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शब्द की ताकत से भला कौन परिचित नहीं है! शब्द-शक्ति के उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है। वरदान, शाप और प्रतिज्ञा के फल की कहानियाँ आप पढ़ते, सुनते या देखते आए हैं। इन सबके पीछे जो शक्ति छिपी है, वह है शब्द शक्ति।
आश्चर्य की बात तो यह है कि हर इंसान शब्द शक्तिकोे अपने साथ लिए घूम रहा है मगर उसके प्रयोग से अनजान है। आपकी ज़ुबान पर विद्यमान इस शक्ति को चलानेवाले आप ही हैं। जैसे, घुड़दौड़ में घोड़े दौड़ते हैं और देखनेवालों को लगता है, ‘फलाँ घोड़ा जीत गया, फलाँ हार गया।’ मगर प्रत्यक्ष रूप में घोड़ा नहीं, घुड़सवार जीतता है। ठीक उसी प्रकार जीत ज़ुबान पर सवार सकारात्मक शब्दों की होती है। अतः जुबान से निकलनेवाले हर शब्द का उचित चयन होना अति आवश्यक है।
शब्दों का उद्गम है हृदयस्थान इसीलिए ये शक्तिशाली होते हैं। लेकिन ज़ुबान पर आने से पहले उन्हें दिमाग के मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। दिमाग में तोलूमन रहता है। तोलूमन यानी तुलना-तोलना करनेवाला, हिसाब-किताब रखनेवाला मन। यह तोलूमन हृदयस्थान से आनेवाले शब्दों को बढ़ाकर या घटाकर ज़ुबान पर लाता है। इस कारण दिमाग का मार्ग, कुमार्ग हो जाता है। यह शब्दों में ऊँच-नीच ले आता है। फलतः जुबान पर आनेवाले शब्द नकारात्मक भाव पैदा करते हैं।
हमारी मनोभूमि डर के लिए बहुत ही उपजाऊ (फरटाइल) है। इसमें डर की खेती बड़ी सहजता से होती है। जैसे, कोई कुछ अनिष्ट बोलकर जाए तो आप डरकर सहम जाते हैं। सोचते हैं, ‘वाकई उसका कहा सच न हो जाए।’ कई बार तो इन शब्दों का असर जीवन के अंत तक जारी रहता है।
जैसे, किसी इंसान को एलर्जी की वजह से चेहरे पर कोई फुंसी आ जाए और कोई उसे कह दे कि ‘अरे! यह तो कैन्सर का शुरुआती लक्षण है’ तो वह बेचारा इस बारे में सोच-सोचकर, न चाहते हुए भी अपने जीवन में कैन्सर को आमंत्रित कर लेता है। हालाँकि सामनेवाला तो बोलकर चला गया मगर उसे इस बात का ज़रा भी अंदेशा नहीं होता कि उसके द्वारा बोले गए शब्दों का सामनेवाले पर कितना भयानक असर हुआ होगा। यहाँ तक कि जो नहीं था, उसे भी उसने साकार कर लिया।
आज लोग वैश्विक महामारी के कारण डरे हुए हैं। ऐसे में यदि किसी को साधारण सर्दी-खाँसी भी हो जाए तो वह शारीरिक पीड़ा से कम और लोगों के तानों से ज़्यादा बेहाल हो जाता है।
सकारात्मक शब्दों का असर
जिस तरह किसी के कड़वे शब्द नकारात्मक परिणाम लाते हैं, उसी तरह किसी के सकारात्मक शब्द जीवन को सहज, सुंदर एवं शक्तिशाली बनाते हैं।
जिजामाता ने बाल शिवाजी की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने शब्दों का चयन भी बड़े ध्यान से किया था। अनजाने में भी उन्होंने बाल शिवाजी के अंदर, ‘तुम नहीं कर सकते, तुम कमज़ोर हो, तुम्हारे लिए संभव नहीं है’ जैसे शब्दों को कभी नहीं पिरोया। परिणामस्वरूप महाराष्ट्र को छत्रपति शिवाजी महाराज मिले।
