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सरश्री द्वारा दिए गए नववर्ष संदेश का अंश
नववर्ष की शुभकामनाएँ!
गोआ में आपका स्वागत है…
वर्ष 2020 का यह संदेश बहुत ही सरल है … ‘आपको गोआ जाना है!’ यह पढ़कर आपको ज़रूर आश्चर्य हो रहा होगा। आप सोचेंगे, ‘अरे! हमें गोआ जाने के लिए क्यों कहा जा रहा है।’ आपको गोआ जाना है, इसे शाब्दिक अर्थ में न लें बल्कि इस समय आप जहाँ कहीं भी हैं- अपने घर, ऑफिस, स्कूल या कॉलेज या फिर बाज़ार में- आप खुद को गोआ में ही समझें। यह संसार, जिसमें हम रहते और कर्म करते हैं, गोआ ही है।
गोआ का अर्थ है – ग्लोरी ऑफ एक्शन (GOA)
आपके लिए वर्ष 2020 का लक्ष्य है – गोआ (GOA)। अर्थात आपको ‘ग्लोरी ऑफ एक्शन’ में रहना है। एक्शन यानी क्रिया, कर्म। क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे कर्म प्रशंसनीय कब होते हैं? हमारे कर्म तब ही सराहनीय होते हैं, जब वे हमारे भीतर के स्रोत यानी शुद्ध चेतना से निकलते हैं।
वर्ष 2019 में हमने GOD यानी ‘ग्लोरी ऑफ ध्यान’ का लक्ष्य लिया था। इसे GOA यानी ‘ग्लोरी ऑफ अवेयरनेस’ भी कहा जा सकता है। हमने अपने ध्यान को स्वयं के भीतर केंद्रित किया था ताकि हम मौन साधना में पक जाएँ। 2019 में हमने विभिन्न प्रकार की ध्यान साधनाएँ की थीं ताकि हम स्वअनुभव प्राप्त करके जागरूक अवस्था में रह पाएँ।
इस साल हम सेल्फ की उपस्थिति में अपने कार्य करनेवाले हैं। अपने वास्तविक स्वरूप से प्रेरित रहने के लिए हम निरंतरता से ग्रहणशील बने रहेंगे। हमारे कार्य स्रोत से प्रेरित हों, हमारी क्रियाएँ मौन से निकलें, वह मौन, जिसे हम ध्यान के दौरान अनुभव करते हैं। ध्यान में बैठकर हम खुद को स्वअनुभव में रहने के लिए तैयार कर रहे होते हैं। हमारा ध्यान तब ही पूर्ण कहलाता है जब हम उसे निरंतरता से जारी रखते हैं। हमारे कर्म उसी जाग्रत अवस्था से हों, उनमें सेल्फ का स्पर्श रहे।
अपने असली स्वरूप पर लौटने से आपको उस अवस्था की भव्यता का एहसास होता है। उच्चतम सृजनात्मक, आनंद, प्रेम, मौन, करूणा, साहस, धैर्य आदि जैसे दिव्य गुण आपके कार्यों के माध्यम से प्रकट होते हैं। आप आनंद प्राप्ति के लिए कार्य नहीं करते बल्कि जब आप आनंदित होते हैं तब आपसे कार्य होते हैं। आप पूर्णता पाने हेतु कार्य नहीं करते बल्कि पूर्णता में रहकर आपके कार्य पूर्ण होते हैं।
आप जीवन की दौड़ में भाग लेते हैं, जिसे फिनिशिंग लाइन से शुरू करते हैं। यहाँ आप जीतने के लिए नहीं बल्कि खेलने का आनंद पाने के लिए खेलते हैं। यह तब होता है जब आप खुशी-खुशी जीतने की इच्छा का ही त्याग कर देते हैं। आपको फल पाने की भी इच्छा नहीं रहती क्योंकि आपका कर्म ही आपके लिए फल बन जाता है। यही बात आपके कर्म को उत्कृष्ट बनाकर बेहतर गुणवत्ता प्रदान करती है।
इस प्रकार किए गए कर्म हमें स्वअनुभव की गहराई में ले जाते हैं। जब हम सेल्फ की भव्यता (ग्लोरी) में जितनी अधिक दृढ़ता से टिके रहते हैं, हमारे कर्म उतने ही निखरकर निकलते हैं।
