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कोई कार्य करने में सभी को शुरुआत में उत्साह महसूस होता है। मगर कुछ दिनों बाद उनका उत्साह कम होने लगता है। जिसके परिणामस्वरूप कार्य में निरंतरता नहीं रहती। ऐसे में सवाल उठता है कि निरंतरता का गुण कैसे अपनाएँ?
जिसके जवाब में सबसे पहले कहा जाएगा- ‘निरंतरता ही सफलता की कुंजी है।’ जब भी कोई कार्य की शुरूआत करता है तब उसे तुरंत सफलता दिखाई नहीं देती। परिणामस्वरूप वह कार्य बीच में ही छोड़ देता है। मूड बदलते ही वह अपना इरादा बदल देता है। इसलिए एक सूत्र ध्यान में रखें, ‘अगर मूड आपकी मुठ्ठी में तो किस्मत भी आपकी मुठ्ठी में।’ इस सूत्र को समझें। जब इंसान अपने मूड अनुसार कार्य में टालमटोल करता है तब वह निरंतरता से कार्य नहीं कर पाता। जैसे, सुबह उठते ही किसी के मन में विचार आता है, ‘आज व्यायाम करने का मूड नहीं है, आज जिम नहीं जाते।’ अब यह विचार आना स्वाभाविक है; मगर इस विचार से अनासक्त होकर कार्य करना अति आवश्यक है।
जब भी आपको लगे कि ‘मैं फलाँ काम अब नहीं कर सकता’ तब स्वयं को एक सवाल जरूर पूछें, ‘मैं कम से कम कितने समय के लिए यह काम कर सकता हूँ?’ मन कहेगा, ‘सिर्फ पाँच मिनट के लिए’ तो मन को राज़ी कराते हुए वह काम पाँच मिनट के लिए क्यों न सही, ज़रूर करें।
महाबली नामक पहलवान ने एक दिन बहुत बड़ा हाथी गिराकर शक्तिप्रदर्शन किया। लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने जब उस पहलवान से उसकी सफलता का राज़ पूछा तो उसने जवाब दिया, ‘व्यायामशाला जाने में मेरा मन कई बहाने बनाता था। जैसे, आज पूरे शरीर में दर्द है… रात में नींद ठीक से नहीं हुई… आज तबियत ठीक नहीं… आदि। जिस कारण मैं मगर उस दिन मुझे इस बात का बहुत अफसोस हुआ, जब मुझसे भी कम ताकतवर पहलवान ने मुझे आखाड़े में पछाड़ दिया। तब मैंने अपने मन से पूछा, ‘तुम हर दिन व्यायाम करने में आनाकानी करते हो… ठीक है मगर यह बताओ कि अब तुम कम से कम कितना वजन उठा सकते हो और कितने समय के लिए व्यायाम कर सकते हो?’ मन कहता था, ‘सिर्फ पाँच किलो और वह भी केवल दस मिनट के लिए।’
तब मैंने स्वयं से कहा, ‘ठीक है। अब इतना वजन मुझे रोज़ उठाना है और बार-बार उठाना है… वह भी सिर्फ दस मिनटों के लिए।’ इस तरह मैं निरंतरता से वजन उठाने लगा और हर एक हफ्ते के बाद एक किलो से वजन बढ़ाने लगा। धीरे-धीरे मेरे मन-मस्तिष्क और शरीर को वजन उठाने की आदत पड़ गई। उसका नतीजा यह हुआ कि आज मैंने इतना बड़ा हाथी बड़ी आसानी से पटक दिया। हालाँकि यह आपको बड़ा या भारी लग रहा है; मगर मेरे लिए तो यह साधारण है।’
इस उदाहरण से समझें कि निरंतरता से उठाए गए छोटे-छोटे कदम, इंसान को सफलता के शिखर पर ले जाते हैं। अतः शिखर पर पहुँचने की गड़बड़ न करें बल्कि आज आप कौन सा कदम उठा सकते हैं, यह सोचें और उस पर अमल करें। मूड को अपनी मुठ्ठी में रखें। मन कई बहाने बनाकर काम से छुटकारा पाना चाहता है। मगर इन सभी बहानों के विरुद्ध छोटा कदम उठाएँ ताकि आगे जाकर आप अपने जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकें।
निरंतरता का गुण अपनाने के लिए अपने लक्ष्य में स्पष्टता रखें। जैसे, आपने एक महीने के अंदर दो किलो वजन घटाने का लक्ष्य निर्धारित किया है तो यह लक्ष्य कहीं पर लिखकर रखें। आपके मोबाइल या कंप्यूटरस्क्रीन पर, घर में दिवारों पर उसके रिमाइंडर्स लगाएँ और ‘मेरा लक्ष्य पूर्ण हो चुका है। मुझे केवल आनंद की अवस्था में रहते हुए बीच की प्रक्रिया पूर्ण करनी है।’ इस विचार को दोहराएँ।
निरंतरता के कारण ही सृष्टि चक्र चल रहा है। निरंतरता ही कुदरत का आधार है। आपके शरीर के अंदर कई कार्य निरंतरता से चल रहे हैं इसलिए आपका शरीर ज़िंदा है। इसलिए निरंतरता का महत्त्व समझें और छोटे-छोटे कदम उठाकर सफल जीवन की राह पर चलना शुरू करें आज से, अभी से, निरंतरता से।
~ सरश्री
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