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चाहत… इच्छा… ख्वाहिश नाम कोई भी दें, सभी का अर्थ एक ही है। देखा जाए तो इंसान हर पल ख्वाहिशों से घिरा रहता है। एक ख्वाहिश पूरी हुई नहीं कि दूसरी सामने खड़ी होती है। उसके बाद तीसरी… चौथी… यह सिलसिला जीवन के अंत तक चलता ही रहता है। यहाँ तक कि मृत्यु के समय भी इंसान की कुछ न कुछ अभिलाषा रहती ही है। बहुत कम लोग होते हैं, जो शांति एवं पूर्णता से मृत्यु का स्वीकार करते हैं। वरना ज़्यादातर लोग ‘यह रह गया… वह होना चाहिए था…’, जैसी अपूर्णता में ही शरीर छोड़कर जाते हैं।
चाहते कौन-कौन सी होती हैं? इस सवाल से बेहतर होगा यह पूछना कि चाहते कौन सी नहीं होती हैं? क्योंकि इंसान पृथ्वी पर होनेवाली हर वस्तु से लेकर आकाश तक की चाहत कर सकता है, करता है। आप किसी भी बात को देखते हैं तब ‘यह चाहिए’ की इच्छा मन में जगती है। फिर चाहे वह छोटी चाहत हो अथवा बड़ी। किसी के पास लेटेस्ट मोबाईल फोन देखा तो आपको अपना फोन तुरंत पुराना लगने लगता है, आप वैसे ही फोन की चाहत करते हैं, जैसा सामनेवाले के पास है। विंडो शॉपिंग के बहाने बहुत सारी ड्रेसेस, ज्वेलरी को आपको अपने वॉर्डरोब का हिस्सा बनाने की इच्छा होती है।
दूसरों की देखा-देखी करते हुए इंसान अनगिनत इच्छाओं को जन्म देता है, उनके पीछे भागता रहता है। सिर्फ इतना ही नहीं, वह कुदरत को भी अपनी चाहत के अनुसार चलने के लिए कहता है। जैसे, ज़्यादा गरमी न हो… मेरे घर पहुँचने के बाद ही बारिश हो इत्यादि।
* चाहत ही दुःख का कारण है
इंसान की एक चाहत पूरी होते ही उसे आनंद मिलता है और वह तुरंत दूसरी इच्छा की ओर दौड़ता है। साथ ही इच्छा पूरी होने पर उसमें ‘मैंने किया’ का अहंकार भी जगता है। उसके बाद चाहत की चाहत जगती है यानी हर इच्छा पूरी होनी ही चाहिए, इस हठ से इंसान कार्य करता है। चाहत यदि पूरी हुई तो फिर से अहंकार बढ़ता है। पूरी होने में बाधा आई, देरी हुई तब क्रोध आता है। जब इच्छा पूरी नहीं होती तब उसे निराशा घेर लेती है। इस तरह परिस्थिति कौन सी भी हो, चाहत के पीछे दुःख आता ही है।
इसका अर्थ क्या हमें चाहतें रखनी ही नहीं चाहिए? चाहतों के बिना ही जीना चाहिए? जिसका जवाब है ‘नहीं’ और ऐसा हो भी नहीं सकता। मनुष्य जीवन में आशा, इच्छा-आकांक्षा का महत्त्व बहुत है। लेकिन हर चाहत को सही दिशा देना भी ज़रूरी है। जिसके लिए जागृति की आवश्यकता है।
* चाहतें कैसी निर्माण होती हैं
इंसान बेहोशी में चाहतें पैदा करता है। जब उसके पास खाली समय होता है तब भी वह इच्छाओं में खोया रहता है। किसी की देखा-देखी वह अनगिनत चाहतों का शिकार बनता है। घर में हो या बाहर, उसके मन में चाहतें जगती ही हैं। नई-नई ख्वाहिशों के बारे में सोचना और उन्हें पूरा करने में पूरा जीवन बीता देना, यह इंसान को बचपन से लगी हुई आदत है। बच्चा स्कूल में जाता है, फिर कॉलेज में, उसके बाद नौकरी-व्यवसाय करते हुए सेटल्ड होता है। इन सारी बातों में वह कई सारी इच्छाओं के पीछे भागता ही रहता है। लेकिन यदि वह किसी दमदार लक्ष्य के साथ जीने के बारे में सोचता है, खुद को लक्ष्य देता है तो अनजाने में, अज्ञान में की जानेवाली कई इच्छाओं पर रोक लग सकती है। जिसके लिए हरेक ने खुद को एक लक्ष्य देना आवश्यक है।
* चाहतें पूर्ण करने में अंतर्मन की भूमिका
इंसान के जीवन में अंतर्मन की भूमिका बहुत ही अहम है। अंतर्मन मनुष्य का ऐसा साथी है, जो बिना कुछ सोचे उसे पूरा सहयोग देता है। इसलिए जब भी आप चाहतें जगाते हैं, वे पूरी न होने पर दुःख तो करते हैं लेकिन तुरंत दूसरी नई चाहत निर्माण करते हैं। उस वक्त ऐसे करने की आवश्यकता है अथवा नहीं, यह न जानते हुए अंतर्मन उस पर कार्य करता है, उसकी हैबिट बना डालता है। जिस भी चीज़ की पुनरावृत्ति (रिपीटेशन) होती है, अंतर्मन चुपचाप उसकी आदत बना ही डालता है ताकि आगे चलकर इंसान को सहूलियत हो। उस एक ही बात के लिए उसे बार-बार प्रयास न करना पड़े। लेकिन हैबिट से जगनेवाली व्यक्ति की इच्छाओं पर आप एक बार सजग हो गए और उन्हें पूरा नहीं किया या उनके पीछे नहीं दौड़ें तब तक अंतर्मन को उस विशिष्ट आदत के लिए योग्य सिग्नल जाएगा। ‘अभी तक आप इच्छाओं को दोहराने का जो यंत्रवत कार्य कर रहे थे, उन्हें रिपीट करने की अब ज़रूरत नहीं है’, यह बात आप सजगता के साथ अंतर्मन तक पहुँचाएँगे, उसे सही सिग्नल देंगे तब यह हैबिट टूटने का कार्य शुरू होगा।
