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एक समय की बात है, जब एक इंसान अपनी आजीविका चलाने के लिए पत्थर तोड़ा करता था| वह गॉंव के सिवान में पहाड़ियों पर हर रोज़ जीतोड़ मेहनत करता था|
एक दिन पत्थर तोड़ते वक्त उसके ज़हन में एक खयाल कौंधा| उसने सोचा कि मैं दिनभर पत्थर तोड़ने के लिए हाड़तोड़ परिश्रम करता हूँ और लोग इन्हें अपने आलीशान मकान बनाने में इनका इस्तेमाल करते हैं| वह सहसा मन ही मन सोचने लगा कि ‘काश! मेरा भी अपना मकान होता|’ इसके तुरंत बाद आकाशवाणी हुई कि ‘हे वत्स! तुम्हारी सभी इच्छाएँ पूरी होंगी|’ इसके बाद उसे निजी मकान का तोहङ्गा मिला| जिसमें उसने हँसी-खुशी कुछ दिन व्यतीत किए|
इसी बीच एक दिन एक राजा का काङ्गिला उसके मकान के सामने से गुज़र रहा था| राजा को हाथी पर बैठा देख पत्थर तोड़नेवाले शख्स ने सोचा कि राजा होना कितना सुखद एहसास होता कि वह इतने ऐशो-आराम से लैस है| मन ही मन सोचा, ‘काश! कि मैं राजा होता| उसके इतना कहते ही उसकी यह मुराद भी पूरी हो गई| राजा बनने के पश्चात वह हाथी पर सवार होकर बड़े ही सुकून से टहलने लगा| कुछ दिनों तक ऐशो-आराम की ज़िंदगी के एहसास से भी वह ऊब गया|
कुछ दिनों की ऐश के बाद उसे अपने वाहक पर सवारी करना सुखद एहसास नहीं दे रहा था क्योंकि उसे गरमी सताती थी| गरमियों के दिन थे| एक दिन पसीने से लथपथ होने पर उसने सोचा कि ‘सूरज से ़ज़्यादा ताकतवर कोई नहीं| काश! कि मैं सूरज होता|’ उसने मन ही मन सोचा, उसकी यह इच्छा भी पूरी हो गई| सूरज बनने के बाद वह बहुत खुश हुआ| लेकिन उसकी यह खुशी बहुत ़ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकी| गरमी बीतते ही बरसात का मौसम अस्तित्त्व में आ गया| बादलों से घिरे आसमान में सूरज कहीं गुम सा हो गया था| जिसे देखते हुए उसके मन का खयाली कीड़ा ङ्गिर जागा| उसने सोचा कि ‘बादल सूरज से भी ़ज़्यादा ताकतवर मालूम पड़ते हैं| काश कि मैं बादल होता| इतना कहते ही वह बादल बन गया| अब उसकी खुशी का ठिकाना न था| क्योंकि अब उसे खुद से ़ज़्यादा किसी के ताकतवर न होने का एहसास मन ही मन गुदगुदा रहा था| लेकिन उसका यह सुखद एहसास भी तब हवा-हवाई होता दिखा जब तेज़ हवाओं के आवेग के चलते बादल इधर से उधर होने लगे|
अब उसे लगा कि हवा से ताकतवर कोई नहीं होता है| उसने खुद के हवा होने की कल्पना की जिसने तुरंत हकीकत की शक्ल ले ली| हवा की शक्ल लेने के बाद वह इधर-उधर बह रहा था| उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था| उसने अपने तेज़ आवेग से कई पेड़ों को जड़ से उखाड़ ङ्गेंका| लेकिन उसकी ताकत की पहाड़ों आगे एक न चली. पहाड़ हर बार उसके आवेग को रोक देते थे| जिसके बाद उसे लगा कि पहाड़ों से ़ज़्यादा ताकतवर शायद कोई नहीं है| उसने पहाड़ बनने की इच्छा जताई| हर बार की तरह इस बार भी उसकी इच्छा पूरी हुई| वह पहाड़ बन गया|
कुछ दिनों के बाद एक आदमी ने छोेटे-छोटे पत्थर निकालने के लिए पहाड़ को तोड़ना शुरू कर दिया| जिसके बाद खयाली कीड़ा ङ्गिर जागा| उसने सोचा कि पत्थर तोड़ता इंसान पहाड़ पर हावी दिख रहा है तो उसे भ्रम हुआ कि इससे ताकतवर शायद कोई भी नहीं| उसने पत्थर तोड़नेवाला बनने की इच्छा जताई| जो कि पूरी हो गई और वह आखिरकार अपने पुराने अस्तित्त्व में ङ्गिर से लौट आया|
सुख की तलाश में, सबसे ताकतवर बनने की उसकी इस पूरी यात्रा से उसने सबक लिया| उसे अब इस बात का एहसास हो चुका था कि उसकी इच्छाएँ प्रकृति के नियम के खिलाङ्ग थीं| इसके बाद उसने जीवन में दोबारा ङ्गिर कभी अपना पेशा या रूप न बदलने की कसम खाई| उसने ताउम्र पत्थर तोड़ना जारी रखा| लेकिन संतुष्ट-असंतुष्ट होने के इस सङ्गर से सबक लेने के बाद अब वह पहले से कहीं ़ज़्यादा खुश व संतुष्ट था|
इस कहानी को पढ़ने के बाद हो सकता है कि ़ज़्यादातर लोग कहें कि इसका मकसद लोगों को आगाह करने का है| लेकिन हकीकत में इस कहानी का नैतिक अर्थ इससे कहीं ़ज़्यादा है| इस कहानी का उद्देश्य हमें हमारे दिमाग के कार्य करने की शैली का तरीका जानना भी है| हमारा दिमाग हमें अपने अस्तित्त्व में निरंतर बदलाव करने के लिए उकसाता है और अगर हम उसके बहकावे में आ गए तो खुशी यदा कदा ही हमारे पास भटकती है| हमेशा खुश रहने के लिए हमें अपनी प्रकृति के खिलाङ्ग नहीं जाना चाहिए| हम जो हैं, हमारे पास जितना है, उसी में खुश रहना चाहिए| हमें खुद को पहचानना होगा| अपने अस्तित्त्व को अपनी कमज़ोरी नहीं बल्कि ताकत मानना चाहिए|
विचारों के आने और जाने के सिलसिले में हमारा मन कई तरह की आशंकाओं से होकर गुज़रता है| ये आशंकाएँ हमारे अस्तित्त्व को लेकर सशंकित करती रहती हैं| जिसके चलते हमारा चंचल मन इधर-उधर भटकता रहता है|
…सरश्री
One comment
Suyog Puranik
Dhanywaad Sirshree