भीतरी मार्ग- आत्मसाक्षात्कार का प्रसार
आज मनुष्य के जीवन में मनोरंजन के साधनों की सुख-सुविधा, आधुनिक टेक्नोलॉजी से देश-विदेश और शास्त्रों की जानकारी उसके हाथ में आकर सिमट गई है। ऐसी विविध संपन्नता में भी उसके दुःख तथा असंतोष की सीमा नहीं है। बाहरी तौर पर हम जिसे विकास कहते हैं, वह भीतर से मनुष्य को और भी खोखला कर रहा है। क्योंकि आज नए-नए मोह व आसक्ति ने मनुष्य को घेर रखा है।
हर दिन नई-नई इच्छाएँ जन्म ले रही हैं तो फिर इसका अंत कहाँ है? वह है सेल्फ के आविष्कार में! सभी मनुष्यों के भीतर सेल्फ की अखंड चेतना निरंतर प्रकाशमान है। जिसे स्वअनुभव से जानना ही मनुष्य जीवन का प्रयोजन है।
इस प्रयोजन को सफल बनाने के लिए आदि शंकराचार्य ने अपने छोटे से जीवन काल में जो अभूतपूर्व कामगिरी की, यह पुस्तक उसका दर्शन कराती है। साथ ही जीवन प्रयोजन की पूर्णता का मार्ग भी दिखाती है।
तो चलिए, पुस्तक का पठन करते हुए बढ़ते हैं, उस भीतरी मार्ग की ओर…. जो अब तक लगभग अप्रकाशित है…।
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