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खोजी: अध्यात्म की परिभाषा क्या है और जीवन में इसकी कितनी ज़रूरत है?
सरश्री: अध्यात्म का अर्थ है खुद को जानना और अपने सच्चे स्वभाव की, सच्ची प्रकृति की पहचान करना| कई इंसान सोचते हैं कि अध्यात्म की इस हद तक तो कोई ज़रूरत ही नहीं है| आइए, इसे एक उदाहरण से समझें|
कल्पना कीजिए कि एक जंगल में कुछ लोग रहते हैं| वे अपने सभी काम आँखों पर कपड़े की पट्टी बॉंधकर करते हैं| वे झोपड़ियॉं बनाते हैं, साफ-सफाई करते हैं, जानवरों को पालते हैं और ज़िंदगी में रोज़मर्रा के सभी काम करते हैं| बात बस इतनी सी है कि वे यह सभी काम अपनी आँखों पर कपड़े की पट्टी बॉंधकर करते हैं| आँखों पर पट्टी बँधी होने की वजह से वे काम करते हुए लड़खड़ाते हैं, चीज़ों से टकराते हैं और गिर भी पड़ते हैं| यह सब उनके लिए काफी मुश्किलोंभरा तो है लेकिन उनके जीने का तरीका भी यही है| वे हमेशा से ऐसे ही जी रहे हैं|
एक बार उनमें से कोई ऐसी जगह जाता है जहॉं उसकी आँखों की पट्टी खोल दी जाती है| वह देखने लगता है और वह चमत्कृत हो जाता है| वह इंसान अब लौटकर आता है और सबको बताता है कि उन्हें उस जगह जाना चाहिए जहॉं आँखों पर बँधी पटि्टयॉं खोल दी जाती हैं| उन सभी को आँखों पर बँधी पटि्टयों से मुक्ति पा लेनी चाहिए और ऐसा करना उनके लिए बेहद फायदेमंद रहेगा| अगर उनमें से कोई यह कहे, मैं तो ऐसा महसूस नहीं करता कि ऐसा करने की वाकई कोई ज़रूरत है| साथ ही, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है …तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? आप क्या कहेंगे? आप यही कहेंगे, तुम मूर्ख हो| अगर तुम आँखों पर बँधी कपड़े की पट्टी खोल दो तो तुम्हारे काम तेज़ी से और बेहतर तरीके से पूरे हो सकेंगे|
उन्हीं लोगों को अध्यात्म की कोई ज़रूरत महसूस नहीं होगी जो अपनी ज़िंदगी झूठी मान्यताओं, गलत विश्वासों की पट्टी बॉंधकर बिता रहे हैं| अगर आप ऐसे लोगों के साथ अपना पूरा जीवन बिताने को तैयार हैं तो आपको भी अध्यात्म की आवश्यकता नहीं है| लेकिन, अगर आप अंधकार से बाहर आना चाहते हैं तो अध्यात्म आपके लिए अत्यंत आवश्यक है| जब आप अध्यात्म का वास्तविक अर्थ समझ जाते हैं, तब यह प्रश्न नहीं उठेगा| ऐसा प्रश्न इसीलिए उठता है क्योंकि आपको वास्तव में अध्यात्म क्या है, यह पता नहीं होता| अगर आप माथे पर तिलक लगाने, भगवा रंग के कपड़े पहनने, फूलमालाओं और रुद्राक्ष की जपमालाओं को अध्यात्म मानकर बैठे हैं तो आप भ्रम में जीवन बिता रहे हैं| सच्चा अध्यात्म तो अपने स्व से साक्षात्कार करना है, यह पहचान करना है कि आप वास्तव में क्या हैं|
अब प्रश्न उठता है कि जीवन में अध्यात्म कितना आवश्यक है? इसकी वाकई कोई ज़रूरत है भी या नहीं? मन में यह खयाल भी उठता है कि अध्यात्म में तो सारे कर्मकाण्ड निभाने होंगे, सुबह जल्दी उठकर पूजा करनी होगी, धार्मिक पुस्तकों का पाठ करना होगा, कमल को पानी में डुबोकर उस पानी को सब पर छिड़कना होगा…ऐसे बहुत से खयाल उठते हैं| हकीकत यह है कि ऐसी गतिविधियॉं अध्यात्म नहीं हैं| यह तो केवल अध्यात्म की याद दिलाती हैं, उसकी स्मृति बनाए रखती हैं| लोग इन स्मृतियों को ही, इन माध्यमों को ही आध्यात्मिकता मानने की गलती कर बैठते हैं| इसीलिए ऐसे प्रश्न उठते हैं कि जीवन में अध्यात्म की क्या और कितनी ज़रूरत है| अध्यात्म की याद दिलानेवाली चीज़ों को, अध्यात्म का संकेत देनेवाली गतिविधियों को ही आप अध्यात्म मान लेंगे तो गड़बड़ी शुरू हो जाएगी| संकेत, माध्यम, मार्ग आपका लक्ष्य नहीं है| यह केवल इसलिए उपस्थित हैं कि आपको याद बनी रहे और आप लक्ष्य को प्राप्त कर सकें|
सच्चे अध्यात्म में आप इस प्रश्न के उत्तर को अनुभव से (न कि कोरे बौद्धिक ज्ञान से) समझ पाते हैं कि मैं कौन हूँ? यह समझ पाकर आप चेतना के अनुभव में उतरते हैं, आपका अनुभव चैतन्य हो जाता है| इसकी शुरुआत आपकी आँखों पर बँधी अहम् की पट्टी खुलने से होती है| अध्यात्म की परख रखनेवाला गुरु यह पट्टी खोलने में आपकी मदद कर सकता है| इस एक सत्य के अलावा अध्यात्म के नाम पर आप जो कुछ भी कर रहे हैं, करते आए हैं, वह आँखों पर कपड़ों की पट्टी बॉंधकर काम-काज़ करने के जैसा ही है| कोई ऐसा इंसान ही यह पट्टी खोलकर आपको देखने का अवसर दे सकता है, जिसने खुद भी देख लिया हो| अपनी रोशनी पर यह ग्रहण हमने खुद ही तो लगाया है, अहम् का यह अंधकार हटाने के लिए आँखों पर बँधी पट्टी खोलिए, सेल्फ में प्रवेश कीजिए और खुद को पहचानिए|
बस इतना ही चाहिए, बस यह ही आवश्यक है, इसके सिवा और कुछ भी अनावश्यक है!
One comment
Suyog Puranik
Dhanywaad Sirshree