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मैं परम सत्य की खोज में हूॅ। लेकिन, क्या इसके लिए सचमुच इतना प्रयास करना और ष्ारीर को इतना कश्ट देना जरूरी है? क्याऐसा कोई नहीं है, जो मेरे सारे सवालों के जवाब दे सके?दुनिया भर में जिन आध्यात्मिक तरीकों का प्रचार-प्रसार हो रहा है, उनमें कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है, कहीं न कहीं कोई मिसिंग लिकं जरूर है।
इंसान का प्राथमिक उद्देष्य यही है कि वह अपने अस्तित्व की मूल अवस्था को प्राप्त कर उसमें स्थापित हो सके और फिर उसी अवस्था मेंरह सके। जो जवाब इस उद्देष्य की पूर्ति करते हैं, सिफ़र् वे ही अर्थपूर्ण हैं, भले ही उन्हें कितने भी बार पढ़ा या सुना जाए।
इन सारे सवालों के जवाब उसी जगह पर उपलब्ध हैं, जहॉं से सवालों की उत्पत्ति हुई हैं। जब यह रहस्य खुल जाता है, तो आप अपने मूल तक, अपने अस्तित्व के केंद्र यानी स्रोत तक पहुँचने में सक्षम हाे जाते हैं। फिर आप स्वयं से कहेंगे, ‘‘अब कोई सवाल बाकी नहीं रहा। अब मैं अपने भीतर से ही सारे जवाब प्राप्त कर सकता हूँ।‘‘ इस तरह आप तेजज्ञानहासिल कर लेते हैं। जब तक आप यह सब नहीं कर लेते, तब तक एक सच्चा आध्यात्मिक गुरू आपको आपके सवालों के जवाब या तेजज्ञानप्रदान कर सकता है। तेजज्ञानका उद्देष्य आपको बौद्धिक ज्ञान प्रदान करना नहीं है, बल्कि सेल्फ को पाने में, अस्तित्ववादी अनुभव में आपकी सहायता करना है।
तेजज्ञान वह प्रज्ञा है, जो ज्ञान और अज्ञान से परे है – यह हर ज्ञान का स्रोत है। तेजज्ञान को जाननेऔर समझनेसे जीवन पूर्णत: एकीकृत बन जाता है। तेजज्ञान प्रज्ञा की वह अवस्था है, जहॉं कुछ भी गुप्त नहीं है, सब कुछ स्पश्ट नज़र आता है।
लोगों को लगता है कि मीरा ने ईष्वर की स्तुति में भजन गाए, इसीलिए उन्हें प्रज्ञा प्राप्त हुई। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रज्ञा प्राप्त होने के कारण ही वे इतनी भक्ति के साथ भजन गा सकीं। इसी तरह जीसस ने भी पहले एक विष्िाश्ट प्रज्ञा हासिल की, जिसके बाद उनसे स्वत: ही करूणापूर्ण कार्य होने लगे। जबकि लोगों ने जो मान रखा है, वह इसका ठीक उल्टा है। यह विष्िाश्ट प्रज्ञा ही तेजज्ञान है।
सत्य की खोज में जुटे कई खोजी इसबारे में बड़े सष्ांकित रहते हैं : ‘‘मैं सही मार्ग पर हूँ या नहीं?’‘आमतौर पर उनके अंदर ष्ाून्यता या खालीपन का एहसास बना रहता है, जिससे उन्हें लगता है, ‘‘मैंने जो मार्ग चुना है, ष्ाायद वह काफ़ी नहीं है। कुछ न कुछ और जरूर होगा, जो इससे कहीं बेहतर होगा।’’ हाे सकता है कि कभी वे स्वयं से पूछते हों, ‘‘क्या सचमुच इतना प्रयास करना और ष्ारीर को इतना कश्ट देना जरूरी है? क्या ऐसा कोई नहीं है, जो मेरे सारे सवालोंकेजवाब दे? इस सबमें कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है, कहीं न कहीं कोई मिसिंग लिकं जरूर है।’’
इन सभी ष्ांकाओंऔर सवालों का जवाब है तेजज्ञान – यह ऐसा सत्य है, जो ज्ञान-अज्ञान के परे है।इसे सिर्फ़ अनुभव किया जा सकता है।दूसरी ओर, जो मिसिंग लिकं है, वह है ‘समझ।‘ समझ ही आपको अंतिम सत्य की ओर लेकर जाती है।
तेजज्ञान फाउंडेष्ान द्वारा आयोजित महाआसमानी ष्िाविर में सरश्रीयही समझ प्रदान करते हैं। यह समझ आपको सत्य के अनुभव की ओर ले जाती है – इसे आप आत्मसाक्ष्ाात्कार, ज्ञानोदय, ईष्वर से साक्षात्कार या जो चाहें कह सकते हैं। यदि सही पद्धति प्रयोग की जाए, तोईष्वर या सेल्फ का प्रत्यक्ष अनुभव संभव है। तेजज्ञान यही पद्धति, यही समझ है। इस समझ को सिर्फ़ नियमित श्रवण करके भी प्राप्त किया जा सकता है। नियमित श्रवण के पाठ्यक्रम को ही प्रज्ञा का प्रबंध (सिस्टम फॉर विज़डम)कहा जाता है।
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