भावनात्मक परिपक्वता (EQ) बढ़ाएँ
इंसान की भावनाएँ हर क्षण बदलती रहती हैं। चाहे किसी के कुछ कहने पर बदले, वातावरण की वजह से या घटनाएँ होने पर बदले… सुबह से लेकर शाम तक भावनाओं में उतार-चढ़ाव होते रहता है। क्या आपने कभी सोचा है कि भावनाओं के इन बदलाव के पीछे क्या कारण है? भावनाएँ हमें क्या याद दिलाने आती हैं? अपनी भावनाओं को समझना भी एक कला है। जिन्हें यह कला आ जाए, वे ही भावनात्मक स्तर पर परिपक्व बनकर, जीवन के हर क्षेत्र में सफल होते हैं। इस पुस्तक में पढ़ें :
* वाह! हर घटना में आनंद को चुनें।
* आह! जानें कि कैसे आप कतार में खड़े होकर दु:ख खरीदते हैं।
* हुर्रे! अपनी भावनाओं को खेल समझकर डील करें।
* आहा! छोटी, खोटी और मोटी भावनाओं में सजगता बढ़ाएँ।
* उफ्! समझें कि ‘सीने में जलन, आँखों में तूफान सा क्यों है’?
* वाह-वाह! भावनाओं को सही जगह और सही समय पर व्यक्त करने की कला सीखें।
* वॉव! भावनाओं को वरदान बनाएँ, न कि अभिशाप। उन्हें स्वीकार करके जीवन में परिवर्तन लाएँ।
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