एक इंसान प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना किया करता था कि ‘मेरी लॉटरी लग जाए ताकि मेरी आर्थिक समस्याएँ सुलझ जाएँ और पैसों की तंगी से उत्पन्न मेरा दुःख समाप्त हो जाए।’
प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करके भी कोई फल न आने के कारण हताश होकर उसने ईश्वर से कहा, ‘हे ईश्वर! आखिर तुम मेरी प्रार्थना क्यों नहीं सुनते?’
उसी समय आकाशवाणी हुई कि ‘पहले लॉटरी का टिकट तो खरीद।’
हर दिन प्रार्थना करने पर भी उस इंसान को यह बात पकड़ में नहीं आई थी कि उसने अभी तक लॉटरी का टिकट ही नहीं खरीदा है।
जैसे ही आकाशवाणी हुई, वह भागता हुआ गया और तुरंत उसने लॉटरी का एक टिकट खरीदा। लॉटरी के परिणाम की तारीख आई और चली भी गई मगर उसकी लॉटरी नहीं लगी।
वह फिर परेशान हुआ और उसने ईश्वर से पूछा, ‘अब मेरी लॉटरी क्यों नहीं लगी?’
उसके सवाल पूछने पर उसे आवाज़ सुनाई दी कि ‘घर से बाहर तो निकल।’
आवाज़ सुनते ही वह घर से बाहर निकला तो उसे रास्ते पर टिफिन दिखाई दिया। उसने वह टिफिन खोलकर देखा तो उसमें एक दीया, कपास, तेल, माचिस और लॉटरी का एक टिकट भी था। ये सभी चीज़ें देखकर वह बड़ा खुश हुआ।
उसने सोचा कि ‘अब ईश्वर ने खुद लॉटरी का टिकट भेजा है तो मेरी लॉटरी ज़रूर लगेगी।’ मगर हमेशा की तरह वह तारीख भी आकर चली गई, उसकी लॉटरी नहीं लगी। वह बड़ा दुःखी हुआ। परेशान होकर उसने ईश्वर से गुहार लगाई, ‘आखिर मेरी लॉटरी क्यों नहीं लगती?’
फिर आकाशवाणी हुई, ‘पहले दीया तो जला।’ आकाशवाणी सुनकर उसने दीया जलाने के लिए दीए में तेल डाला, बाती बनाई और फिर माचिस की तीली जलाने के लिए माचिस की डिब्बी खोली तो उसमें से एक हीरा निकला। हीरा पाकर वह अत्यंत खुश हुआ। वह सोच रहा था कि उसकी समस्या लॉटरी का टिकट लगने से ही सुलझेगी मगर ईश्वर ने उसकी प्रार्थना किसी अलग और अनोखे तरीके से पूरी की।
यह कहानी सुनकर अब आपको समझ में आया होगा कि ईश्वर आपकी उन्नति किसी और माध्यम से करना चाहता है। अतः सबसे पहले घटना पर दुःखी होना बंद कर दें। हो सकता है, कुछ दिनों बाद कंपनी में आपको कोई विशेष पद बहाल किया जाए या किसी अन्य कंपनी में किसी ऊँचे ओहदे पर नियुक्त किया जाए या फिर आपके द्वारा कोई निजी व्यवसाय शुरू किया जाए। आपकी उन्नति के कई मार्ग हैं, एक ही मार्ग नहीं है।
जैसे, जब इंसान ईश्वर से अपनी उन्नति के लिए प्रार्थना करता है और देखता है कि प्रमोशन की सूची में उसका नाम नहीं है तो वह दु:खी हो जाता है। ‘मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? आखिर कब तक मैं यूँ ही परेशानी से भरा जीवन जीता रहूँगा?’ इन विचारों से वह बहुत परेशान हो जाता है।
यदि उसे यह बताया जाए कि जो कुछ हो रहा है, वह तुम्हारी प्रार्थना का ही फल है तो वह मानेगा नहीं।
वह कहेगा, ‘मैंने तो ईश्वर से अपनी उन्नति के लिए प्रार्थना की थी, जब कि मेरी तो अवनति ही हुई है। मेरी इतनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से काम करने का ईश्वर ने मुझे क्या फल दिया? मेरे साथ तो धोखा ही हुआ और आप कह रहे हैं कि जो कुछ भी हुआ है, वह मेरी प्रार्थना का फल है! इसका अर्थ क्या मैंने ईश्वर से गलत प्रार्थना की थी?’
