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उत्तम पुस्तकें और आध्यात्मिक ग्रंथों का योगदान
लोकप्रिय जैन साहित्यकार टोडरमल एक ग्रंथ लिखने में जुटे हुए थे, जो बाद में ‘मोक्ष मार्ग’ नाम से लोकप्रिय हुआ। वे सुबह आँख खुलते ही पूरी एकाग्रता के साथ लिखने में जुट जाते थे और रात देर तक लिखते रहते थे। उन्हें न खाने-पीने की सुध थी, न ही आस-पास की दुनिया का खयाल था। पूरे समर्पण भाव से वे अपने साहित्य के कार्य में दिलो-जान से जुटे हुए थे।
एक दिन जब वे भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी माँ से कहा, ‘माँ लगता है आज आप सब्जी में नमक डालना भूल गई हैं।’ तब माँ ने मुस्कराते हुए कहा, ‘बेटा, लगता है आज तुम्हारा ग्रंथ पूरा हो गया है।’ यह सुनकर टोडरमल हैरान हो गए क्योंकि माँ की बात बिलकुल सच थी। आश्चर्य से उन्होंने माँ की ओर देखा। उनका ग्रंथ पूरा हो गया, यह बात माँ को कैसे पता चली? हालाँकि उन्होंने तो इस बारे में माँ को कुछ भी नहीं बताया था।
उन्होंने आश्चर्यभरे स्वर में माँ से पूछा, ‘आपकी बात बिलकुल सच है। मेरा ग्रंथ आज पूरा हो गया है लेकिन आपको इस बात का पता कैसे चला?’ माँ ने कहा, ‘देखो बेटा, मैं पिछले छह महीने से सब्जी में नमक नहीं डाल रही हूँ लेकिन आज तक तुम्हारा ध्यान इस बात पर नहीं गया क्योंकि तुम पूरी निष्ठा से अपनी साहित्य साधना में जुटे हुए थे। आज जब तुमने नमक की कमी पर ध्यान दिया तो मुझे यह महसूस हुआ कि ज़रूर ग्रंथ लिखने का काम पूरा हो गया है तभी तो तुम सब्जी और नमक के बारे में सोचने लगे हो।’
विश्व में ऐसे कई लेखक हैं, जो स्वयं को भूलकर दिन-रात उच्चतम ग्रंथों के निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। मगर जितनी एकाग्रता और गंभीरता से वे लेखन करते हैं, क्या उतनी ही गंभीरता से पाठकों द्वारा उन ग्रंथों का पठन किया जाता है? रामायण, महाभारत, गुरु ग्रंथसाहिब, कुरान, बाइबिल आदि अनेक धर्मग्रंथों ने मनुष्य जीवन के लगभग सभी पहलुओं से संबंधित सर्वोच्च मार्गदर्शन दिया है। आज भी ये ग्रंथ ‘मानवता’ का मूल्य सिखा रहे हैं। ईश्वर विभिन्न माध्यमों द्वारा इंसान को मानवता का दिव्य मार्गदर्शन देता है मगर सच्चाई यह है कि इंसान उस संदेश को समझ नहीं पाता।
कुछ महापुरुषों को ‘आत्मबोध’ प्राप्त होने के बाद उन्होंने ईश्वरीय ज्ञान ग्रंथों के माध्यम से प्रस्तुत किया। जिसमें संपूर्ण मानव जाति के उद्धार की, संपूर्ण विकास और विश्वशांति की संभावना छिपी हुई है। ये ग्रंथ पढ़ना भी एक कला है। जब आप उच्चतम ग्रंथ पढ़ने की कला सीखेंगे तब इन ग्रंथों में छिपा हुआ असली अर्थ अपने जीवन में उतार सकेंगे।
आध्यात्मिक ग्रंथों का पठन क्यों करें :
पुस्तकें कई प्रकार की होती हैं। कुछ पुस्तकें सिर्फ ऊपर-ऊपर से देखने योग्य होती हैं। कुछ पुस्तकें पढ़ने लायक होती हैं मगर आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़कर मनन करने और उन पर अमल करने योग्य होती हैं। क्योंकि वे आपके जीवन की दशा ही नहीं बल्कि दिशा भी बदलती हैं। परिणामस्वरूप जीवन को निश्चित लक्ष्य मिलता है। जो आपके मन के अंधेरे कोने में प्रकाशित होने लगता है।
आइए, आध्यात्मिक ग्रंथ पठन के मुख्य पाँच लाभों को समझते हैं।
