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पोलैंड में धर्मगुरु हाफिज हईम रहते थे, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। एक दिन एक अमरिकी यात्री उनसे मिलने उनके घर गया। उसे यह देखकर हैरानी हुई कि धर्मगुरु होकर भी हाफिज हईम एक छोटे से कमरे में रहते थेऔर उसमें केवल पुस्तकें थीं। फर्नीचर तो दूर की बात वहाँ पर एक छोटा टेबल और बेंच के अलावा कुछ नहीं था। यात्री ने पूछा, ‘धर्मगुरु, आपका फर्निचर कहाँ पर है?’ हाफिज ने पलटकर पूछा, ‘आपका फर्निचर कहाँ पर है?’ यात्री बोला, ‘मेरा? मैं तो यहाँ पर एक यात्री हूँ और केवल कुछ समय के लिए रहने आया हूँ।’ हाफिज ने कहा, ‘मैं भी संसार की यात्रा पर आया हूँ और कुछ ही समय के लिए रहने आया हूँ।’
इंसान को यह याद आना महत्वपूर्ण है कि वह इस पृथ्वी पर एक विशेष लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए कुछ समय के लिए ही आया है।
पृथ्वी एक पाठशाला है और इस पाठशाला में इंसान को अपने जीवन के सबक खुद सीखने हैं। जब तक इंसान के सामने दमदार लक्ष्य नहीं होता तब तक वह खुद के सबक सीखने में टालमटोल करते रहता है। मानव जीवन का लक्ष्य है कि ‘वह जो कर सकने की क्षमता रखता है वह करे, जो बन सकता है, बने। जो उद्देश्य लेकर वह पृथ्वी पर आया है, उसे पूरा करे।’ मगर आज इंसान केवल धन और सुख-सुविधाएँ पाने को ही असली लक्ष्य समझता है। धन-दौलत कमाकर अपनी सुख-सुविधा के लिए बड़े से बड़ा मकान खरीदकर उसे सजाने में वह अपना ज़्यादातर समय व्यतीत करता है। चाहे मकान कितना भी बड़ा हो या उसमें कितनी भी सजावट की वस्तुएँ हों, उसे कम ही लगती हैं। बस वह चीजें इकट्ठी करने में लगा रहता है। उसे याद ही नहीं आता कि वह कितना मूल्यवान समय अनावश्यक चीज़ें जमा करने में गँवा रहा है।
हर इंसान के जीवन में आजीविका पाने का एक लक्ष्य होता है लेकिन इस लक्ष्य के पीछे असली लक्ष्य है, ‘पृथ्वी लक्ष्य’ यानी पृथ्वी पर आने का असली उद्देश्य। पृथ्वी लक्ष्य तब पूर्ण होता है, जब आप अपने मन को अकंप, निर्मल, प्रेमन अखंड और आज्ञाकारी बनाते हैं। मन जब अनेकों घटनाओं से सही समझ के साथ गुजरता है तब वह अकंप बनने लगता है। अर्थात आपके जीवन में होनेवाली सभी घटनाएँ आपको अकंप बनाने के लिए ही आती हैं। मगर मन के विपरीत कोई घटना घटते ही इंसान परेशान हो जाता है क्योंकि उसके जीवन में दमदार लक्ष्य की कमी होती है।
जिनके जीवन में उच्चतम लक्ष्य होता है, वे हमेशा रचनात्मक कार्यों द्वारा लोगों के तेज विकास के लिए निमित्त बनते हैं। लक्ष्य के प्रति होनेवाली प्यास उन्हें कार्य करने और प्रशिक्षण लेने की प्रेरणा देती है। विध्वंसक काम के लिए प्रशिक्षण की ज़रूरत नहीं होती, वह कोई भी कर सकता है। प्रशिक्षण तो रचनात्मक कार्य करने के लिए आवश्यक होता है, जिसकी विश्व को ज़रूरत है। इसलिए आज ही खुद का लक्ष्य निर्धारित कर, स्वयं के शरीर, मन, बुद्धि को प्रशिक्षण देना शुरू करें क्योंकि हर मनुष्य के अंदर अनगिनत ईश्वरीय गुण हैं, जो अभिव्यक्त होना चाहते हैं।
जिस दिन आप लक्ष्य निश्चित करेंगे, वह दिन आपकी ज़िंदगी का सबसे सुनहरा दिन होगा क्योंकि उस दिन आपने अपने जीवन को एक दिशा दी। वरना बिना दिशा के इंसान की दुर्दशा बनी रहती है। सही दिशा और लक्ष्य की प्रेरणा से चरित्रवान इंसान की काबिलीयत इतनी बढ़ जाती है कि पहले जिन कार्याें को वह नहीं कर पाता था, अब उनमें माहिर बन जाता है। जीवन का अर्थ मिलते ही निरर्थक लगनेवाला जीवन पूर्णता का कारण बन जाता है।