आपने प्रार्थना तो बिलकुल सही की थी मगर ईश्वर आपकी प्रार्थना अपने तरीके से पूर्ण करेगा। आपने अपनी उन्नति के लिए प्रार्थना की है तो यह ज़रूरी नहीं कि वह आपके प्रमोशन के ज़रिए ही हो। हो सकता है प्रमोशन का न होना आपकी उन्नति की सीढ़ी हो।
अकसर इंसान से यह गलती हो जाती है कि वह ईश्वर से प्रार्थना करता है और ईश्वर को ही अपनी प्रार्थना पूर्ति का रास्ता बताता है कि ‘इस-इस तरीके से मेरी फलाँ-फलाँ समस्या सुलझा दो।’ जब कि यह कहानी इस बात की ओर संकेत करती है कि आपको ईश्वर को दुःख मुक्ति का रास्ता नहीं बताना है, सिर्फ दुःख से मुक्त होने की प्रार्थना करनी है। फिर ईश्वर चाहे किसी भी योग्य तरीके से, जो आपके लिए बना है, आपका दुःख दूर करे क्योंकि दुःख मुक्ति के लिए ईश्वर का रास्ता ही सर्वोत्तम है, परिपूर्ण है। यह सुखी जीवन के पासवर्ड के कुछ सूत्रों में से एक है।
सुखी जीवन जीने की कुछ सूत्र हैं, जिनमें से एक आप पढ़ चुके हैं। आगे कुछ और सूत्र दिए जा रहे हैं। इन सूत्रों को अपने जीवन में ढालकर जीवन की सुखद यात्रा करें। ये सूत्र इस प्रकार हैं:
- ‘कौन हूँ मैं?’ कोई भी जानवर खुद से यह सवाल नहीं पूछता क्योंकि उसे इस सवाल की आवश्यकता नहीं है, न ही उसे सोचने के लिए बुद्धि मिली है। इंसान विचारवान है, वही इस बात को समझ सकता है। अगर वह कह रहा है, ‘मैं अशांत हूँ’ तो सूत्र ने अपना काम नहीं किया, वह नाकाम हो गया। बजाय इसके अगर इंसान कहता, ‘मैं शांत इंसान हूँ, जो इस समय अशांति की गुफा से गुज़र रहा है’ तो उसके दिमाग की पुरानी रिकॉर्डिंग बदल जाती है। दरअसल आप हमेशा से ही शांत हैं मगर बीच-बीच में अशांति की भावना रूपी छोटी गुफा आती है, जिससे आप गुज़रते हैं।
- ‘कौन है वह?’ कौन है वह यानी सामनेवाला कौन है? सामनेवाला है आपका ‘साझेदार’ (भागीदार), जो आपके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने आया है। वह आपके जीवन में आपका सहयोगी (कॉन्ट्रिब्यूटर) बनकर आया है। वह आपका सह-निर्माता यानी को-क्रिएटर है। यदि आपके जीवन में आपके लिए कोई नकारात्मक भूमिका निभा रहा है तो समझ लीजिए कि वह पृथ्वी पर आपका साझेदार बनकर आया है।
- दुःख मुक्ति के लिए ईश्वर का रास्ता ही सर्वोत्तम है, परिपूर्ण है। अकसर इंसान से यह गलती हो जाती है कि वह ईश्वर से प्रार्थना करता है और ईश्वर को ही अपनी प्रार्थना पूर्ति का रास्ता बताता है कि ‘इस-इस तरीके से मेरी फलाँ-फलाँ समस्या सुलझा दो।’ जब कि आपको ईश्वर को दुःख मुक्ति का रास्ता नहीं बताना है, सिर्फ दुःख से मुक्त होने की प्रार्थना करनी है। फिर ईश्वर चाहे किसी भी योग्य तरीके से, जो आपके लिए बना है, आपका दुःख दूर करे क्योंकि दुःख मुक्ति के लिए ईश्वर का रास्ता ही सर्वोत्तम है, परिपूर्ण है।
- समस्या आए तो पहले खुश हो जाएँ, फिर उसे सुलझाएँ। आज तक लोगों ने दुःख की घटना को या समस्या को दुःख की नज़र से ही देखा है। इंसान को जब समस्या आती है तब पहले वह दुःखी होता है, फिर दुःख की नज़र से समस्या को देखता है। यह व्यवहार सभी को तार्किक लगता है। लेकिन दुःखी इंसान केवल दुःख ही निर्माण कर सकता है। इसलिए किसी भी दुःखद घटना को पहले तो दुःख की नज़र से देखना बंद करें और खुश हो जाएँ। यह तर्क में चाहे न बैठे मगर यही सत्य है। आपको पहले अपने दुःख और समस्याओं को खुशी की नज़र से देखना होगा, फिर उससे बाहर आना आपके लिए सरल होगा।
- ‘दोष दूसरों में है, इस विचार में दोष है और वह विचार आपके अंदर है। इसलिए दोष देखना बंद कर, इन-साफ करें।’ इंसान सदा दूसरों में ही दोष ढूँढ़ता है और दु:खी होता है। उपरोक्त पंक्ति को आत्मसात कर जब आप नकारात्मक घटनाओं में अपने अंदर खोज करेंगे, स्वयं को टटोलेंगे तब आपको एहसास होगा कि सामनेवाले में दोेष देखने की बजाय स्वयं पर कार्य करने की ज़रूरत है।
दुःखी जीवन से मुक्ति यानी सुखी जीवन की ओर बढ़ने में उपरोक्त सूत्र आपकी मदद करेंगे।
दुःख हमें दुःख देने के लिए नहीं आता है बल्कि हमें आनंद प्रदान करने के लिए निमित्त बनता है। हर घटना हमें बल देने के लिए आती है। अतः हमें उस बल का योग्य इस्तेमाल कर सुखी जीवन जीना है।
खुशी तो सदा से इंसान के अंदर है ही। उसे पाने के लिए किसी थिएटर में या किसी बगीचे में जाने की आवश्यकता नहीं है। नौकरी में प्रमोशन होने का इंतज़ार करने की या किसी की शादी होने का इंतज़ार करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि अपने आपको सिर्फ सुखी जीवन के सूत्र याद दिलाने की आवश्यकता है।
~ सरश्री
One comment
Ramkrishna mahindrakar
Dhanyawad Sirshree.