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श्रम दिवस हमारे किए गए कर्म के पहलुओं को रेखांकित करता है| कर्म के प्रकार से लेकर उसकी प्रकृति तक को अनेक ढंग से हमारे बीच पेश भी करता है| चाहे हम सीईओ हों या एक कारपेंटर, हम एक तरह से कर्म के किसी हिस्से को निभा रहे होते हैं| सीईओ की बात करें तो इसे सेंट्रल आई ओपेनर माना जा सकता है| यहॉं इस शब्द का आशय इसी तरह से समझने की ज़रूरत है|
सीईओ किसी भी संस्थान, उसमें कार्यरत कर्मचारियों के बीच ऐसी ऊर्जा का संचार करता है, जिससे तरक्की के नए रास्ते खुलते हैं| हममें से सभी किसी न किसी रूप में कर्म से जुड़े हुए हैं| फिर चाहे वह घर में हमारी मॉं हो या ऑफिस में मैनेजर| बात है, कर्म में आप किस तरह खुद को समर्पित किए हुए हैं| यदि आध्यात्म की दृष्टि से देखें तो इस अवधारणा को कई तरह से समझा जा सकता है|
पहली अवस्था- जीवनयापन के लिए किया जानेवाला कर्म| इसका आशय है कि इंसान सिर्फ बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर्म किए जा रहा है| इस तरह के लोगों को हम उस श्रेणी में भी रख सकते हैं जो सिर्फ खुद, खुद के विकास पर ही ऊर्जा खपाते रहते हैं|
अगली अवस्था है- प्रेरक कर्म| यहॉं कोई इंसान न सिर्फ जीवनयापन बल्कि नौकरी-कार्य में सम्मान, ज़मीर आदि को साथ लेकर चलता है| आइए, इस बात को एक कहानी से समझते हैं|
एक बार ३ मज़दूर पत्थर तोड़ने के काम में लगे थे| वे लोग हथौड़ा लेकर कड़ी धूप में एकसाथ मेहनत से जुटे रहते थे| उनमें से सभी से पूछा गया कि वे लोग क्या कर रहे हैं तो सभी ने बारी-बारी अपनी राय रखी| पहले ने कहा कि वह यह सब अपनी दुःखी ज़िंदगी के लिए कर रहा है| दूसरे ने कहा कि वह यह काम मालिक के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कर रहा है| जब तीसरे से यही सवाल दोहराया गया तो उसने कहा कि यहॉं मंदिर बन रहा है और वह उसमें अपना हाथ बटा रहा है| तीसरे श्रमिक के जवाब में गर्व की अनुभूति थी| ऐसे ही कर्म को प्रेरक कर्म कहा गया है| इस तरह से किए गए कर्म से आप दूसरों को प्रेरणा देते हैं| कई लोग इस तरह से कर्म को सही इस्तेमाल नहीं कर पाते, वे कर्म के सही महत्त्व को नहीं समझ पाते| इस बात को एक और उदाहरण से समझा जा सकता है|
४ मित्रों को एक गॉंव तक पहुँचने के लिए एक ही नाव का इस्तेमाल करना पड़ा| वे सभी नाव में बैठ गए और एक-एक पतवार हाथ में थामकर रातभर आगे बढ़ते रहे| ऐसा चलता रहा और सुबह हुई तो पाया कि उनकी नाव एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी थी| दरअसल हुआ यह कि उन सभी ने कर्म तो किया पर नाव जिस शाख से बंधी थी, उस डोर को खोला ही नहीं|
कर्म की एक और अवस्था ‘अव्यक्तिगत अभिव्यक्ति’ भी होती है| यह ऐसी अवस्था है, जिसमें कर्म करते वक्त सिर्फ अपने ही हितों को ध्यान में नहीं रखा जाता| चौथी और अंतिम कर्म अवस्था है, आज़ाद कर्म यानी कर्मबंधन से मुक्त करनेवाला कर्म| जब आप अपने बारे में पूरा सच जान जाते हैं, तब इस अवस्था से भी आपका मेल-जोल स्वत: हो जाता है| यदि संक्षिप्त संदर्भ में समझें तो इसका मतलब है कि अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी जीना|
इस तरह अपने साथ-साथ किया गया कर्म जब दूसरों को हितों से जुड़ने लगता है| फिर वह सिर्फ एक काम नहीं रह जाता| इसी तरह यदि आश्रम शब्द के भाव को समझें तो श्रम का मतलब काम से है वहीं श्रम की अनुपस्थिति में बनता है आश्रम| इसलिए इस श्रम दिवस, आश्रम की ओर कदम बढ़ाइए| इसका यह मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि आप अपना साज़-सामान उठाकर आश्रम में ही बस जाएँ| यदि आप कर्म की इस अमूल्य परिभाषा को समझ चुके हैं तो दूसरों तक इस संदेश का संचार करें| श्रम का यही एहसास दूसरों को देने में अपना बहुमूल्य योगदान दें|
…सरश्री
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