ग्लोरी ऑफ एक्शन दोहरे अभ्यास से आती है – एक मौन और दूसरा अपने कर्मों को समर्पित करने से… जैसा कि आपने 2019 के दौरान अभ्यास किया था। उसी अभ्यास को अब आप नियमित रूप से ध्यान और तपर्पण की आदत के साथ जारी रखनेवाले हैं। साथ ही आप जीव कल्याण के लिए ध्यान से अर्जित पुण्य को समर्पित करेंगे। यह मौन का अभ्यास, आपके हर दिन के कार्यों में सेल्फ के गुणों को उजागर करने में मदद करेगा। अब तक आपने 20 मिनट के ध्यान द्वारा एक पुण्य अर्जित करने की आदत विकसित की थी। इस वर्ष, इस ध्यान को बढ़ाकर दिन में 2 बार कर सकते हैं – यानी सुबह और रात में।
कर्मर्पण के अभ्यास में आप अपने शारीरिक, मानसिक कार्यों और विचारों को ईश्वर को समर्पित करेंगे। यहाँ कर्ताभाव का समर्पित होना महत्वपूर्ण है। इस तरह आपका हर कर्म पूजा में परिवर्तित हो जाएगा- जो कुछ भी हो रहा है, वह उसी असली चैतन्य की ही अभिव्यक्ति है। इस चैतन्य को आप सेल्फ, गॉड, ईश्वर, चेतना, अल्लाह, क्राईस्ट, वाहेगुरू – चाहे जो भी नाम दें।
कर्मर्पण के अभ्यास में आपको यह भी बताया गया कि अपनी सभी क्रियाएँ ईश्वर को समर्पित करें। इस संसार में जो हो रहा है और आपके जीवन में जो भी आता है, उसे स्वीकार करके, सजग रहते हुए समर्पित करें कि यह ईश्वर की लीला है, यह समझ मिलना कृपा है। जब आप ईश्वर की रज़ा में राज़ी होते हैं, इस बात में आपका विश्वास दृढ़ होता है कि ‘तुम्हें जो लगे अच्छा वही मेरी इच्छा’, ‘आपकी ही इच्छा पूर्ण हो’, ‘लेट दाय विल भी डन, नॉट माइन’ तब अहंकार गिरता है और सेल्फ उजागर होता है।
‘सभी कार्यों को समर्पित करना’, यह बात शुरुआत में आपको अजीब या अस्पष्ट लग सकती हो। मगर इसके नियमित अभ्यास से एक व्यवस्था बनाने में मदद मिलती है। इसलिए आप कर्मर्पण यानी कर्मों का सेल्फ के प्रति समर्पण का अभ्यास कर सकते हैं।
कर्मर्पण में आप दिन में तीन तरह से क्रियाओं को समर्पित कर सकते हैं –
- प्रतिदिन सुबह उठकर, आदत के अनुसार आप दाँतों को ब्रश कर लेते हैं और फिर नहाने जाते हैं। हर एक से ये क्रियाएँ सहज ही होती हैं। लेकिन कर्मर्पण के साथ आपको अपने दिन की शुरुआत होश के साथ करनी है। आप दिन की शुरुआत ऐसे कर सकते हैं – जैसे आपने सेल्फ (अनुभव) पर रहकर अपनी क्रियाएँ समर्पित की, तब आप हर एक क्रिया के प्रति सजग रहकर खुद को बताएँगे, ‘चैतन्य जागा’, ‘चैतन्य यह कार्य कर रहा है’, ‘चैतन्य ने यह कार्य किया’ या ‘चैतन्य यह कार्य करेगा।’ यह कर्मर्पण कम से कम 20 मिनट का होना चाहिए।
– - दिन के दौरान एक बार फिर से 20 मिनटों का कर्मर्पण करें। अपने नौकरी या व्यवसाय से संबंधित सभी गतिविधियों को होशपूर्वक समर्पित करें- जैसे कंप्यूटर पर काम करना, कुछ लिखना या किसी से कार्य संबंधित बातचीत करना आदि। खुद को बताएँ, ‘इस मनोशरीरयंत्र द्वारा चैतन्य अब सजगता से जागृत कर्म करेगा’ और बिना ध्यान भटकाए अपनी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करें। अगर आपका मन आपको विचलित करे और इससे आपका कर्मर्पण बीच में खंडित हुआ तो आपको 20 मिनट के इस सत्र को दोबारा से शुरू करना है, जिससे आपके अभ्यास में दृढ़ता आएगी।
– - जिस तरह एक तैराक स्विमिंग पूल की दीवार को छूकर वापस फिनिशिंग लाइन की ओर मुड़ता है, ठीक उसी तरह आप भी अपना कार्य शुरू करने से पहले सेल्फ के अनुभव में डुबकी लगाएँ और फिर कम से कम 20 मिनट के लिए स्व की उपस्थिति (प्रेज़ेंस) में रहकर कार्य करें।
