अधिकतर लोगों की यही आशा होती है कि ‘मेरा परिवार खुशहाल, हँसता-खेलता रहे। मेरी खुशियों में मेरा परिवार शरीक हो ही लेकिन जब मैं थका-हारा, दुःखी, परेशान होकर घर लौटूँ तब भी मुझे वहाँ वही प्यार, विश्वास और सबका साथ मिले। सबके होते हुए मुझे कभी भी अकेलापन महसूस न हो। मेरा परिवार मेरा सबसे बड़ा सहारा हो।’ लेकिन देखते ही देखते इस सपने को किसी की नज़र लग जाती है। अपने पराए लगने लगते हैं। उनका हँसना, बोलना यहाँ तक कि उनका अस्तित्त्व भी इंसान को परेशान करने लगता है। जिससे उसके जीवन में एक मायूसी छा जाती है। रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती जाती है। नतीजा, कुछ लोग व्यसनों को गले लगाते हैं। कुछ घुट-घुटकर ज़िंदगी काँटते रहते हैं। लेकिन आज आप इस लेख के माध्यम से अपने परिवार को, रिश्ते-नातों को दुबारा ऐसी नज़र से देखनेवाले हैं, जो आपको रिश्तों का सही अर्थ बताएगी, रिश्तों में होनेवाली गलतियों का एहसास दिलाएगी। साथ ही उनमें क्या होना चाहिए, यह भी बताएगी। इस ‘समझ’ की नज़र से आप फिर से अपने परिवार तथा रिश्तों में गहरे प्यार का अनुभव कर सकेंगे।
फिर देर किस बात की है आइए, आपके इस सुंदर सपने को लगी हुई अज्ञान, बेहोशी और अहंकार की नज़र दूर करते हुए रिश्तों को सँवारने के उपाय जान लेते हैं।
* सबसे अहम बात – संवाद:
मुश्किल से मुश्किल समस्या भी आपसी वार्तालाप से हल हो सकती है। अगर आपसी रिश्तों में कुछ वाद है तब उसके लिए एक संवाद-मंच का निर्माण करें। जहाँ पर आप अपने विचारों को स्पष्ट रूप से प्रकट कर सकें, साथ ही औरों के विचार भी सुन सकें। आपसी संवाद का बहुत बड़ा लाभ यह होता है कि हमें हमारे और बाकी लोगों के विचारों के बारे में स्पष्टता मिलती है। रिश्तों के प्रति सबका दृष्टिकोण मालूम होता है। परिवार में यदि कुछ गलतफहमी हो तो वह भी संवाद के कारण दूर होती है। सब एक-दूसरे को समझ सकते हैं और संवाद से रिश्ते और गहरे होते जाते हैं।
* सब दुःखों का कारण – मान्यकथा:
वार्तालाप के दौरान आपको पता चलता है कि ‘मैं क्या-क्या सोच रहा था और हकीकत क्या है।’ सामनेवाले को कुछ कहते, करते देखकर आपके अंदर जो विचार चलते हैं, उन विचारों को आप पक्का करते हों। जैसे, ‘वह मुझे अकड़ू समझता है’ ऐसा आप कहते हैं। जिसका वास्तविक अर्थ होता है, ‘मुझे ऐसा लग रहा है कि उसे ऐसा लग रहा है- मैं अकड़ू हूँ।’ इसका अर्थ ही आपको पक्का मालूम नहीं है, आप सिर्फ ऐसा मानते हैं। इस मान लेनेवाली, अंदाज़ करनेवाली बात को ही मान्यकथा कहते हैं। ऐसी अनगिनत मान्यकथाएँ इंसान एक-दूसरे के बारे में बनाकर, दुःख को बढ़ावा देता है।
जैसे- बच्चा बहुत शरारती है, उसके बहुत सारी शिकायतें रहती हैं। फिर वह जैसे-जैसे बढ़ता जाता है तो उसे लगता है कि ‘मेरे कर्मों के कारण ही मेरे माता-पिता दुःखी हो रहे हैं’ और फिर वह उस विचार के बोझ में गुमसुम सा जीता रहता है। उधर माता-पिता को लगता है कि बच्चे की अच्छी परवरिश करने में, उसे सारी सुविधाएँ देने में हम कहीं तो कम पड़ते हैं और इसलिए वह चुप-चुप सा रहता है। बेटा और उसके माता-पिता अपनी-अपनी कथा में जी रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो हर एक को अपनी ही कथा से दुःख होता है। इस सच्चाई को आप जितनी जल्दी ग्रहण करेंगे, उस पर मनन करेंगे तो यह बात स्पष्ट होगी कि ‘दुनिया में जब तक कोई कथा नहीं बनाता तब तक उसे कोई दुःखी नहीं बना सकता। जब कथा बंद होगी, मान्यकथा के बारे में सारी बातें स्पष्ट होंगी तब दुःख भी अपने आप चला जाएगा।’
* हर एक को अपनी सीख मिलने में सहयोग करें”
हर इंसान को जो सबक मिलना है, उसके मुताबिक उसके जीवन में घटनाएँ होती हैं। उस वक्त की उसकी वह ज़रूरत होती है। जैसे- किसी की बीमारी लंबे समय तक चलती रहती है। तब वह उसके लिए कर्मसंकेत है कि उसे अपनी लाईफ स्टाईल बदलकर, खान-पान, व्यायाम पर ध्यान देना होगा। यही उसका सबक है।
