हम सब पृथ्वी पर अपने-अपने विशेष उद्देश्य लेकर आये हैं| कुदरत हमें अपना लक्ष्य पाने के लिए सदा मार्गदर्शन दे रही है| यदि हमारा चरित्र बलवान होगा तो हम बिना विचलित हुए कुदरत के बताये रास्ते पर सीधे चल पायेंगे वरना हम हर छोटी घटना में लालच, सुस्ती और अज्ञान की वजह से डगमगाकर गिर जायेंगे|
यदि चरित्र मजबूत हो तो जब भी कोई सकारात्मक चीज लक्ष्य अनुसार हमारे पास आयेगी तो हम उसे सही तरीके से और खुले मन से ले पायेंगे| अगर आपने कुदरत से यह प्रार्थना की है कि ‘जो मेरा है, वह मुझे सही दिशा और सही तरीके से मिले’ तो कुदरत की तरफ से आपको वैसा ही प्रतिसाद मिलेगा| आपकी यह प्रार्थना ही आपकी नींव की मजबूती को दर्शाती है| आइये जानें कि अपने चरित्र को कैसे सबल बनाया जा सकता है ः
न किसी से दबें न किसी को दबायें ः
चरित्रवान इंसान न दबता है, न किसी को अपने अधीन करता है| अविश्वसनीय होने के कारण लोग दूसरों से दबते हैं या दूसरों का शोषण करते हैं| जो लोग दबते हैं, वे तो अप्रशिक्षित हैं ही मगर जो दूसरों को गुलाम बनाना चाहते हैं, वे भी अप्रशिक्षित हैं क्योंकि जो गुलाम बनाना चाहते हैं, वे नहीं जानते कि किसी को बिना गुलाम बनाये भी उनके काम हो सकते हैं|
दूसरों को गुलाम बनाने की चाहत का एक मुख्य कारण यह है कि हर एक अपने काम का नतीजा चाहता है | इस नतीजे (आउटपुट) पर ही उनकी योग्यता का स्तर आँका जाता है| अपने कार्य का परिणाम दिखाने के बाद ही लोगों को पदोन्नति (प्रमोशन) मिलती है|
लोगों को अपना लक्ष्य प्राप्त करने का यही एक रास्ता दिखायी देता है कि यदि वे सामनेवाले पर दबाव डालेंगे तभी उनके काम समय पर संपन्न होंगे वरना नहीं| जो लोग दबते हैं, वे भी अप्रशिक्षित हैं| वे खुलकर किसी को बता नहीं पाते कि किन कार्यों को करने में वे सक्षम हैं| वे सामनेवाले को स्पष्ट रूप से ऐसा बोल नहीं पाते कि ‘आप सिर्फ हमें जिम्मेदारी सौंपें, हम काम करके दिखाते हैं|’ जब वे अपने दिल की बात कह पायेंगे तब वे लोगों के विश्वसनीय तथा आत्मनिर्भर बन पायेंगे| जो इंसान आज़ाद होना चाहता है उसे यह सोचना चाहिए कि ‘मुझे आत्मनिर्भर बनना है, मैं जो कार्य कर रहा हूँ, अपने बलबूते पर कर पाऊँ, मुझे अपने काम में इतनी कुशलता हासिल करनी है कि मेरा काम देखकर लोगों को लगे कि अब इन पर दबाव डालने की जरूरत नहीं है|’
लोग कई बार बिना प्रशिक्षण के ही ऊँचे ओहदे पर पहुँच जाते हैं| ऊँचे ओहदे की वजह से वे लोगों पर दबाव डालकर अपना काम करवाना चाहते हैं क्योंकि वे दिखाना चाहते हैं कि ‘मैं कितना कार्यक्षम हूँ|’ अपनी कार्यक्षमता को प्रदर्शित करने का यही एक मार्ग उनके पास होता है मगर वे नहीं जानते कि इस तरह लोगों पर दबाव डालकर काम करवाने सेे एक समय ऐसा आयेगा कि उनका पद चला जायेगा या वे वहीं रह जायेंगे जहॉं थे| उनकी कंपनी जहॉं की तहॉं रुकी रहेगी या डूब जायेगी|
अपने आपसे पूछें, ‘मुझ में क्या कमी है, जो लोग मुझे दबा रहे हैं या मैं दूसरों पर दबाव डाल रहा हूँ?’ अपने अंदर की कमियों को पहचानकर उन्हें दूर करने में लग जायें| शिकायत करते न बैठें| कमजोरियों पर काम करना श्ाुरू करें| शायद इसमें साल भर लग जाय तो भी कोई हर्ज नहीं| यदि आप आज से काम जारी करेंगे तो एक साल में आपका उद्देश्य पूरा हो जायेगा|
डर या लालच की वजह से लोग गुलाम बनते हैं या बनाते हैं| डर लगने के बावजूद भी आपको काम तो करना ही है| डर को अपना काम करने दें| डर आपके शरीर द्वारा आपको दिया गया फीडबैक है, जो यह बताता है कि ‘तुम कोई नया काम करने जा रहे हो, जो पहले कभी तुमने किया नहीं है|’ यह कितनी अच्छी बात है कि शरीर अपने अंदर सारे रेकॉर्ड रखता है कि वह कौन सा काम पहली बार कर रहा है, कौन सा काम नया कर रहा है तथा कौन सा काम पुराना है? शरीर द्वारा दिये गये फीडबैक को धन्यवाद दें और खुद से कहें, ‘इसके बावजूद भी मुझे अपना कार्य करना ही है|’
