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भावनाओं को जानकर सही शब्दों में व्यक्त करें
एक संत के पास गाँव के लोग अकसर शिकायतें लेकर आते थे कि उन्हें किसी पड़ोसी, रिश्तेदार आदि से परेशानी है। वे संत से यह भी कहते कि ‘आप कुछ ऐसा टोना-टोटका करें कि हमारे दुश्मनों का नुकसान हो जाए।’ एक दिन संत ने लोगों से कहा- ‘अच्छा ऐसा करो, तुम सभी को जिन-जिनसे शिकायत है, उनके नाम का एक-एक आलू लेकर आओ।’
‘संत हमारे दुश्मनों पर कोई टोटका करेंगे’ यह सोचकर गाँववालों की खुशी का ठिकाना न रहा। अगले दिन संत ने देखा कि कई गाँववाले झोला भर-भरकर आलू ले आए हैं। संत ने कहा, ‘अब इन आलुओं को तीस दिन तक चौबीसों घंटे अपने साथ रखो।’ सभी ने ऐसा ही किया मगर वे आलू कुछ ही दिन तक ठीक रहे। बारहवें-तेरहवें दिन से आलू सड़ने शुरू हो गए। बीसवें दिन तो दुर्गंध के कारण गाँववालों को आलू अपने साथ रखना मुश्किल हो गया और उन्होंने संत से गुज़ारिश की कि वे आलुओं को फेंक देने की आज्ञा दें।
तब संत ने राज़ खोला, ‘इन खराब आलुओं को आप कुछ दिन नहीं रख पाए तो मन में भरी नकारात्मक भावनाओं की गाँठों को ज़िंदगीभर ढोने के लिए कैसे तैयार हैं?’ तब गाँववालों को एहसास हुआ कि वाकई वे किस तरह नकारात्मक भावनाओं के शिकंजे में फँस रहे हैं।
यह कहानी इंसान की आंतरिक अवस्था की ओर संकेत करती है। कई बार इंसान अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाता। जिस वजह से वह द्वेष, भय, चिंता, क्रोध, तनाव जैसी नकारात्मक भावनाओं में अटककर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार बैठता है। ऐसे में क्या करें? निम्नलिखित दो तरीके कभी भी न अपनाएँ, जो आमतौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं।
पहला तरीका- दूसरों पर गुस्सा निकालना:
भावनाओं को विलीन करने का पहला तरीका है, अपनी भड़ास दूसरों पर निकालना। यह तरीका बहुत ही खतरनाक है क्योंकि अपनी भावनाएँ दूसरों पर थोपने से इंसान कर्मबंधन में अटक जाता है। दूसरों के प्रति द्वेष, ईर्ष्या या क्रोध इंसान को पश्चाताप की अग्नि में जला देता है। क्रोध की शुरुआत चाहे किसी भी बात से हो मगर उसका अंत हमेशा पश्चाताप और ग्लानि से ही होता है। हम जिस इंसान पर अपनी नकारात्मक भावनाएँ थोप देते हैं, वह हमें मुँहतोड़ जवाब देने का मौका ढूँढ़ते रहता है। फिर यह दुश्चक्र चलते ही रहता है। हालाँकि क्रोध करने से इंसान थोड़ी देर के लिए राहत महसूस करता है मगर यह भावनाओं को नियंत्रित करने का सही तरीका नहीं है।
जैसे गन्ने की मशीन में गन्ना डालते हैं तो उसकी मिठास पहले मशीन को मिलती है, फिर दूसरों को। लेकिन यदि उसमें पत्थर डाले जाएँ तो पहले नुकसान मशीन का होगा। इस उदाहरण में हमारा शरीर वह मशीन है, ऐसा अगर हम समझें तो पत्थर यानी नकारात्मक भावनाएँ, जिससे हमारी हानि पहले होगी। जैसे कोई किसी को गाली देता है तो उसका नकारात्मक असर सामनेवाले पर हो या न हो लेकिन गाली देनेवाले पर पहले होगा।