शब्द ‘तोलमोल के बोल’ हैं इसलिए तोल-मोलकर (सोच-समझकर) ही मुँह खोलना चाहिए। जिस तरह पैसे खर्च करते वक्त आप भाव-तोल करते हैं, उसी तरह शब्दों के चयन में भी सोच-विचार किया जाना चाहिए।
‘मेरा एक शब्द भी बेकार न जाए… मेरे शब्दों में सद्भावना और विश्वास हो… मैं जो शब्द बोल रहा हूँ, ये बीज हैं, जो सामनेवाले को सफल फसल दें…’, ऐसी दृढ़ता, ऐसी सद्भावना रखकर जब आप शब्दों का इस्तेमाल करना सीखेंगे तो औरों के जीवन में खुशियाँ, आनंद और सकारात्मक विचार बाँटने के लिए निमित्त बनेंगे। कुदरत का नियम सभी जानते ही हैं, ‘जिस चीज़ के लिए आप निमित्त बनते हैं, वह चीज़ कई गुना बढ़कर आपके पास लौटती है’ तो ज़ाहिर सी बात है, आप भी आनंदित जीवन के धनी बन जाएँगे।
यह हुआ आपके द्वारा बोले गए शब्दों का असर मगर आपको इस बात के लिए भी सजग रहना होगा कि औरों द्वारा बोले गए गलत शब्दों और टिप्पणियों को कैसे लिया जाए। जिस तरह किसी को दिया गया दान, जब तक वह स्वीकारता नहीं तब तक उसे प्राप्त नहीं होता, उसी तरह किसी के द्वारा कहे गए गलत शब्दों को जब तक आप नहीं स्वीकारेंगे तब तक उनका आप पर कोई असर नहीं होगा। अतः अपने बारे में कोई अपशब्द या टीका-टिप्पणी सुनकर यह न सोचें कि ‘लोग मुझे ऐसा क्यों समझते हैं?’ वरना ऐसा सोचकर आप उनके शब्दों को शक्ति दें रहे हैं। जब तक आप उन्हें शक्ति नहीं देते, वे शक्तिहीन हैं।
अनजाने में भी शब्द शक्ति का गलत उपयोग न हो, इस बात का ध्यान रखें। अज्ञान और बेहोशी में इंसान जानता ही नहीं कि यदि वह किसी से झूठ बोलता है तो वह बढ़कर वापस उसके पास ही आएगा। कपट करनेवाले लोगों के शब्द जब लौटते हैं तो उनकी हालत कैसी होती होगी, यह आप कैकेयी-मंथरा, शकुनी-दुर्योधन जैसे चरित्रों से भली-भाँति समझ सकते हैं।
इसलिए हर रात सोने से पूर्व अपने शब्दों का अकाउंट रखें। दिनभर कितने अच्छे, सकारात्मक, प्रेरणात्मक शब्दों का प्रयोग हुआ या कितने कड़वे शब्दों का उच्चारण हुआ, इसका हिसाब रखें। शब्दों को पैसे की भाँति खर्च करें। जैसे आप इस बात का खयाल रखते हैं कि पैसे खर्च करने के बाद उसके बदले योग्य वस्तु मिलनी चाहिए, वैसे ही इस बात का भी ध्यान रखें कि शब्दों को खचर्र् करने के बाद उसके बदले सामनेवाले की चेतना बढ़नी चाहिए। इससे बहुत जल्द आप शब्दों के प्रति सजग होकर, उनकी शक्ति महसूस करने लगेंगे।
परनिंदा तथा स्वाद में न उलझें
परनिंदा, चुगली से हमेशा खुद को दूर रखें। इंसान जब परनिंदा करता है तब सामनेवाले को छोटा और खुद को बड़ा दिखाना उसका उद्देश्य होता है। जो सचमुच बड़े होते हैं, वे परनिंदा में न उलझते हुए सभी को क्षमा करते हुए, उनकी खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं।