पहला लाभ : अंदर से जागृति
एक बार एक इंसान कंप्यूटर पर टाइप किए हुए पत्र का प्रिंट निकाल रहा था। प्रिंट निकालने के बाद उसे एक गलती नज़र आई। उसने गलती से ‘आप’ की जगह ‘शाप’ टाइप कर दिया था। अतः उसने तुरंत कलम उठाई और कागज़ पर गलती सुधार दी। उसके बाद दूसरा प्रिंट निकाला। उसे बड़ी हैरानी हुई कि गलती हू-ब-हू मौजूद थी। उसने दोबारा गलती को सुधारा और तीसरा प्रिंट निकाला। आखिरकार एक जानकार ने उसे बताया, ‘यदि आप गलती में सुधार चाहते हैं तो उसे प्रिंट किए कागज़ पर नहीं बल्कि कंप्यूटर के अंदर टाइप किए हुए पत्र में करना होगा।’
इंसान को लगता है, बदलने या परिवर्तन करने की ज़रूरत मुझे नहीं, बाकी लोगों को है। आध्यात्मिक ग्रंथों के पठन से यह स्पष्ट होता है कि हमें अपने अंदर जाकर मनन करना होगा, अपना चरित्र सशक्त बनाना होगा। इन ग्रंथों के पठन का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इनमें अभिभावकों का हृदय परिवर्तन करने की ताकत होती है। ये ग्रंथ इंसान को अंदर से जागृत करने में सक्षम होते हैं।
दूसरा लाभ : गुणों का विकास
पढ़ना मस्तिष्क के लिए वैसा ही है, जैसा शरीर के लिए व्यायाम! मगर आध्यात्मिक ग्रंथ पठन से सिर्फ बुद्धि का व्यायाम ही नहीं बल्कि हमारे अंदर कई गुणों का विकास भी होता है। संकल्पशक्ति, निर्णय लेने की कला, एकाग्रता, निरंतरता, समय नियोजन जैसे कई गुण हमारे व्यक्तित्व का अंग बनने लगते हैं। क्योंकि इन ग्रंथों में गुणों पर मार्गदर्शन होता है। लगभग सभी आध्यात्मिक ग्रंथ हमारी ‘आंतरिक अवस्था’ की ओर निर्देश करते हैं।
रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ पढ़ते वक्त हमें महसूस होता है कि वास्तव में रामायण या महाभारत हमारे अंदर और आस-पास हर जगह घट ही रहा है। उसका हर पात्र या तो हमारे आस-पास है या हमारे अंदर ही मौजूद है। रामायण में जो मायावी राक्षस थे वे आज रूप बदलकर हर जगह छाए हुए हैं। रिश्तों का तनाव, डिप्रेशन, बोरडम, ईर्ष्या, नफरत, समय बरबाद करनेवाले मनोरंजन के साधन जैसे राक्षस इंसान को हमेशा तंग करते हैं। दूसरी ओर यही ग्रंथ हमें इस योग्य भी बनाते हैं कि हम इन विकाररूपी राक्षसों को हरा सकें, अपने अंदर हर समय प्रेम, आनंद, शांति का रामराज्य स्थापित कर सकें, अपने लक्ष्य को हँसते-हँसते प्राप्त कर सकें।
तात्पर्य- आध्यात्मिक ग्रंथ हमारे अंदर प्रेम, आनंद, शांति, समृद्धि, संतुष्टि, सेवाभाव, चुस्ती, भक्ति, अभिव्यक्ति जैसे ईश्वरीय गुणों को विकसित करते हैं।
तीसरा लाभ : कुदरती संकेत पाना
कई लोगों ने यह अनुभव किया होगा कि वे जब किसी उलझन या संदेह में थे तब ग्रंथ की कोई विशेष पंक्ति पढ़ते ही उन्हें उनकी समस्या का समाधान मिल गया। अर्थात ग्रंथ हमारे जीवन में ‘संकेत भेजनेवाले संदेशक’ की भूमिका भी निभाते हैं। किसी ने कहा है, ‘पुस्तकें विश्व की खिड़कियाँ हैं। इन खिड़कियों से इंसान को कुदरती संकेत मिलते हैं। जीवन की सभी निराशाओं की अचूक दवा है- आध्यात्मिक पुस्तकें।’
आध्यात्मिक पुस्तकें वे होती हैं, जो मार्गदर्शन पाने हेतु खोली जाती हैं और खुशी एवं लाभ के साथ बंद की जाती हैं।
