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दुनियाभर में १ अप्रेल को मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है| इस दिन लोग एक-दूसरे के साथ मसखरी करते हैं और उस मजाक से उत्पन्न हुई स्थितियों पर हँसते हैं| पर तब क्या होगा, जब वह मजाक आपके साथ किया जा रहा हो?
अध्यात्म की दृष्टि से देखें तो इस सृष्टि का सबसे बड़ा मजाक, ब‘ह्मांड का सबसे बड़ा चुटकुला है ’माया’ और यह ऐसी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न करता है, जिसके दायरे में पूरी मानवता ही आ जाती है| माया क्या है? यह वास्तविकता की आभासी प्रकृति है| जिस दिन यह समझ आ जाती है, उस दिन अपनी सबसे बड़ी मूर्खता भी समझ आने लगती है| यह मजाक हमारे साथ दिन-रात, चौबीसों घंटे चल रहा है तो क्यों न १ अप्रेल का दिन हम सृष्टि के इस सबसे बड़े मजाक के ही नाम कर दें!
ऐसा कर पाने के लिए जरूरी है कि हम सबसे पहले यह समझें कि ब‘ह्मांड का यह सबसे बड़ा चुटकुला वास्तव में है क्या| यह विश्व कुछ और नहीं बल्कि सेल्फ इन एक्शन (शक्ति) है जिसे सेल्फ एट रेस्ट (शिव) द्वारा संचालित किया जाता है| शरीर और मन की रचना का मूल उद्देश्य यह है कि चेतना ’स्व’ का अनुभव कर सके| पर इस रचना की खूबसूरती यह भी है कि इसमें मन भी चैतन्य हो जाता है, खुद को महसूस करने लगता है| अधिकांशतः यह धारणा इस तरह आत्मकेंद्रित हो जाती है कि मन अपना मूल उद्देश्य भूलकर बाहरी जगत में मगन हो जाता है और दुनिया के चक्करों में हिचकोले खाने लगता है| यही तो ब‘ह्मांड का सबसे बड़ा चुटकुला है… मन खुद को और संसार को वास्तविक मान लेता है और इसे अनुभव करना तथा नियंत्रित करना चाहता है| यही माया का फेर है जबकि सच्चा अध्यात्म वह है जब मन इन विचारों से इस प्रकार मुक्त हो जाए कि चेतना ‘स्व’ का अनुभव कर सके|
सच्चाई यही है कि यह मजाक इतना वास्तविक मालूम पड़ता है कि मन अपना मूल उद्देश्य भूल जाता है| अगर आप किसी शीशे के सामने रोज किसी शीशे को तोड़ें तो वह शीशा यह भूल जाएगा कि वह खुद भी एक आईना है और कभी चूर-चूर हो सकता है| वह भूल जाएगा कि वह भी भंगर है, कभी भी बिखर सकता है| आप कह सकते हैं कि वह शीशा अप्रेल फूल बनाया जा रहा है| इसी तरह, हर रात मन सपने देखता है और उनमें खुद को वास्तविक मान लेता है| चेतना की अभिव्यक्ति के लिए रचा जा रहा भ‘म खुद को ही वास्तविक मान लेता है| मन भूल जाता है कि वह भी सपने का ही एक भाग है और केवल चेतना की कल्पना मात्र है| इस प्रकार से मन अप्रेल फूल बन जाता है, मानवता मूर्ख बन जाती है| यह दुनिया का सबसे बड़ा मजाक, सबसे बड़ी मसखरी है|
एक बार एक व्यापारी किसी जौहरी के पास गया और कहा कि वह उसकी पूरी संपत्ति की कीमत लगाए, जो उसने हीरों में तब्दील करवा ली है| जौहरी ने थोड़ी जांच-परख के बाद व्यापारी से कहा कि उसके सारे हीरे नकली हैं| व्यापारी दुःखी हो गया और अपने भाग्य पर आँसू बहाने लगा| जौहरी ने एक सुझाव दिया, ‘मैं जानता हूँ कि हीरे नकली हैं, पर यह बात केवल मुझको ही तो पता है| आप ऐसा क्यों नहीं करते कि एक बंपर सेल की घोषणा करें और ऐलान कर दें कि आप अपने सभी हीरे इसमें केवल एक-तिहाई दाम पर बेच देंगे|’ भागते भूत की लंगोटी भली, ऐसा सोचकर व्यापारी ने तुरंत उसके विचार को स्वीकृति दे दी ताकि उससे कुछ तो मिल जाएगा| हीरों की बिक‘ी शुरू हो गई| जब भी कोई खरीददार कोई हीरा खरीदता, व्यापारी अपनी होशियारी पर खुश होते हुए सोचता, ‘देखो, मैंने एक और इंसान को बेवकूफ बना दिया| बिक गया मेरा एक और नकली हीरा|’ व्यापारी को यह नहीं पता था कि हर हीरे की बिक‘ी के साथ वह खुद मूर्ख बन रहा है| दरअसल, उसके सभी हीरे असली ही थे| जौहरी ने उसे गलत सूचना देकर ठगने की योजना बनाई थी और सस्ते दामों पर हीरे खरीदने वाले खुद उसके आदमी थे|
तो, अब अप्रेल फूल दिवस पर दूसरों की मूर्खता पर हँसने की जगह सोचें कि ब‘ह्मांड का सबसे बड़ा मजाक कैसे आपको कदम-कदम पर मूर्ख बना रहा है| इस पर मनन करें और १ अप्रेल को साल का सर्वाधिक आध्यात्मिक दिवस बनाने का प्रयास करें| इसके लिए तीन खास तरीके हैं कि यह दिन एक बहुत बड़ा उत्सव बन जाए, मुक्ति दिवस बन जाए, माया से मुक्त कर सकने का निमित्त दिवस बन जाए|
विचारों का उत्सवः इस विशेष दिवस का उत्सव वास्तविकता की आभासी प्रकृति के बारे में विचार करते हुए मनाएँ| इस पर विचार करें कि माया किस तरह आपको मूर्ख बनाती है|
ध्यान का उत्सवः इस खास दिन को ध्यान में लीन होकर मनाएँ| जहॉं मन खत्म हो जाता है उस ‘नमन’ की स्थिति में जाकर मनाएँ| जब मन खत्म हो जाता है तब ही सेल्फ की चमक फूटती है| चेतना शरीर और मन के द्वारा स्व का साक्षात्कार करती है और तब ही मन की रचना का उद्देश्य पूरा होता है| तब मन को अप्रेल फूल नहीं बनाया जा सकता|
परख का उत्सवः इस अद्भुत दिवस को अपनी मूर्खताओं को परखने की कसौटी के रूप में मनाएँ| आप क्या गलतियॉं करते हैं? ऐसी कौन सी गलत मान्यताएँ हैं जो आपके आध्यात्मिक विकास को रोक रही हैं?
सवाल यह भी उठ सकता है कि हम ऐसा उत्सव मनाएँ ही क्यों? जवाब है कि क्यों न मनाएँ? यह उत्सव इसलिए मनाएँ क्योंकि १ अप्रेल उस रचना का प्रतीक है….जब इस सृष्टि का सबसे बड़ा मजाक शुरू हुआ था| यह उत्सव इसलिए मनाएँ कि मन का मैल धुल सके, मूर्खताओं के जाले हट सकें और आप उत्साहित तथा प्रसन्न हो सकें|
हिंदी में April का उच्चारण ‘अप्रेल’ करते हैं| यह संसार एक ऐसा सफर है, जहॉं जीवन की रेल तरक्की की राह पर ऊपर जानी चाहिए, नीचे नहीं| आपके जीवन की गाड़ी डाउनरेल न हो जाए, पटरी से न उतरे, अवसाद में धीमी न पड़े…अप-रेल रहे, इसके लिए माया के भ‘मजाल को समझना होगा| विचार, ध्यान और परख से ही इंसान यह जाल काट सकता है| ऐसा हो सका तो आप भी मजाक में उलझने की जगह माया का मजाक समझ पाएँगे और सृष्टा के साथ एकाकार होकर सृष्टि के इस सबसे बड़े मजाक पर हँस पाएँगे|
5 comments
नन्दलाल
खुद की मूर्खता को समझने का दिन – १ अप्रेल।
बहुत गहराई है लेख में।
N P Mishra
धन्यवाद सरश्री जीवन को नई दिशा देने के लिए।
G R GANGWAR
मन के नमन होने पर ही स्व- अनुभव पर स्थापित हो सकता है । लेख में बहुत सही तरीके समझाया गया कि माया पर मनन करके वास्तविक ईश्वर को जाना जा सकता है। खुद को मिटाकर खुदा बन सकते है ।
Kishor Dange.
1st April murkhata divas, mulkhata ko janane ka divas.
Suyog Puranik
Dhanywaad Sirshree