दूसरा तरीका- भावनाओं को दबाना:
दूसरे तरीके में इंसान अपनी भावनाओं को अंदर ही अंदर दबाता है। वह ऊपर से दिखाता है ‘देखो, मैं कितना अकंप हूँ’ मगर अंदर ही अंदर सिकुड़ता जाता है। लेकिन दबी हुई भावनाओं का जब विस्फोट होता है तब इंसान चीखता-चिल्लाता है। यह बिलकुल वैसा है, जैसे धरती के पेट में दबा हुआ ज्वालामुखी! जिस दिन धरती की सहनशक्तिखत्म हो जाती है, उस दिन ज्वालामुखी फट जाता है।
कुछ लोगों के मन में बदलते मौसम से संबंधित भावनाएँ उभरती हैं। जैसे गर्मियों के मौसम में कुछ लोगों को इम्तिहान की याद आती है क्योंकि उन्होंने इम्तिहान दिए होते हैं। वातावरण की बदलाहट से उनके मन में उभरनेवाली भावनाएँ भी बदल जाती हैं। ऐसे लोग अपने मन में उभरनेवाली भावनाएँ सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते। कई बार वे अपनी भावनाएँ दबाते जाते हैं। परिणामस्वरूप दबी हुई भावनाएँ अलग-अलग बीमारियों के रूप में व्यक्त होती हैं।
इसलिए अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए ऊपर दिए हुए दो तरीकों से सावधान रहें। अगर आप नकारात्मक भावनाओं से मुक्त होकर, आनंद की ऊँचाइयाँ छूना चाहते हैं तो आगे दिए गए पाँच कदम अपनाएँ।
1) शुभचिंतक की सलाह लेना:
इस तरीके में इंसान कुछ शुभचिंतकों से बातचीत करता है। वह अपनी भावनाएँ किसी मित्र, रिश्तेदार या काउंसिलर से शेयर करता है। परिणामस्वरूप उसका मन हलकापन महसूस करने लगता है क्योंकि अपनी दुःखद भावनाएँ किसी भरोसेमंद इंसान के साथ बाँटने से वह तनावमुक्त होने लगता है। अकसर यह देखा गया है कि सिर्फ बोलने से इंसान की कई नकारात्मक भावनाएँ विलीन हो जाती हैं। सुननेवाला इंसान (मित्र, रिश्तेदार या काउंसिलर) उस इंसान से कपटमुक्त बात करके उसे सही राह दिखाने का प्रयास करता है।
2) भावनाओं का सामना करना:
कुछ लोग बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए भावनाओं का सामना करते हैं। अगर किसी को डर की भावना महसूस हो तो वह उसे चुनौती समझकर उसका डटकर सामना करता है। कोई इंसान चिंता की अवस्था में खुद से कुछ सवाल पूछकर चिंता का सामना करता है। जैसे-
सवालः मैंने आज तक जिन चीज़ों के बारे में चिंता की है, क्या वे सभी घटनाएँ हुई हैं?
जवाबः नहीं लेकिन उनमें से कुछ घटनाएँ तो ज़रूर हुई हैं, जो मैंने सोची थीं।
सवालः जो घटनाएँ हुई थीं, क्या वे उतनी ही भयानक थीं, जितनी मैंने कल्पना की थी?
जवाबः नहीं, सभी घटनाएँ उतनी भयानक नहीं थीं लेकिन उनमें से कुछ सचमुच भयानक थीं।
सवालः जो भी एक-दो घटनाएँ घटीं क्या मैं उनका मुकाबला कर पाया?