दूसरों के नकारात्मक बोल सुनकर या किसी घटना से वे विचलित होते हैं तो मन ही मन प्रार्थना करते हैं, ‘मेरे शब्दों का उपयोग केवल औरों की भलाई और दुआ के लिए ही होनेवाला है… मैं किसी के भी गलत शब्दों का असर खुद पर नहीं होने दूँगा। मेरे जीवन में केवल वे ही लोग आएँ जो प्रसाद के साथ अमृत भी लाएँ।’
‘शब्द शक्ति’ को गहराई से समझते हुए आपको एक और महत्वपूर्ण बात का खयाल रखना है, ज़ुबान शब्दों में मीठी हो और स्वाद में उदासीन। इसका मतलब है खाने में ‘यह स्वाद मिले, वह स्वाद मिले’, ऐसी इच्छा न रखते हुए, उसमें उदासीन रहें। ‘जैसा मिले, वैसा अच्छा’ के भाव में रहें। मगर जब आप शब्द बोल रहे हैं तो उसमें उत्साह हो, मिठास हो। शब्दों के लिए ज़ुबान मीठी बने और स्वाद की तरफ जाए तो उदासीन बने।
इतना ही नहीं, स्वयं से संवाद करते हुए भी आपको उचित शब्दों का चयन करना है ताकि आपका आंतरिक स्वास्थ्य बना रहे।
जुबान पर पड़े शब्द बाहर निकालो
जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो आपकी बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर कहते हैं, ‘ज़ुबान बाहर निकालो।’ उसी तरह जब आप गुरु के पास जाते हैं तो वे कहते हैं, ‘जुबान पर जो शब्द हैं, उन्हें बाहर निकालो यानी दिनभर जो शब्द बोलते हो, वे बताओ।’ अर्थात शरीर का डॉक्टर ज़ुबान देखता है, जबकि मन का डॉक्टर (गुरु) ज़ुबान पर पड़े शब्द देखता है।
ऐसे में यदि कोई अपने गुरु से कुछ छिपाकर, घटाकर या बढ़ाकर बताएगा तो यह उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होगा। जब इंसान, गुरु को ईमानदारी से और कपटमुक्त होकर अपने दुःख का कारण बताता है तब गुरु उसे समझाते हैं, ‘तुम्हारे इस-इस शब्द ने ही तुम पर अत्याचार किया है और तुम ख्वाहमख्वाह दूसरों पर दोष लगाते फिरते हो। लोग तुम्हारे बारे में बुरा सोचते हैं या बुरा कहते हैं, ऐसा सोचने से पहले तुम खुद के लिए क्या कह रहे हो, यह देखो।’ ऐसी समझ मिलने के बाद इंसान का जीवन की ओर देखने का नज़रिया ही बदल जाता है।
ध्यान रहे, शब्द आकार से निराकार, सगुण से निर्गुण की ओर ले जाने का माध्यम हैं। पुराने जमाने में लोग ‘राम-राम’ का जाप करते थे ताकि वे तेजस्थान (हृदयस्थान) पर स्थापित हो सकें। आज के जमाने में ‘प्रेम, आनंद, मौन, रचनात्मकता, साहस, करुणा, दया’ जैसे शब्दों द्वारा आपको ईश्वरीय गुणों से अवगत करवाया जा रहा है। ‘प्रेम, आनंद, मौन’ जैसे शब्दों को जब बार-बार आपकी ज़ुबान दोहराती है तब उसे उनकी आदत पड़ जाती है और धीरे-धीरे ये शब्द आपके जीवन में उतरने लगते हैं।
‘प्रेम, आनंद, मौन’ इन शब्दों से आपको ईश्वर, अल्लाह, प्रभु, वाहेगुरु (सेल्फ) की ही याद आए। सेल्फ के गुणों की अभिव्यक्ति याद आए। इन शब्दों के साथ आपकी यात्रा आकार से निराकार, शब्द से नि:शब्द, अंधकार से प्रकाश की ओर हो।
One comment
Poonam
Excellent