम न करें। समस्याओं को स्पष्ट दृष्टि से देखें। गीता अपने आपमें ईश्वरीय गीत है। संजय, प्राप्त दिव्य दृष्टि से युद्धभूमि की घटना को अनासक्त होकर देख रहा है और दृष्टिहीन धृतराष्ट्र को बिना किसी पूर्वाग्रह के बता भी रहा है।
स्पष्ट दृष्टि और विवेक से देखने के लिए, हमें विचारों से परे, हमारे असल स्वभाव को जानना होगा। जब हम स्पष्टता से नहीं देख पाते, तब हमारे विचार हमारा संचालन करते हैं। ये विचार आवेगशील प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होते हैं। हमें यह जानना होगा कि मन बेहतरीन तरीके से कैसे काम करता है। इससे मन की कार्यविधियों को समझकर हम उच्च जागरुकता के साथ प्रतिक्रिया दे सकते हैं। अपनी जागरुकता को बढ़ाने का एक शक्तिशाली मार्ग यह है कि जब भी मन विचलित होने लगे तो खुद से कुछ महत्वपूर्ण सवाल पूछें, जैसे कि जब भी मन ऐसे विचारों की ओर जाए कि ‘मैं यह समस्या नहीं सुलझा सकता’ तो अपने मन से सवाल करें कि ‘मैं यह समस्या कैसे सुलझा सकता हूँ, ताकि यह विकास की सीढ़ी बन जाए?’
स्पष्टता से देखने पर हम समस्या की विकट परिस्थितियों को भी मिटा सकते हैं। परिस्थितियों को समस्या के रूप में देखना ही असली समस्या है। जब हम समस्या को अपनी मान्यताओं के चश्मे से देखते हैं, तब हमारे भीतर विरोध निर्माण होता है। प्रतिरोध के कारण समस्या बनी रहती है। जागृति की जिस अवस्था में समस्या निर्माण हुई है, जागृति (साक्षी) के उसी स्तर पर रहकर उसे सुलझाया नहीं जा सकता। पूर्ण साक्षी बनने के लिए हमें पहले अपनी जागरुकता बढ़ानी होगी। जागृति की उच्च अवस्था में, विवेक से देखने पर आप पाएँगे कि समस्या, समस्या नहीं उपहार है।
विवेक से देखते समय यह ध्यान रखना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि आप (आपके मान्यतायुक्त विचार) खुद भी उस समस्या का भाग हैं। घटनाओं के दौरान आनेवाले विचारों से हम खुद को सीमित कर लेते हैं। इन विचारों को समस्या के समांतर रखना सीखें, न कि उन्हें समस्या बनने दें।
2018 में समस्या सुलझाते समय स्पष्ट दृष्टि रखें। पुरानी गलत धारणाओं और बाधाओं को प्रकाश में लाने के लिए समय-समय पर खुद से सवाल करें। स्पष्ट समझ रखने पर हम अपनी गलत धारणाओं या मान्यताओं को मिटा पाएँगे। फिर हमारा जीवन दृष्टिहीन न होकर, जागृत (महा) जीवन बनेगा।
5. आवेग से नहीं, केंद्र में आकर निर्णय लें: जैसे कि महाभारत में बताया गया है, युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि वे उसे युद्धभूमि के मध्य (केंद्र) में ले चलें। जैसे ही श्रीकृष्ण अर्जुन को मध्य में ले गए तो उसने अपने सामने अपने चचेरे भाइयों, शिक्षकों, मित्रों और सगे-संबंधियों को शत्रु पक्ष में खड़ा देखा। यह देखकर वह बहुत दुःखी हुआ। इस शोकाकुल अवस्था में उसने अपने हथियार रख दिए। श्रीकृष्ण ने अर्जुन की अवस्था देखी और उसे गीता का ज्ञान दिया। युद्ध के केंद्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान मिला। ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति हमारे केंद्र, हमारे हृदय (केंद्र-स्रोत) में पहुँचे बगैर नहीं हो सकती।
हम यह ज्ञान तब ग्रहण कर पाते हैं, जब हम अपने केंद्र (सोर्स) पर हों। तनाव के समय हम अपने केंद्र से दूर हट जाते हैं। लेकिन तनाव के ही समय हमें अपने केंद्र में रहना सीखना चाहिए। अर्जुन को तनाव से मुक्ति तभी मिलती है, जब वह अपने केंद्र में आता है। आप भी निर्णय लेने और समस्या सुलझाने के लिए अपने केंद्र में आएँ। इसकी आदत डालने के लिए आप 4:8:18 इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
4:8:18 इस तकनीक का उद्देश्य है कि आप अपनी आवश्यकता, अपनी समस्या के अनुसार 4 मिनट, 8 मिनट या 18 मिनट के लिए स्वयं को समस्या से बाहर देखें यानी डिटैच होकर देखें। छोटी समस्याओं के लिए 4 मिनट उसे अपने से अलग देखना काफी है। गंभीर समस्याओं और महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए 18 मिनट का डिटैच (अनासक्त) हो जाएँ। इन दोनों के मध्य की स्थितियों के लिए 8 मिनट के लिए डिटैच हो जाएँ। इस अवस्था में आप अलगाव के भाव और अपने केंद्र के संपर्क में होते हैं। ध्यान करने के बाद स्पष्ट दृष्टि से देखकर खुद (अपने अहंकार) को भी समस्या का भाग मानकर, अनासक्त होकर निर्णय लें।
4, 8 और 18 ये अंक इसलिए लिए गए हैं ताकि आप समस्या से अलग होकर सोचने की आदत डालें। उदाहरण : जब पत्नी कहती है कि ‘मुझे 5 मिनट आपसे बात करनी है’ तब पति समझ जाता है कि यह 5 मिनट का समय 50 मिनट तक भी खिंच सकता है। जबकि वहीं यदि आपसे कोई कहता है कि ‘4 मिनट बात करनी है’ तो आपको लगता है कि यह इंसान इतना सटीक समय बता रहा है तो यह वाकई 4 मिनट में अपनी बात पूरी करेगा। इस तरह यदि आप अपने मन को कहते हैं कि ‘5 मिनट आँखें बंद करके बैठ’ तो वह उस समय में विचार लाकर आपका कितना भी समय नष्ट कर सकता है। जबकि यदि आप उसे कहते हैं कि ‘4 मिनट आँखें बंद कर’ तो उसे अनुशासन मिलेगा।
2018 में समस्या को बाहरी तौर पर न देखकर केंद्र में लाकर सुलझाएँ और निर्णय लेकर खेल का आनंद लें।
…सरश्री
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Yogesh lokhande
Dhanyawad sirshree