जवाबः जी हाँ! लगभग सभी घटनाओं का सामना मैं कर पाया।
इस तरीके से इंसान अपनी तर्कशक्ति के आधार पर भावनाओं का सामना करता है। मगर भावनाओं पर नियंत्रण पाने का तीसरा उच्चतम तरीका भी उपल्ब्ध है और वह है, ‘भावनाओं को साक्षीभाव से जानना।’
3) उच्चतम तरीका:
भावनाओं पर नियंत्रण पाने का सबसे असरदार मार्ग है- अपनी भावनाओं को साक्षी भाव से जानना। भावनाएँ समुंदर में उठनेवाले तूफानों की तरह होती हैं। कुछ देर बाद तूफान शांत होता है मगर ‘तूफान आना’ और ‘तूफान शांत होना’ इन दोनों घटनाओं के बीच का वक्त आप किस तरह काटते हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण है। हालाँकि यह समय होता है जागृति का! अपनी भावनाओं को जानकर उन्हें सही शब्दों में अभिव्यक्त करना ही सफलता की कुंजी है।
4) भावनाओं को सकारात्मक शब्द देना:
कोई भी घटना परेशानी नहीं होती, वह परेशानी तब बनती है जब आप अपनी भावनाओं को नकारात्मक शब्द देते हैं। जब भी आपके साथ कोई घटना घटती है तब आप उसे अपनी उस वक्त की अवस्था के मुताबिक ही बयान करते हैं। आप उस एहसास के लिए कुछ शब्द चुनते हैं। जैसे- ‘मुझे बहुत डर लग रहा था… मैं बहुत असुरक्षित महसूस कर रहा था… मुझे शॉक लगा… मैं ऊब गया था… परेशान हो गया था… निराश हो गया था… मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था… मुझे चिंता हो रही थी… मैं बहुत अशांत महसूस कर रहा था इत्यादि। इस तरह आप अपनी हर भावना को कुछ शब्द देते हैं लेकिन विडंबना यह है कि आप उन्हें अकसर नकारात्मक शब्द देते हैं।
अगर आपने अपनी भावना के लिए ‘परेशानी’ शब्द कहा तो ‘परेशानी’ शब्द से ही परेशानी शुरू हो जाएगी। परेशानी शब्द की जगह पर अगर आप भावनाओं को शरीर पर होनेवाले दबाव, खिंचाव, तरंग के रूप में बिना लेबल लगाए देखें और कहें कि ‘अब जो घटना हो रही है उसका हल है, फल है, उसमें सीढ़ी है, सीख है और चुनौती है। यह घटना चुनौती बनकर कुछ सीख देने के लिए आई है, यह निमित्त और सीढ़ी बनकर आई है। यही घटना हल और फल देने आई है’ तब आपको वह घटना परेशानी नहीं लगेगी। आपने अपनी भावनाओं को सही शब्द दिए तो आप हर घटना को चुनौती मानकर अभिव्यक्ति करेंगे और उसका आनंद लेंगे। इसलिए हमेशा यह याद रखें कि जब भी परेशानी आए, अपनी भावनाओं पर सही तरीके से काम करें और भावनाओं से विश्वास की तरफ जाएँ।
5) हर घटना की कीमत तय करना:
सोचिए, आप बाजार से एक रुपए की माचिस दस रुपए में खरीदते हैं? नहीं! इसी तरह आपके जीवन में होनेवाली एक घटना की कीमत कितनी हो सकती है? यदि छोटी सी घटना में भी आप ज़्यादा परेशान हो रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप उस घटना की ज़्यादा कीमत अदा कर रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर आपको पता चला कि किसी ने आपके बारे में पीठ पीछे कुछ गलत कहा है। यह सुनकर आप उस रिश्तेदार से नाराज हो जाते हैं। ऐसे में आप यह जानने की कोशिश भी नहीं करते कि इस बात में कितनी सच्चाई है।
दरअसल, आपको यह मालूम नहीं होता कि सामनेवाला इंसान स्वयं की भावनाओं को सँभाल ही नहीं पाता और आप उसी से उम्मीद रखकर अपने आपको तकलीफ दे रहे होते हैं। इसमें समझनेवाली बात यह है कि उसका लक्ष्य और जीवन दोनों आपसे अलग हैं। इसलिए अब आपको खुद की भावनाओं को जानकर सही प्रतिसाद देना है।
दुःखद भावनाओं से मुक्ति पाने के ये पाँच कदम आपके अंदर आत्म-अनुशासन, निडरता, विवेक शक्ति, धीरज, लचीली बुद्धि, मन की स्थिरता, आश्चर्य, संतुष्टि, प्रेम, आनंद, शांति जैसे दिव्य गुण विकसित करेंगे।
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