इस तरह आप दिन में कम से कम 3 कर्मर्पण के सत्र का अभ्यास कर सकते हैं। जितना अधिक आप अभ्यास करते हैं, उतना ही यह आपके स्वभाव में ढलता जाएगा।
इसके अलावा ध्यान में दृढ़ता लाने और उसके अभ्यास को गहरा करने के लिए कुछ खास तरीके अपना सकते हैं।
- जब भी ध्यान के समय आपको कोई विचार भटकाए तो नाक से जोर से साँस छोड़ें, मानो आपके ऊपरी होंठ पर एक मक्खी बैठी हो, आपको उसे उड़ा देना है। अपने विचारों का विलय करने के लिए इस तरह की शारीरिक क्रिया का उपयोग करना एक बहुत ही प्रभावी तरीका है।
आप इस तकनीक का उपयोग तब भी कर सकते हैं जब आपका मन आत्मसमर्पण करने के बजाय किसी कार्य का श्रेय खुद लेना चाहता हो। यह आपको आत्मसमर्पण के अभ्यास में एक तरह से सख्ती लाने में मदद करेगा।
– - जिन लोगों के व्यवहार से आपको परेशानी होती है, उन्हें अपना आइना बनाएँ। उनके व्यवहार को अपना आत्मनिरीक्षण करने हेतु उपयोग में लाएँ और अपने नकारात्मक व्यवहार के पैटर्न और वृत्तियों को बाहर निकाल फेंके।
– - जब आप ध्यान में होते हैं तब अपने भीतर चेतना का सागर-मंथन देखना शुरू करें। यह महासागर के पौराणिक मंथन के अनुरूप है, जिसमें दैवी और आसुरी दोनों शक्तियों ने भाग लिया था, जिस वजह से जीवन के विभिन्न तत्वों (बुराइयों) का नाश हुआ।
ध्यान के दौरान आप हर चीज़ को बिना चिपकाव के, साक्षी भाव से देखें। सजग रहते हुए उस तटस्थ अवस्था में तब तक निरंतरता से बने रहें, जब तक आप चैतन्य की उपस्थिति को पहचानकर उसका अनुभव नहीं कर लेते। उस अवस्था में रहना जारी रखें क्योंकि यही जीवन का सार है, अमृत है!
हम कुछ ही समय में एक अलग पोस्ट में चेतना के महासागर के मंथन पर चर्चा करेंगे। इस पोस्ट के लिए हमारे ब्लॉग को फॉलो करें।
2020 के दौरान पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ दोहरा अभ्यास- ग्लोरी ऑफ ध्यान (तपर्पण मेडिटेशन) और ग्लोरी ऑफ एक्शन (कर्मर्पण) करें। इसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएँ, उसके साथ एकरूप हो जाएँ। यह आपको आपकी यात्रा में, स्वयं में स्थापित करने की दिशा में प्रेरित करेगा, जिससे मानव जीवन का लक्ष्य पूरा होगा।
19 comments
Sunil Nyati
Dhanyawad
Happy Thoughts
🙏🙏🙏🙏
विजय श्रीरामवार
अनंत कोटी धन्यवाद सरश्रीजी 🙏🙏🙏
कृपया, दूसरा पोस्ट भी जल्द से जल्द देने की कृपा करें…
Suhas v kininge
Dhanyvad sirshree
🙏🙏🙏🙏🏻
Ravi Telkar
Very nice
Useful to understand 2020 intention.
Dhanywad sirshree
सुभाष भंगाळे
धन्यवाद सरश्री लिखित संदेश पढकर बहोत आनंद आया. एैसेही आपकी कृपा हमेशा बरसे यह प्रार्थना
Mrudul Purohit
Dhannyawad Sirshree 🙏🙏🙏
Ashok Sutar
धन्यवाद sirshree
Shivprasad
समाधान ,संतुष्टि, समर्पण कहने में शब्द है
भावना के स्तर पर अनुभव है ।
उसी तरह बताई गई जानकारी ज्ञान कहे जो भी कहे जब भावना के स्तर पर आते है तो मैं कौन हूं अनुभव से जानना होता है ।
धन्यवाद सरश्रीजी
Amol
Dhanywad Sirshree
Ankita sharma
Anant koti dhanyawad pyare guruwar ko🙏🙏❣️