कुछ पुस्तकें खोलने के बाद आपको अपनी कमियों का एहसास होने लगता है मगर कमियों पर मात करने का मार्गदर्शन भी उसी पुस्तक में मिलता है। जैसे- कोई इंसान स्वास्थ्य के प्रति बेहोश है तो उसे किसी पुस्तक में यह संकेत मिलता है कि ‘शारीरिक स्वास्थ्य पाना ही सफलता की बुनियाद है।’ किसी को रिश्तों में नई रोशनी लाने के बारे में संकेत मिलता है तो किसी को कुदरत के कार्य करने का तरीका समझता है। किसी को पैसों के बारे में सही समझ आत्मसात करने के बारे में संकेत मिलता है तो किसी को दान का महत्त्व पता चलता है। किसी को अपने अहंकार और रजोगुण पर नियंत्रण लाने के बारे में संकेत मिलता है तो किसी को सभी दुःखों से मुक्ति पाने की समझ मिलती है।
चौथा लाभ : मनन से संपूर्ण सफलता
‘बिना मनन के हीरे भी कोयले हैं और बिना मनन के ग्रंथ भी केवल उपन्यास हैं।’ मनन एक ऐसी आदत है, जो इंसान को संपूर्ण सफलता के सर्वोच्च शिखर पर ले जाती है। बिना मनन के धार्मिक पुस्तकें, जो सत्य बताने के लिए लिखी गई हैं, वे मात्र उपन्यास बनकर रह जाती हैं। हालाँकि ग्रंथों का पठन करते वक्त बीच-बीच में ‘मनन ब्रेक’ लेना चाहिए। इस अवधि में ग्रंथ में पढ़ी बातों पर मनन-चिंतन होना चाहिए।
कोई भी आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ते वक्त आप किस तरह से मनन करते हैं? क्या आप सभी किरदारों को अवतार के रूप में देखते हैं, आश्चर्य और चमत्कारों से भरी कथा के रूप में देखते हैं या कोई काल्पनिक कथा के रूप में देखते हैं? अगर आप ग्रंथों में समाई हुई सीख अपने जीवन में उतारते हैं तो इसका अर्थ है कि आपने सही मायने में उस ग्रंथ का पठन किया। अन्यथा इतनी महान रचना आपके लिए बस एक कहानी बनकर रह जाती है।
पाँचवाँ लाभ- मोक्ष का द्वार
पाठकों के तीन प्रकार होते हैं। पहले प्रकार के लोग ‘पढ़ो, भूल जाओ’ वाला सूत्र अपनाते हैं। ऐसे लोग केवल ‘टाइमपास’ के लिए कुछ पढ़ते हैं और भूल जाते हैं।
दूसरे प्रकार के लोग ‘पढ़ो, फूल जाओ’ सूत्र अपनाते हैं। कई लोग सिर्फ दूसरों को दिखाने के लिए बड़े धर्मग्रंथों का पठन करते हैं। ‘मैं सब जानता हूँ… मैंने इतने सारे ग्रंथों का पठन किया है’, इस विचार से वे अहंकारी बन (गुब्बारे की तरह फूल) जाते हैं। ऐसे पाठकों की वाणी में ज्ञानयुक्त शब्द, मंत्र या श्लोक रहते हैं मगर उनका जीवन देखकर पता चलता है कि उन्होंने ‘जानकारी’ को ही ज्ञान समझने की भूल की है।
तीसरे प्रकार के पाठकों का नारा होता है- ‘पढ़ो, डूब जाओ’। ऐसे पाठक सही समझ के साथ पठन करते हैं। वे ग्रंथ में इस तरह डूब जाते हैं, जैसे रसगुल्ला चाशनी में डूबा होता है। जैसा कि आप जानते हैं रसगुल्ले के अंदर भी रस होता है और बाहर भी। वैसे ही कुछ पाठक ग्रंथों में इतने डूब जाते हैं कि ज्ञान का रस उनके अंदर-बाहर बहने लगता है। उनके भाव, विचार, वाणी और क्रिया में भी ज्ञान झलकता है। परिणामस्वरूप, आध्यात्मिक ग्रंथों का पठन उनके लिए मोक्ष का द्वार खोलता है।
आध्यात्मिक पुस्तकों का पठन क्यों करना चाहिए, यह जानने के बाद अब जानते हैं इनका पठन किस प्रकार करना चाहिए।
1) दिशा के साथ पढ़ें : जब इंसान बिना दिशा के कोई पुस्तक या ग्रंथ पढ़ता है तो उसका पढ़ना, न पढ़ना बराबर होता है। दिशाहीन पठन का लाभ इंसान को नहीं मिलता। कई लोग सालों-साल गीता, कुरान, बाइबिल, दासबोध लेकर बैठते हैं मगर उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं होता क्योंकि पठन किस उद्देश्य से किया जाता है, यह महत्वपूर्ण बात वे भूल जाते हैं। अगर आप किसी को दिखाने के लिए पठन कर रहे हैं तो क्या फायदा? अतः स्वयं को लक्ष्य की याद दिलाएँ कि आप यह पठन किस उद्देश्य से कर रहे हैं।
