सभी भक्तों में हनुमान एक ऐसी चरित्र रेखा हैं, जो श्रीराम की ही तरह सभी के दिलों पर खिंची हुई है। यह रेखा लक्ष्मण रेखा की तरह अति गहरी है, जिसे दुनिया का कोई रावण पार नहीं कर सकता।
हनुमानजी स्वयं महामनस्वी थे यानी उनमें मन, कर्म तथा वाणी की एकता थी। उनका मनोबल जितना प्रबल था, उतने ही उनके कर्मबल भी प्रबल थे। महान ज्ञानी होते हुए भी उन्होंने प्रभु प्राप्ति के लिए भक्ति का ही सहारा लिया। उनकी दृष्टि में भक्तियोग एक ऐसा मार्ग है, जो कि स्वतंत्र है, उसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं। भक्ति के द्वारा ज्ञान-विज्ञान सभी साध्य हैं।
उनका तो समस्त जीवन ही प्रभु की सेवा के लिए समर्पित था। उनका अवतरण ही ‘राम-काज’ के लिए हुआ था। हनुमान की सेवा के स्तर को पाना किसी सामान्य इंसान के लिए कठिन हो सकता है मगर एक भक्त के लिए नहीं क्योंकि हनुमान अनन्य भक्ति के प्रतीक हैं।
हनुमानजी प्रतिक्षण रामकाज करने को ही अपने जीवन का उद्देश्य मानते थे। स्वामी की कार्यसिद्धि के लिए उन्हें मान, अपमान, विश्राम अथवा शारीरिक सुख-सुविधा की कोई चिंता नहीं थी।
लीडरगम का गुण
हनुमान में नेतृत्व के गुण भी थे पर कुछ अलग ढंग के। वे सभी लीडरों को जोड़नेवाले, उनमें समन्वय लानेवाले लीडर थे। उन्हें हम लीडरगम यानी लीडरों को जोड़नेवाला गोंद कहें तो भी गलत न होगा। हनुमान ने लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण सभी को एक साथ संभाला, सभी नायकों को एक साथ जोड़े रखा। किससे, कैसे पेश आया जाए, यह भी वे भली-भाँति जानते थे। सभी महानायकों को जोड़े रखने की कला को कहते हैं, ‘लीडरगम का दम।’
हनुमान एक प्रभावशाली और लचीले लीडर थे। वे हर जगह, हर परिस्थिति में अपने आपको ढाल लेते थे। बच्चों के साथ बच्चा, बूढ़ों के साथ बूढ़ा, जवानों के साथ जवान, पुरुष के साथ पुरुष और स्त्री के साथ स्त्री बनकर पेश आते थे। उनकी बुद्धि में भी हर परिस्थिति में ढलनेवाली ऐसी ही लचक थी।
लीडर का कर्तव्य है कि वह सबको जोड़कर रखे, सबकी खूबियों को पहचाने और सबका सहयोग लेकर उच्चतम सफलता प्राप्त करे। सबको जोड़कर रखने के गुण को लीडरगम का गुण कहते हैं। एक सच्चा नायक सभी लीडर्स को गम (गोंद) की तरह चिपकाकर (जोड़कर) रखता है। जिसमें लीडरगम का गुण है, वह सभी की सुनता है और सबको एक-दूसरे का अलग-अलग दृष्टिकोण और एक दृष्टि लक्ष्य तब तक बता पाता है, जब तक उनमें भी लीडरगम का गुण नहीं आ जाता।
हनुमान सेवक के भी सेवक थे। लक्ष्मण केवल अपने भाई श्रीराम की सेवा में जुटे रहते थे, जबकि हनुमान श्रीराम के साथ-साथ लक्ष्मण, सुग्रीव तथा विभीषण का भी ध्यान रखते थे, उनकी भी सेवा करते थे। इस तरह हनुमान ने सबको जोड़े रखा। वे अलग-अलग महारथियों को जोड़नेवाली एक महत्वपूर्ण कड़ी थे।
प्रसंगानुसार लचीलापन
अमर हनुमान के अंदर प्रसंगानुसार कार्य करने का लचीलापन है। वे न केवल अपने बाह्य शरीर को आवश्यकतानुसार छोटा-बड़ा कर सकते हैं बल्कि अपनी मानसिकता को भी प्रसंग के अनुरूप बना सकते हैं। उन्होंने अलग-अलग प्रसंगों में अलग-अलग तरह से व्यवहार कर, अपने कार्य सिद्ध कर दिखाए। हनुमान के इस गुण से हमें यह सीख प्राप्त करनी चाहिए कि प्रसंग के अनुसार अपने आपको ढालकर कैसे व्यवहार करें। कहाँ नम्रता से पेश आना है, कहाँ स्वयं को आगे रखना है, कहाँ धैर्य से काम लेना है, कहाँ शीघ्रता दिखानी है, भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में हमारा व्यवहार कैसा हो। इसके लिए ज़रूरी है मन में निरंतर ध्येय का ध्यान, ठीक उसी तरह जिस तरह हनुमान के मन-मस्तिष्क में सीता माता की खोज की धुन और हृदय में श्रीराम का अनुभव था। हनुमान के लिए यह संभव हुआ क्योंकि उनकी आंतरिक अवस्था ही उन्होंने ऐसी बना ली थी।
हनुमान के हर कार्य के पीछे एक विधायक, रचनात्मक सोच थी। उनकी बुद्धि थी ही सकारात्मक। ऐसा बुद्धिबल, ऐसी सोच, हमें भी प्रदान हो, जो बुद्धि साधना में साधक बने, बाधक नहीं।
आप भी हनुमान से ऐसी परोपकारिणी, रचनात्मक बुद्धि का वरदान माँग सकते हैं, उनसे ऐसे बुद्धिबल का वरदान प्राप्त कर सकते हैं, जो दूसरों के कष्टों को दूर करने में सहायक हो। जो दूसरों को उनके सत्कार्य में आनेवाली बाधाओं को दूर करने में सक्षम हो। जो त्याग और बलिदान करवाने के काम में सहायक हो। ऐसी शक्तिजो कर्म से ओतप्रोत हो, जिसमें तेज़ी हो, ऐसा बल पाने की तीव्र इच्छा का जगना ही शुभ इच्छा है।
~ सरश्री
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