पृथ्वी पर कई अनोखे अवतार हुए हैं। लेकिन इन अवतारों को केवल आध्यात्मिक कहानी मानकर उनकी पूजा ही होती रहती है। जबकि होना यह चाहिए कि ऐसे अवतारों के जीवन को समझकर, अपने जीवन में भी उनके गुणों को उतारना चाहिए। आज हनुमान जयंती के अवसर पर हम भगवान शिव के अवतार रामभक्त हनुमान के ऐसे गुणों को जानेंगे, जो हमारी सांसारिक अभिव्यक्ति और आध्यात्मिक उन्नति में सहायता करते हैं।
हनुमानजी श्रीराम के सहज सेवक थे। सहज सेवक निष्काम भक्त होते हैं। वे किसी फल की इच्छा या स्वार्थवश भगवान की भक्ति नहीं करते।
हनुमानजी स्वयं महामनस्वी थे यानी उनमें मन, कर्म तथा वाणी की एकता थी। उनका मनोबल जितना प्रबल था, उतने ही उनके कर्मबल भी प्रबल थे। महान ज्ञानी होते हुए भी उन्होंने प्रभु प्राप्ति के लिए भक्ति का ही सहारा लिया। उनकी दृष्टि में भक्तियोग एक ऐसा मार्ग है, जो कि स्वतंत्र है, उसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं। भक्ति के द्वारा ज्ञान-विज्ञान सभी साध्य हैं।
सेवा और भक्ति के साथ ही हनुमान में नेतृत्व के गुण भी थे पर कुछ अलग ढंग के। वे सभी लीडरों को जोड़नेवाले, उनमें समन्वय लानेवाले लीडर थे। उन्हें हम लीडरगम यानी लीडरों को जोड़नेवाला गोंद कहें तो भी गलत न होगा। हनुमान ने लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण सभी को एक साथ सँभाला, सभी नायकों को एक साथ जोड़े रखा। किससे, कैसे पेश आया जाए, यह भी वे भली-भाँति जानते थे। सभी महानायकों को जोड़े रखने की कला को कहते हैं, ‘लीडरगम का दम।’ लीडरगम यानी लीडर्स को रास्ता दिखानेवाली लीडरशीप।
बहुत से नेतृत्व-गुण संपन्न पात्रों के साथ हनुमान समन्वय साधते रहें। जैसे लक्ष्मण का गुस्सा भी उन्होंने सहा… गाफिल सुग्रीव को जगाने का काम भी उन्होंने किया… विभीषण भी बड़े भक्त बने फिरते थे, बड़े-बड़े बोल बोलते थे पर हनुमान ने बड़ी सहिष्णुता के साथ उन्हें सँभाला… इस तरह वे सभी को साथ लेकर चले। रावण को पराजित करना, उसका संहार करना कोई छोटा काम नहीं था। कितने दिग्गज इस काम में असहाय साबित हुए। उस कार्य के लिए हनुमान ने वर्चस्व लेकर, सभी की सहायता से इस कार्य को सफल कर दिखाया। हनुमान ने सेवा भी की तो सामने न आकर, मानो अदृश्य रहकर, कार्य का श्रेय खुद न लेकर, कई तरह के कार्य किए।
हनुमान राम-लक्ष्मण को अपने कंधों पर बिठाकर सुग्रीव से मिलाने के लिए ले गए। यहाँ राम अनुभव का प्रतिक है। वही लक्ष्मण प्रतिक है लक्ष्य-मन का अर्थात ऐसा मन जो अपने ध्येय, अपने लक्ष्य के प्रति सजग हो। हनुमान ने राम और लक्ष्मण को अपने दोनों कंधों पर सँभाला हैं, इनमें संतुलन बनाए रखा हैं। इसका आशय यह है कि हनुमान को जो कार्य करना था, उनका लक्ष्य उन्हें बिलकुल स्पष्ट था।
हनुमान एक प्रभावशाली और लचीले लीडर थे। वे हर जगह, हर परिस्थिति में अपने आपको ढाल लेते थे। बच्चों के साथ बच्चा, बूढ़ों के साथ बूढ़ा, जवानों के साथ जवान, पुरुष के साथ पुरुष और स्त्री के साथ स्त्री बनकर पेश आते थे। उनकी बुद्धि में भी हर परिस्थिति में ढलनेवाली ऐसी ही लचक थी।
तूफान आने पर जो पेड़ झुक जाते हैं, वे बच जाते हैं, जो अकड़े रहते हैं, वे गिर जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं। कुछ रिश्ते-नातों में लोग अपनी अकड़ की वजह से प्यार खो देते हैं और अंत तक वे असली प्रेम को नहीं जान पाते। मगर हनुमान की भाँति सच्चे लीडर में अकड़ नहीं होती बल्कि उसे दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति प्रेम व आदर होता है। वह सबको धीरज व ध्यान से सुनता है।
सच्चा लीडर हनुमान की तरह भविष्य को देखते हुए वर्तमान में क्रांति लाता है, जो एक बड़ी और अव्यक्तिगत क्रांति होती है। सच्चा लीडर अव्यक्तिगत काम करता है। कई सारे लोगों में दूरदर्शिता है, आत्मविश्वास हैमगर उनके कार्य वे अपने नीजी स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। एक ऐसा दृष्टिकोण जो पूरे विश्व में क्रांति लाता है, जो अव्यक्तिगत है, वही सच्चे लीडर की निशानी है। यदि अव्यक्तिगत कार्य करने की समझ आपमें नहीं है तो आप केवल एक अच्छे बिजनेसमैन ही कहलाएँगे, सच्चे लीडर नहीं। सच्चे लीडर को काम बोझ नहीं लगता क्योंकि उसे पता है वह अव्यक्तिगत काम कर रहा है।
लोग उसी को लीडर मानते हैं, जो समस्याएँ जल्दी सुलझा सके । वह लोगों को सिखाता है और यह सीखाने का काम वह अभिव्यक्त करके सिखाता है। वह खुद उन बातों का अनुसरण करके दिखाता है ताकि लोग भी उन बातों का अनुसरण करें, इस बात की प्रेरणा हमें हनुमान से मिलती है।
जो सच्चा लीडर है वह बताता नहीं, करता है। वह कार्य करके, दिखाकर सीखाता है। एक सच्चा लीडर कैसा होना चाहिए, इसकी झलक हनुमान के अनेक गुणों से सिद्ध होती है। यदि हनुमान के इन सभी गुणों का लाभ हम अपने जीवन में भी ले पाएँ तो हमारा जीवन भी हनुमान की ही तरह सर्वगुणसंपन्न होगा।
हनुमान के सभी गुणों पर मनन कर, अपनी समस्त शक्तियों का उपयोग लोक कल्याण के लिए करें, यही हनुमान जयंति के अवसर पर सबसे बड़ी सीख है। आज के दिन पर हनुमान से हम ऐसे ही बल की माँग करें, जिसमें त्याग और बलिदान का सामर्थ्य हो। ऐसा त्याग और बलिदान अव्यक्तिगत सेवा से बढ़ता है और प्रेम से फलता-फूलता है। प्रेमपूर्वक होनेवाला बलिदान ही सच्चा बलिदान है। आत्मसंयम एवं आत्मनियंत्रण से अवतरित होनेवाले त्याग को ही त्याग कहना चाहिए क्योंकि ऐसा त्याग, प्रेम की पराकाष्ठा है, भक्ति का ही फल है। इसलिए हनुमान से हमें ऐसी ही बुद्धि, बल और भक्ति पाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
– सरश्री
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