नये प्रयोग के साथ अब आपको अपने मस्तिष्क में नयी फाइल (जानकारी) डालनी है| फिर अगली बार शरीर कहेगा, ‘यह काम तुम पहले भी कर चुके हो, यह कोई नयी बात नहीं है, यह तो तुम कर सकते हो, इस स्थिति को तुम सँभाल सकते हो|’ इस तरह आपका आत्मविश्वास बढ़ता जायेगा|
किसी भी मुकाम पर, कितने भी बड़े शिखर पर आप पहुँच जायें, फिर भी सीखना बंद न करें क्योंकि यही नयी संभावनाएँ खोलेगा| जो निर्माण हो चुका है, पहले उसे समझने पर काम करना है, फिर जिसका निर्माण अभी तक नहीं हुआ है, उसके लिए शरीर को तैयार करना है| चरित्र को मजबूत करने का यह लाभकारी उपाय है|
संतुलित रहें
तबीयत और परिस्थिति के हिसाब से आपको हमेशा संतुलित रहना चाहिए| शरीर को जो आदत आप डालेंगे, उसे वह आदत पड़ जाती है| उसे सुस्ती की आदत डालेंगे तो शरीर सोचेगा कि ‘कैसे मैं काम से बचूँ, कौन सा बहाना बनाऊँ|’ शरीर को सुस्ती की आदत डालने से आप अभिव्यक्ति में कम पड़ जायेंगे| इसलिए यह सोचें कि कौन सी आदत आगे मेरे काम आयेगी, काम न करने की या काम करने की? अपनी तबीयत का खयाल अवश्य रखें| यह एक सूक्ष्म बात (फाइन लाईन) है कि कब तक काम किया जाय और कब आराम किया जाय| दोनों अतियों में जाने से बचें| थकने से पहले आराम करें, सुस्ती आने से पहले काम शुरू करें|
बहुत आराम की आदत पड़ने लगी तो धीरे-धीरे चींटी की रफ्तार से यह आदत बढ़ती ही जाती है| एक साल के बाद आप पायेंगे कि आपके शरीर में तमोगुण पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गयाहै| पहले आप जितना काम कर पाते थे, अब उससे आधा काम भी नहीं कर पा रहे हैं| यह आदत आगे जाकर आपको तकलीफ देगी| फिलहाल आप अपने शरीर को इस तरह से प्रशिक्षित करें कि उसे ज्यादा से ज्यादा काम करना अच्छा लगे| अगर आप काम को बोझ समझेंगे तो वह काम आपको थकावट देगा| फिर काम से बचने के लिए कपट शुरू होगा| कपट अपने चरित्र की नींव को हिला देगा| इसलिए काम को बोझ नहीं, अभिव्यक्ति समझकर करें|
स्वप्रशिक्षण लें, ना कहना सीखें
स्वप्रशिक्षण पाने के लिए सदा तैयार रहें| अपने आपको प्रशिक्षण देने का कोई भी मौका न गँवायें| कान को यह प्रशिक्षण दें कि वह कौन सी बात सुने और कौन सी बात अनसुनी करे| आँख को प्रशिक्षण दें कि वह कौन सी पुस्तकें पढ़े, कौन सा साहित्य न पढ़े| जो पुस्तकें हमारी नींव को हिलाती हैं, उनकी तरफ रुख न करें| कंप्यूटर या टी.वी पर ऐसे कार्यक्रम न देखें, जो हमारी नींव हिलाते हैं|
यदि आप गलत लोगों को ‘ना’ नहीं बोल सकते हैं, उन्हें यह बता नहीं सकते हैं कि ‘मैं आपके साथ नहीं आ सकता, मैं यह नहीं कर सकता, मुझे क्षमा करें’ तो आइने के सामने खड़े होकर ‘ना’ कहने का अभ्यास करें| आइने के सामने खड़े होकर वे पंक्तियॉं बार-बार दोहरायें, जो आप लोगों को कहना चाहते हैं लेकिन हिचकिचाहट की वजह से कह नहीं पाते| आप कपटमुक्त रहने और अपनी बात पर अटल रहने का अभ्यास कर अपने चरित्र की नींव मजबूत करें|
उपरोक्त बातों से आप जरूर यह समझ गये होंगे कि चरित्र की नींव को कैसे मजबूत रखा जा सकता है| जिस इंसान का चरित्र बलवान होता है, उसे अपना लक्ष्य पूरा करने में कुदरत भी उसकी पूरी सहायता करती है| इसलिए सदा अपने चरित्र को बलवान रखकर, जीवन में ऊँचाइयों को हासिल करें|
One comment
Suyog Puranik
Dhanywaad Sirshree