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एक माँ के तीन बेटे हैं। वे तीनों एक कमरे में बैठे हुए हैं। पहला बेटा टीवी देखना चाहता है, दूसरा बेटा रेडियो सुनना चाहता है और तीसरा बेटा एक चित्र बनाना चाहता है। वे तीनों एक-दूसरे से झगड़ा कर रहे हैं। पहला बेटा कहता है, ‘‘ये चित्र बनाना बंद करो।‘‘ और तीसरा बेटा कहता है, ‘‘टीवी बंद करो।‘‘ तो उन तीनों में से यदि किसी एक को टीवी से समस्या है तो दूसरे को रेडियो से और तीसरे को चित्र से। माँ उनके इस झगड़े को देखती है और सोचती है, ‘‘चलो इनकी इच्छाओं को पूरा किया जाए।‘‘ माँ अपने बच्चों को प्यार करती है, इसलिए वह उनसे कुछ नहीं कहती। वह उन्हें समय पर खाना खिलाती है, उनके लिए खिलौने लेकर आती है और उनकी हर जरूरत को पूरा करती है।
ईश्वर की इच्छा
वे तीनों बच्चे अपनी-अपनी इच्छा पूरी करने में व्यस्त हैं। फिर एक दिन अचानक उन्हें अपनी माँ का खयाल आता है। ‘माँ की इच्छा क्या है? क्या वह चाहती है कि हम टीवी देखें या नहीं? क्या वह चाहती है कि हम रेडियो सुनें या नहीं? क्या वह चाहती है कि हम चित्र बनाएँ या नहीं? माँ की इच्छा जानना ज़रूरी है।‘ हर बच्चा कभी न कभी यह जरूर सोचता है कि हमेशा बेशर्त प्रेम देनेवाली माँ की इच्छा क्या है।
दरअसल इस कहानी के तीनों बच्चे शरीर, मन और बु़द्धि का प्रतीक हैं, जबकि माँ सेल्फ की प्रतीक है। शरीर, मन और बुद्धि चाहते हैं कि उनकी माँ की इच्छा पूरी हो। वे उसकी इच्छा जानना चाहते हैं। माँ की इच्छा पूरी करने में ही उनकी सच्ची खुशी है। वे इस बारे में आपस में चर्चा करते हैं और फिर माँ की इच्छा पूरी करने के प्रयास में स्वयं को समर्पित कर देते हैं। उन तीनों को यह एहसास हो जाता है कि इसके पहले वे जो भी करते आए हैं, वह सब सिर्फ़ एक ड्रामा था।
विचार करने योग्य बिंदु :
• माँ की मौलिक इच्छा क्या है?
• यदि वह पूरी हो जाती है तो क्या होगा?
• उसे पूरा करने के लिए बच्चों को क्या करना होगा?
स्वयं से पूछें कि क्या आप वाकई अपनी माँ (ईश्वर) की इच्छा पूरी करने का माध्यम बनना चाहते हैं?
2 comments
Vrushali
Main kon who ye janana
Pushpavati puri
Sirshree anant Koti Dhanyavad