* अनचाही चाहतों को समझ के साथ छोड़ें
एक बार आप अपनी चाहतों के प्रति सजग हो गए, ‘मैं जो इच्छा करने जा रहा हूँ, वह वाकई मेरी ज़रूरत है या चाहत?’ यह जान लिया तो मन में सही बीज डालने का कार्य शुरू हो जाएगा। इसके लिए होश से खुद को कहना होगा कि ‘अब सचमुच जो मैं चाहता हूँ, वही चीज़ें सजगता से मुझे रिपीट करनी हैं, अंतर्मन को वही सिखाना है, जो मैं अपने जीवन में चाहता हूँ।’ उसके बाद आपका अंतर्मन आपको वह सब देगा, जिसकी आप सचमुच इच्छा कर रहे हैं। इस तरह जो भी आदतें पड़ चुकी हैं, जिनकी ज़रूरत नहीं हैं, उन्हें समाप्त करें। आपका नुकसान करनेवाली आदतें पहले ही समाप्त हो जाएँ। इसी के साथ देखें कि जो आदतें नुकसानकारक नहीं हैं मगर आपके लक्ष्य के साथ नहीं जा सकतीं, उन्हें भी डिलीट करें।
* चाहतों की पहचान करना सीखें
मनुष्य के जीवन में तीन प्रकार की इच्छाएँ होती हैं। व्यक्ति की इच्छा, शुभेच्छा और तेजइच्छा। आमतौर पर इंसान का जीवन व्यक्ति (अहंकार) की इच्छा पूरी करते हुए ही बीत जाता है। लेकिन जब जागृति आती है, जीवन में किसी विशिष्ट लक्ष्य के साथ चलने के लिए इंसान तैयारी करता है तब वह अपनी इच्छाओं को समझते (दर्शन करते) हुए आगे बढ़ता है। ध्यान (होश) ऐसा माध्यम है, जहाँ पर इंसान अपनी चाहतों को स्पष्ट रूप से देख पाता है। ध्यान के प्रकाश में हर चाहत उजागर हो सकती है, जिससे इंसान को हर अंग के साथ जुड़ी हुई तथा मन में दबी हुई चाहतों का भी पता चलता है। ध्यान में ही आप आंतरिक इंद्रियों से समझ सकते हैं कि ‘वाकई मैं मुक्त होना चाहता हूँ या बंधन में ही खुश रहना पसंद करता हूँ।’ मनन द्वारा आपकी चाहतों की अवस्था आप जान सकते हैं। उन पर खोज करते हुए गहराई तक जा सकते हैं। आपकी हर चाहत आपका आगे का कदम प्रकाशित करती है।
इसलिए अब चाहतों के प्रति सजग हो जाएँ। आपकी चाहत अव्यक्तिगत हो, यह शुभेच्छा रखें। आज तक जितने भी वैज्ञानिक, संशोधक, लेखक हुए हैं, वे उनके द्वारा हुए कार्य से अमर हुए। विभिन्न क्षेत्रों में उनके द्वारा हुई खोज पर, उनके सिद्धांतों के आधार पर आज भी आगे के कार्य निरंतरता से जारी हैं। जिन लोगों द्वारा ये कार्य हुए, हो रहे हैं, उनकी चाहतें अव्यक्तिगत थीं। आप भी जब कुछ अनोखा सोचेंगे, आपके विचार स्पष्ट होंगे तो उन चाहतों को पूर्ण करने का रास्ता भी आपको अपने आप मिलता जाएगा। लेकिन अपने हर विचार, इच्छा को पूरी तरह जान लेने के लिए हर दिन ध्यान में अवश्य बैठें।
इस तरह व्यक्ति की चाहत से आप शुभेच्छा की ओर बढ़ेंगे। ध्यान में, ‘मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर के माध्यम से अपने होने का, ज़िंदा होने का मात्र एहसास कर रहा हूँ’, इस सत्य को आप अनुभव से जान जाएँगे। इस सत्य को ध्यान में इतनी दृढ़ता मिले कि तेज चाहत अपने आप उठनी चाहिए। तब आप महसूस करेंगे कि तेजचाहत के सामने सभी चाहते फीकी हैं। उसके बाद शरीर के साथ जो भी इच्छा रहेगी, वह अव्यक्तिगत होगी।
व्यक्ति की चाहत से ईश्वर की चाहत तक का यह रास्ता आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। ध्यान-मनन-खोज द्वारा व्यक्ति की अंतहीन चाहतों को जानकर मूल इच्छा यानी तेजइच्छा तक पहुँचने का यह मार्ग ज़रूर अपनाएँ और सच्ची मुक्ति का आनंद प्राप्त करें।
~ सरश्री की शिक्षाओं पर आधारित
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