2) कार्ययोजना बनाकर अमल करें : पुस्तकों के चार प्रकार होते हैं।
कुछ पुस्तकें सिर्फ देखने लायक होती हैं यानी उनमें सिर्फ आँखों का उपयोग होता है।
कुछ पुस्तकों में ज़ुबान का भी उपयोग होता है यानी आप पढ़ते वक्त शब्दों का उच्चारण करते हैं।
कुछ पुस्तकों में आँखें और जुबान के साथ बुद्धि का भी इस्तेमाल होता है यानी आपने पढ़ा भी और उस पर सोचा भी।
चौथी तरह की पुस्तकें वे हैं, जो पढ़ी भी जाती हैं, देखी भी जाती हैं, उन पर सोचा भी जाता है और अमल करने की योजना भी बनाई जाती है।
आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ते वक्त आपको चौथा तरीका अपनाना है। बीच में रुककर गहराई से मनन कर, उसे अपनी डायरी में लिखें। अगर आप किसी विकार या नकारात्मक वृत्ति से मुक्त होना चाहते हैं तो मनन के साथ कार्ययोजना (ऐक्शन प्लॅन) बनाएँ ताकि आप उस पर अमल कर पाएँ।
3) शुरुआत से पढ़ें और पूर्ण पढ़ें : कुछ लोग बीच में से पुस्तक पढ़ना शुरू करते हैं। ऐसा करके वे पुस्तक को सौ प्रतिशत इंसाफ दे नहीं पाते। इसलिए पहले ‘पुस्तक का लाभ कैसे लें’ यह पन्ना पढ़ें। कुछ लोग प्रस्तावना पढ़ने में टालमटोल करते हैं। अगर आपने बीच में कोई भी पन्ना पढ़ना शुरू किया तो आप कहेंगे, ‘यह पुस्तक शायद मेरे काम की नहीं है क्योंकि बीच में पुस्तक पढ़ने से संभावना है कि आपको विषय की गहराई समझ में न आए। कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं, जिन्हें समझने से पहले आपको यह जानना ज़रूरी होता है कि ‘फलाँ-फलाँ मुद्दे का संदर्भ क्या है, किस बात का आधार लेकर इस पुस्तक की रचना की गई है।’ इसलिए पुस्तक का पठन शुरुआत से, प्रस्तावना सहित और दिए गए क्रम से ही करें।
4) अपनी नई पुस्तक बनाएँ : पठन करते वक्त महत्वपूर्ण लगनेवाली बातों को रेखांकित करें क्योंकि ऐसा करके आप खुद के लिए संक्षिप्त में एक नई पुस्तक बनाते हैं।
5) पुस्तक बार-बार पढ़ें : ध्यान रहे, जो बातें आपने रेखांकित (अंडरलाईन) नहीं की हैं, वे भी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती हैं इसलिए एक ग्रंथ सिर्फ एक ही बार पढ़कर न छोड़ें। उसे बार-बार पढ़ें ताकि हर वक्त आपकी चेतना का स्तर ऊपर उठता जाए। पहली बार पढ़ते वक्त एक जवाब आपको पसंद आएगा मगर दूसरी बार पठन करते वक्त आपको दूसरे जवाब पसंद आएँगे क्योंकि हर बार आपकी चेतना बदल रही है। अगली बार आपको कुछ और जवाब मिलेंगे वरना लोग जो जवाब अंतिम समझ चुके हैं, उसी पर अटके रहते हैं। अतः नई बातें प्रकाश में लाने के लिए सूक्ष्मता के साथ बार-बार पढ़ना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
आध्यात्मिक ग्रंथ अगर सूक्ष्मता से पढ़े जाएँ तो वे जीवन में ‘गुरु’ मिलने तक आपकी पात्रता तैयार कर सकते हैं। ग्रंथों के सहारे आप अंधेरे से रोशनी की तरफ, अज्ञान से ज्ञान की तरफ और बंधनों से मुक्ति की ओर उड़ान भर सकते हैं।
One comment
Heena Vyas
Fantastic both topic very nice clearity
Thank you very much 🙏🙏