एक स्त्री के पति की मृत्यु हुई थी और उसे एक अपाहिज बच्चा था, जिस कारण वह अत्यंत दु:खी थी। सोचती थी, ‘मैं अपने बच्चे के साथ आत्महत्या कर लूँ।’ उसी विचारों में वह एक दिन बच्चे को लेकर बगीचे में बैठी थी। बगीचे में बहुत देर खेलने के बाद बच्चा खुश हो जाता है और अपनी माँ से कहता है, ‘माँ, मैं दुनिया के सभी बगीचे देखना चाहता हूँ।’ बच्चे के शब्द सुनकर माँ की आँखों में खुशी के आँसू आ जाते हैं। कुछ क्षण पहले खुदकुशी करने निकली माँ को यह समस्या जीवन का अर्थ दिला देती है। अब वह अपने बच्चे के लिए जीना चाहती है। बच्चे के आनंद पूर्ति के लिए वह हर कठिन से कठिन समस्या को पार कर जाती है। उसके लिए हर कष्ट सहती है, नौकरी करती है, पैसे कमाती है और जीवन की घटनाओं को, तकलीफों को बहुत आसानी से झेल पाती है, अपने बच्चे को दुनिया की सैर कराती है। क्योंकि उसे जीवन जीने का अर्थ मिल चुका था।
इस तरह जब जीवन का अर्थ प्राप्त होता है तब हर कठिन चीज़ भी आसान लगने लगती है वरना छोटी-छोटी बातें भी बहुत तकलीफदेह होती हैं। अतः आप भी अपने आपसे पूछें कि ‘क्या मेरे जीवन का कोई अर्थ है?’ यदि नहीं है तो अपने आपको एक अर्थ दें, लक्ष्य दें और उसे पूरा करें।
लक्ष्य तय करते वक्त आपके मन में सवाल उठ सकता है कि मानव जीवन का लक्ष्य क्या है? दरअसल, मानव जीवन का लक्ष्य है खिलना, खुलना, खेलना यानी जो आपकी संभावना है, उसे खोलना। एक इंसान अपना संपूर्ण लक्ष्य तब पाता है, जब वह पूरी तरह से खिलेगा, खुलेगा और खेलेगा।
जीवन का अर्थ प्राप्त करने के लिए देखें कि आपके आजू-बाजू में ऐसी कौन सी व्यवस्थाएँ हैं, जिनका लाभ लेकर आप जल्द से जल्द उसे पूरा कर सकते हैं। यह करते वक्त आपको दूसरों के साथ तुलना नहीं करनी है बल्कि खुद को जानते हुए स्वयं का लक्ष्य निर्धारित करना है। जैसे चमेली का फूल कभी यह नहीं सोचेगा कि ‘मैं जूही या गुलाब जैसा क्यों नहीं हूँ?’ इसी तरह मनुष्य को भी खुद का लक्ष्य अपने स्वभाव अनुसार निर्धारित करना चाहिए।
इसके लिए हर सुबह कुछ क्षण अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, फिर ही दिन की शुरुआत करें। वरना मन यही सोचेगा कि ‘पहले यह काम खत्म करते हैं, वह काम खत्म करते हैं, बाद में अपने लक्ष्य पर सोचते हैं।’ मन के इस खेल में न अटकते हुए, हर सुबह खुद को लक्ष्य की याद दिलाएँ ताकि आपके हर छोटे कार्य को भी सही दिशा मिले।
आप जितना बड़ा लक्ष्य बनाते हैं, उतनी ज़्यादा शक्ति कुदरत आपको प्रदान करती है। कुदरत का यह नियम समझनेवाले कभी छोटा लक्ष्य नहीं बनाते। अगर आप कुदरत की शक्ति को खुद के भीतर महसूस करना चाहते हैं तो उच्च से उच्च शक्तिशाली लक्ष्य बनाएँ और अपने आपसे सवाल पूछें, ‘क्या मुझे जीतने का आनंद ज़्यादा है या हारने का डर ज़्यादा है?’ यदि जवाब आए, ‘जीतने का आनंद यानी उत्साह ज़्यादा है’ तो आप हर डर, असुविधा और समस्या का बड़ी आसानी से सामना कर सकते हैं और यदि जवाब आए, ‘हारने का डर ज़्यादा है’ तो खुद का शक्तिशाली लक्ष्य (जीवन जीने का अर्थ) याद करें।
लक्ष्य की याद आपके अंदर डर से मुकाबला करने की ऊर्जा जागृत करेगी। लक्ष्य की ऊर्जा आपको निडर बनाकर आपसे कार्य करवाएगी और आपका जीवन सार्थक करेगी।
4 comments
Pushpalata Bhatu Chaudhari
Dhanyawad! really feel grace & whenever read related aim of life & aim beyond aim feel charged.
Taken my aim of life as sant santan, find so many challenges but with the grace of Sirshree find that that r power generator.
Kanchan
बहोत सुन्दर
धन्यवाद सरश्री
Sumit Agarwal
Thank you very much Sadgurudev Sirshree G.
Narendra
Nice Happy Thoughts