मानो कभी किसी को बार-बार आर्थिक समस्या से गुज़रना पड़ता है। तब ऐसा क्यों होता है, पैसों के बारे में उसका नज़रिया क्या है, वह आर्थिक बचत करता है या हाथ आए सारे पैसे खर्च करता है, इस पर उसे सोचना होगा। पैसों से संबंधित बातों को अपने जीवन में देखकर, उससे सही सबक सीखना होगा।
लोगों को उनके दुःख, उदासी या व्याकुल अवस्था से बाहर निकालने के लिए भी आप अपनी भूमिका बखूबी निभा सकते हैं। जैसे- उनके साथ बातचीत करेें, उन्हें उस घटना का मकसद समझाएँ। लेकिन आपका समझाना उन्हें पसंद न आए तब थोड़ी देर रुकें। फिर से अलग ढंग से समझाने का प्रयास करें। आपकी यह सच्चाई, आपका प्रेम उन्हें सिखाएगा कि ‘नकारात्मक बातों के पीछे से कुछ अच्छा आ रहा है, यह समझ रखते हुए उस अदृश्य सकारात्मता को देखना सीखें।’ यह समझ मिलने के साथ आपके आपसी रिश्ते भी मज़बूत बनते जाएँगे और अपने-अपने सबक अनुसार सीखते हुए सभी का विकास भी होता जाएगा।
* सही उपस्थिति – मनमुटाव मिटाने के लिए आवश्यक”
कई बार हमारे परिवार का या जिन्हें हमारे प्रति बहुत प्यार है, ऐसा बाहर का कोई सदस्य आपसी मनमुटाव मिटाने के लिए आगे बढ़ता है। रिश्ता टूटने से, बिखरने से उसे बचाना यही उसका उद्देेश्य होता है। लेकिन यदि झगड़ा देखने से उसकी चेतना गिरती है और फिर डर से रिश्तों को देखा जाता है कि ‘यह अब सुलझनेवाला नहीं है’ तब उसकी धुंधली दृष्टि ही उसे आगे बढ़ने से रोक सकती है। ऐसे में खुशी से उपस्थित रहने की आवश्यकता है। क्योंकि आपकी योग्य उपस्थिति में ही झगड़ा करनेवालों का अहंकार पिघलकर मनमुटाव दूर होने की संभावना होती है।
* सच्चा प्रेम – सबको अनुमति देता है:
क्या आप सचमुच अपने परिवार से प्यार करते हों? यदि ‘हाँ’ तो एक महत्वपूर्ण बात याद रखें- ‘रिश्तों को, लोगों को काबू में करने से आप भी दुःखी हो जाएँगे। लेकिन जब अनुमति देंगे तब आप खुश हो जाएँगे।’ कोई भी रिश्ता या लोग कंट्रोल करने से अपनाएँ नहीं जाते बल्कि उनकी इच्छा के अनुसार आप उन्हें जीने की अनुमति देते हैं तब आपका यह विश्वास ही उन्हें रिश्तों का दायरा निभाना सिखाता है।
* समस्या आई – समाधान लेकर:
हर समस्या अपने साथ एक समाधान लेकर आती है। लोग जब अपने आपसे सही सवाल पूछते हैं तब उसका हल सामने दिखाई देता है। आम तौर पर उपाय ढूँढ़ने के बजाए ‘समस्या है’ इस बात में लोग ज़्यादा उलझते हैं। इसलिए रिश्तों में किसी भी प्रकार की समस्या हो तो उसका समाधान उसमें ही छिपा है, इस विश्वास से सही सवाल पूछकर उसका जवाब प्राप्त करें।
* आप ही प्रेम हो – बाँटते रहो:
अकसर प्यार में लोग पाना चाहते हैं। दूसरों से मिले इसलिए वे देते हैं। लेकिन इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि आप ही (प्रत्यक्ष में ‘आप जो हो वह’) प्रेम हों। आपमें इतना प्रेम भरा हुआ है कि कितना भी बाँटेेंगे तब भी यह झरना बहता ही रहेगा। इस समझ को जीवन में जैसे-जैसे उतारते जाएँगे, रिश्तों के प्रति होनेवाली आपकी शिकायतें कम होती जाएँगी। औरों की तरह आपके जीवन में भी लोग आते-जाते रहेंगे। कुछ लोगों को आप प्रेम दे रहे होंगे और बाद में वे आपके साथ नहीं होंगे तब भी आपको दुःख नहीं होगा। क्योंकि आपने लोगों को आने-जाने की अनुमति दी है। आपकी समझ बढ़ रही है कि ‘आप ही प्रेम हों’। यहाँ पर लोगों को प्यार देते वक्त आपने कुछ अलग प्रयास किया, ऐसी बात नहीं है, यह आपको स्पष्ट है बल्कि आप प्रेम दे पाएँ, आपको मौका मिला इसलिए आप ईश्वर को धन्यवाद ही देंगे।
इन सारी बातों को अपने जीवन में उतारने का आप पूरा प्रयास करें। आपकी सच्ची लगन, सही सोच और समझ ही आपके घर को स्वर्ग समान सुंदर बनाएगी।
~ सरश्री की शिक्षाओं पर आधारित
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