इंसान के मन में अनगिनत विचार आते रहते हैं। वे विचार साक्षी होकर देखे जाते हैं। यदि आपसे कोई सवाल पूछें कि आप आवाज कैसे सुनते हैं? तब आप उसका जवाब शब्दों में नहीं दे पाएँगे क्योंकि यह अनुभव करने की बात है, बताने की नहीं। उसी तरह मन के विचारों को भी आप देख नहीं सकते बल्कि उसका अनुभव कर सकते हैं। इसे एक उदाहरण से समझें, ‘कभी-कभी आप आँखें बंद करके बैठते हैं और किसी गाने की धुन आपके अंदर चलती रहती है। आपको वह गाना सुनाई भी देता है मगर क्या वह गाना आपके कान सुनते हैं?’ जवाब में आप कहेंगे कि नहीं, अंदर की धुन बाहर के कान नहीं सुन सकते। वह धुन तो अंदर चलती है। अंदर चलनेवाली धुन आप कैसे सुनते हैं? जिस तरह से अंदर की धुन बजती है, बिलकुल वैसे ही अंदर से संगीत भी सुनाई देता है। कई बार आपको जो गाना याद भी नहीं होता है, वह भी सुनाई देने लगता है। यह कितना आश्चर्य है!
ठीक उसी तरह जब मन में विचार चलते हैं तब वे विचार स्वसाक्षी द्वारा जाने जाते हैं क्योंकि हमारे अंदर सजगता (अवेअरनेस) है, जिसे चेतना (कॉन्शसनेस), स्वसाक्षी (सेल्फ) भी कहा जाता है। उस चेतना के अंदर ही हर चीज़ प्रकट हो रही है।
जैसे दीवाली में हवाई उठती है, आसमान में जाकर फटती है और चारों तरफ फैलकर विलीन हो जाती है। जाननेवाला सिर्फ यह जानता है कि हवाई उठी और वह विलीन हुई। उसी तरह चेतना के आकाश में भी एक-एक विचार उठ रहा है, फैल रहा है और विलीन हो रहा है। दूसरा विचार उठ रहा है, फैल रहा है और विलीन हो रहा है। यदि आप यह रहस्य समझेंगे तो हर हवाई का आनंद ले पाएँगे। दीवाली में तो आप हवाइयों का आनंद लेते ही हैं। हवाइयाँ कोई और जलाता है किंतु आनंद आप लेते हैं। उसी तरह आपने कभी विचारों का आनंद लिया है कि कितने मजेदार विचार आ रहे हैं, जैसे ‘मेरा क्या होगा?’
दीवाली में अगर किसी ने ऐसी हवाई का आविष्कार किया होता, जिसे आसमान में छोड़ते ही कुछ शब्द लिखकर आए। जैसे ‘मेरा क्या होगा?’ यह पंक्ति आसमान में तुरंत दिखाई दे। तब ऐसी हवाई देखकर आपको दुःख होगा या मज़ा आएगा? आप कहेंगे, ‘कितना बढ़िया आविष्कार है! इस हवाई से मेरे मन का विचार आसमान में लिखकर आया। उस समय आपको यह महसूस होगा कि हमारे अंदर विचारों का उठना और विलीन होना किसी चमत्कार से कम नहीं है। क्या-क्या विचार मन में आते हैं? लेकिन जब आप उन विचारों से चिपक जाते हैं तब आपको ऐसा लगता है कि ‘यह मेरे साथ ही हो रहा है’ इसलिए आप दुःखी हो जाते हैं। वरना आप हर हवाई का, हर विचार का आनंद ले सकते हैं। जब आप हर घटना को अदृश्य होकर देखेंगे तब सब मज़ा दिखाई देगा और दूसरी तरफ से आप विचारों को सही दृष्टिकोण से देखने की कला भी सीख पाएँगे।
मन के विचार कैसे देखे जाते हैं, यह अनुभव करने की बात है। जैसे दीवाली में आप हवाइयाँ देखते हैं और उस समय यदि किसी ने आपसे यह सवाल पूछा कि ‘आप ये हवाइयाँ कैसे देख रहे हैं?’ तो आप यही कहेंगे कि ‘यह बताने की नहीं बल्कि अनुभव करने की बात है।’ उसी तरह कोई पूछे कि ‘आप अंदर का संगीत कैसे सुनते हैं? किस इंद्रिय द्वारा सुनते हैं? कान से सुनते हैं या आँख से?’ तब कहा जाएगा कि ‘ये इंद्रियाँ अंदर का संगीत सुनने के लिए काम में नहीं आती हैं।’
वह चैतन्य, सजगता, स्वसाक्षी (सेल्फ) हर वक्त उपलब्ध है, गहरी नींद में भी उपलब्ध है। गहरी नींद में भी वह जाग रहा है, जान रहा है। जब कुछ भी नहीं है तब उस ‘कुछ नहीं’ को भी वह जान रहा है इसलिए तो आप सुबह उठकर कहते हैं कि ‘कल रात मुझे बहुत अच्छी नींद आई।’ इस अच्छी नींद को किसने चेक किया? आपको पता चला कि अच्छी नींद आई क्योंकि उस समय उस अवस्था को जाननेवाला उपलब्ध था और आप जाननेवाले हैं, न कि शरीर। यह बात आपको जितनी पक्की होती जाएगी, उतना जल्दी आप उस चेतना में स्थापित होने लगेंगे।
…सरश्री
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